जैन शब्द संस्कृत के जिन से बना है जिसका अर्थ होता है विजय!
जैन परंपराओं के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थ करते हैं!
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ या ऋषभदेव और 22वें तीर्थ कर अरिष्टनेमी थे इन दोनों का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है!
23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जो काशी (कौशल) के इच्छवाकु वंश के राजा अश्वसेन के पुत्र थे! इनके अनुयायी निग्रंथ कहलाते हैं!
पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित किए गए चार महाव्रत-
1. सत्य
2. अहिंसा
3. अस्तेय- चोरी ना करना
4. अपरिग्रह- धन का संचय ना करना!
Note- पांचवा महाव्रत महावीर स्वामी ने जोड़ा जिसे ब्रह्माचार्य (इंद्रयो पर विजय प्राप्त करना) कहते हैं!
पार्श्वनाथ के कारण ही जैन धर्म में महिलाओं को प्रवेश मिला था!
✴️ महावीर स्वामी-
यह जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे!
जैन धर्म का इन्हें वास्तविक संस्थापक भी माना जाता है!
इनका जन्म 540 ई.पु. कुंडलगांव वैशाली (बिहार) में हुआ था
उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो वज्जी संघ के ज्ञातृक कुल के प्रधान थे
इनकी माता का नाम त्रिशला था जो लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी!
उनकी पत्नी का नाम यशोदा था जो कुंडिय गोत्र के राजा समरवती की पुत्री थी!
इनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना या अणोज्जा था!
इनके दामाद का नाम जामालि था जो इनका प्रथम शिष्य था!
इनके बचपन का नाम वर्धमान था
इनके जन्म का प्रतीक सिंह था
इन्होंने 30 वर्ष की आयु में अपने भाई नांदिवर्मन की आशीर्वाद से ग्रह त्यागा था!
इन्हें 42 वर्ष की आयु में ऋजुपालिका नदी(बाराकर नदी) के तट मे जम्भिक गांव (बिहार) सारे वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई!
प्रथम शिष्या चंदना थी!
Note- बहुत से स्त्रोतों के अनुसार उनकी पहली शिष्या चंपा की राजकुमारी पद्मावती थी!
इन्होंने अपना पहला उपदेश विपुलांचल पहाडी (राजगृह) मे ऋजुपालिका नदी के तट में दिया!
इनकी मृत्यु 468 ईसा पूर्व पावापुरी मे मल्ली राजा सुक्तपाल के वहां हुई!
महावीर ने अपने जीवन काल में 11 सदस्यों का एक संघ बनाया जिसे गणधर कहा जाता था!
जैन धर्म का सर्वोच्च ज्ञान केवल्य कहलाता था!
जैन धर्म के त्रिरत्न-
1. सम्यक दर्शन
2. सम्यक ज्ञान
3. सम्यक आचरण
✴️ जैन साहित्य-
प्रारंभ में जैन साहित्य अर्धमगधी भाषा में था परंतु बाद में प्राकृत भाषा को अपनाया गया है सबसे अंत में कन्नड़ व संस्कृत भाषा में भी जैन साहित्य दिखता है!
जैन साहित्य को आगम कहा गया है जिसने 12 अंग 12 उपांग 10 प्रकीर्ण 6 छेद सूत्र 4 मूल सूत्र 1 नदी सूत्र है!
आगम ग्रंथ महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद का है!
जैन धर्म से कुछ प्रमुख ग्रंथ-
आचारंग सुत्र- इसमें भिक्षुको के नियम व विधि विधानो का उल्लेख था!
भगवती सूत्र- यह महावीर स्वामी की जीवनी है इससे हमें 16 महाजनपदों का भी पता चलता है!
भद्रबाहुचरित्र- इसमें चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य काल की जानकारी मिलती है!
कल्पसूत्र- भद्रबाहु द्वारा लिखित संस्कृत ग्रंथ है इसमें जैन तीर्थ करो के जीवनों का वर्णन है!
✴️जैन दर्शन-
1. अनेकान्तवाद- बहुरूपा का सिद्धांत
2. सप्तभंगीनयवाद- सापेक्षता का सिद्धांत(स्यादवाद का सिद्धांत) के नाम से भी जाना जाता है!
3. नवावाद- आर्थिक दृष्टिकोण का सिद्धांत
✴️ जैन संगीतियां-
1. प्रथम जैन संगीति-
प्रथम जैन संगीति 300 ई. में पाटलिपुत्र में हुई इसकी अध्यक्षता स्थुलभद्र ने की
इस संगति का परिणाम विखरे एवं लुप्त ग्रंथों का संचय किया गया!
जैन धर्म को दो संप्रदायों में विभाजित कर दिया गया!
1. श्वेतांबर
2. दिगंबर
श्वेतांबर-
इसकी स्थापना स्थूलभद्र ने की इसमें मोक्ष प्राप्ति करने के लिए वस्त्र का त्याग नहीं करना पड़ता था!
आगम साहित्य स्वीकार किया
स्त्रियों को निर्वाण के योग्य समझा
दिगंबर-
इसकी स्थापना भद्रबाहु ने की इसे समैया भी कहा जाता है!
इतने मोक्ष के लिए वस्त्रों का त्याग करना आवश्यक था!
इन्होंने आगम साहित्य स्वीकार नहीं किया
स्त्रियों को के निर्वाण योग्य नहीं समझा जाता था!
द्वितीय जैन संगीति-
यह जैन संगीति 383 ईसवी में वल्लभी गुजरात में हुई!
इस संगीति की अध्यक्षता क्षमाश्रवण(देवर्धिगण) ने की थी!
जैन धर्म के महत्वपूर्ण प्रश्न-
जैन धर्म में युद्ध व कृषि दोनों वर्जित थी!
जैन धर्म पुनर्जन्म व कर्मवाद पर विश्वास करता था
फार्म में मूर्ति का प्रचलन नहीं था बाद में जैन धर्म में मूर्ति का प्रचलन होने लगा!
ये वेद की अपौरुषेयता व ईश्वर का अस्तित्व शिकार करते थे!
जैन धर्म मे 18 पापा की कल्पना की गई है!
महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद सुधर्मन संघ का अध्यक्ष बना बाद में जम्बू संघ का अध्यक्ष बना!
✴️ जैन धर्म के अनुयायी राजा-
चंद्रगुप्त मौर्य- पहली जैन संगीति इसी के समय में आयोजित की गई थी!
कलिंग राजा खारवेल- उदयगिरि की पहाड़ी में इतने गुफा बनाई थी!
राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष- इतने रतनमलीका ग्रंथ की रचना की!
गंग राजा राजमल चतुर्थ- इसके मंत्री चामुंड राय ने 974 ई. में श्रवणबेलगोला कर्नाटक में बाहुबली की मूर्ति बनाई यह चट्टान के सहारे खड़ी सबसे ऊंची मूर्ति है यहां प्रत्येक 12 वर्ष में दूध से अभिषेक होता है जिसे महामस्तकाभिषेक कहते हैं!
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