अंचल विवाह- इसमें वर एवं वधू के कंधों पर डाले गए आचलो के कोनो को बाध कर उनमे गांठ लगाकर फेरे लिए जाते हैं!
अप्सरा ताल- यह ताल टिहरी जनपद में स्थित है!
अकता(इकता) - यह भू व्यवस्था का एक कर था!
अंकितरि- जौनसार भाबर क्षेत्र में भेड़ पालको के रक्षक देवता है!
अकर- कृषि योग्य भूमि को कहा जाता है जो राज्य की ओर से व्यक्ति विशेष को राजस्व मुक्त रूप में प्रदान की जाती है!
अख्वाडी- कुमाऊं क्षेत्र में मक्के का नमकीन दलिया
अखिलतरणी मंदिर- खिलपति या उग्रतारा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह मंदिर लोहाघाट (चंपावत) में है!
अगस्तमुनि- यह मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है यहां पर बड़ी गद्दी को राम का सिहासन कहा जाता है ऐसी दो गद्दी है यहीं पर योगादित्य मंदिर भी है!
अजयपाल- इन्होंने गढ़वाल का एकीकरण किया था और प्रथम राजा थे जिन्होंने कुमाऊं पर आक्रमण किया था! इन्हें उत्तराखंड का नेपोलियन और बिस्मार्क कहा जाता है!
अटारिया देवी मंदिर- इस मंदिर का निर्माण चंद्र राजाओं के समय हुआ था!
अनुसूइया मंदिर- यह मंदिर कत्यूरी शैली का चमोली जनपद में स्थित है!
अट्टटा सट्टा- यह एक विवाह पड़ता है जिसे श्वर सांटो भी कहा गया है जो विनिमय विवाह है !
अठवाड- उत्तराखंड में बली पूजा का एक रूप है!
अणवाल- धारचूला पिथौरागढ़ में एक जनजाति का कार्य है पशुओं की देखभाल करना
अन्यारी देवता- जौहर क्षेत्र पिथौरागढ़ में यह मंदिर स्थित है
अपरहण विवाह- उत्तरकाशी की जाड जनजाति में यह विवाह प्रचलित है!
कलमटिया पहाड़ी- अल्मोड़ा का कसार देवी मंदिर इसी चोटी पर स्थित है!
अष्ठाव्रक महादेव मंदिर- यह मंदिर पौड़ी के खिरसू में स्थित है!
अस्कोट- यह अभय पाल ने बसाया था!
अच्छा/अस्के- यहां एक खाद्य पदार्थ है!
आदित्य महादेव मंदिर- यह मंदिर चंपावत जनपद में है!
आदि केदार- यह चमोली जनपद में है!
आदि बद्री- यह चमोली में स्थित है यहां से उत्तर नारायण गंगा (दुधातोली) निकलती है!
लठमार मेला- यहां मेला आदि बद्री में लगता है परंतु लठमार होली मथुरा में होती है!
आलम- भोज वृक्ष का कटा हुआ तना!
आलम सैन्यो चुमौ- यह उत्सव धारचूला पिथौरागढ़ में हर 12 वर्ष में मनाया जाता है!
इंडरा- यह एक भोज व्यंजन है!
इंजरान/इरन- यह एक बंजर भूमि होती है!
इंद्रकिल पर्वत- जहां पर्वत टिहरी जनपद में स्थित है
उखलभेद- तंत्रिका अनुष्ठान
उजयाली देवी मंदिर- यह मंदिर द्वाराहाट अल्मोड़ा में स्थित है!.
वरिष्ठ गुफा- यह गुफा रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
कोटेश्वर गुफा- यह गुफा उत्तरकाशी जनपद में स्थित है!
ष्यम्बक गुफा- द्वाराहाट अल्मोड़ा मैं यह गुफा स्थित है
गोरखनाथ गुफा- यह गुफा पौड़ी जनपद में स्थित है
कपरकोट गुफा- यह गुफा अल्मोड़ा जनपद में स्थित है!
कुचियादेव उड्यार- यह गुफा मंदिर है जो पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है!
उखीमठ- जब केदारनाथ के द्वार शीतकाल में बंद हो जाते हैं उनकी डोली उठी मटके ओंकारेश्वर मंदिर में रखी जाती है इसके अतिरिक्त शीतकाल में मद्महेश्वर की मूर्ति भी उत्सव के साथ यहीं पर रखी जाती है
उधम सिंह नगर- चंद्र शासकों के समय इस स्थान को नौलखा माल चौरासीकोस तल्लादेश कहा जाता था अभी इसे कुमाऊ का अन्न भंडार कहा जाता है
एक हथिया देवाल- पिथौरागढ
एक हथिया नौला- चम्पावत
एकेश्वर महादेव मंदिर- पौडी
भेलछडा जलप्रपात- पिथौरागढ़
एगास- यह एक पशु उत्सव है
माउंट एबॉट- यह लोहाघाट चंपावत में स्थित है यहां सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया निवासी सर एवर्ट ने अपना निवास स्थान बनाया था!
एलरमाठी की मार- जौनसार बावर क्षेत्र देहरादून में दशहरे के दिन मनाया जाने वाला एक उत्सव है!
ऐडी(अहेडी) - यह पशु चारक वर्ग के देवता है!
कस्तूरी मृग विवाह- यह पिथौरागढ़ में देखने को मिलता है!
ऐडीधुरा मंदिर- यहां चंपावत में स्थित है!
औसर- चमोली का एक नृत्य है
ओडाल प्रथा- यह एक वैवाहिक प्रथा है
कुबेर पर्वत- यह पर्वत चमोली जनपद में स्थित है यहां से अलकनंदा की सहायक नदी कंचनगंगा निकलती है
कंडार देव मंदिर- उत्तरकाशी जनपद
कंस मर्दिनी शक्तिपीठ- पौड़ी जनपद
कोटरा दुर्ग प्रसाद- यह एक महल है जो काशीपुर में स्थित है!
कठपुडिया या कठपतिया देवी- यह शौका जनजाति की देवी है इसका ना कोई मंदिर है ना मूर्ति ना पूजा
कठाले- घर जमाई का मित्र घर में रह सकता है जौनसार बावर क्षेत्र में इसे कठाले कहते हैं!
कठैतगर्दी- गढ़वाल के इतिहास में पांच भाई कठैतो के अत्याचार को कठैतगर्दी कहा जाता है उत्तराखंड के इतिहास में!
कपिलेश्वर मंदिर- यह मंदिर कुमिया व सकुनी नदी के संगम में अल्मोड़ा जनपद में स्थित है!
कमीण- राजस्व अधिकारी को
करकोटक नाग मंदिर- भीमताल के पांडे गांव में
करगैत मंदिर- बद्रीनाथ मंदिर के लिए यह प्रसिद्ध मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है
कर्ण देवता मंदिर- उत्तरकाशी
कर्मान्त- कत्यूरी प्रशासन मे तहसील स्तर की प्रशासन इकाय जिस का उल्लेख धुतीवर्मन तथा सुमिक्षराज के ताम्रपत्रों में किया गया!
करवीरपपुर- यह भी कत्यूरी प्रशासन की एक इकाई थी जिसका वर्णन धुतीवर्मन के तलेश्वर ताम्रपत्र में मिलता है
कलियर शरीफ- यह रुड़की में स्थित है हजरत मोहम्मद अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की दरगाह है
कवल्लीकुर्मो- कुमाऊं के दारमा आर्थिक दंड सूचक शब्द है!
कव्वालेख - यह बागेश्वर जनपद में स्थित है! यहां पर हजारों कौवे के पंख दिखते हैं
कंसेरी- यहां उत्तराखंड का एक वाद्य यंत्र है
काकभुसंडीताल- इसका आकार अर्धचंद्राकार है इस साल के विषय में यह कथा प्रचलित है यहां सारे कौवे अपना शरीर त्याग दें!
काजा- जौनसार बावर क्षेत्र में महिलाओं के सौंदर्य प्रशासन की विद्या है जिसमें लड़की अपने शरीर पर सुई से टैटू गुदवाती है!
गुलाब घाटी- काठगोदाम को गुलाब घाटी कहा जाता है!
कार्तिकेय मंदिर- क्रौंच पर्वत रुद्रप्रयाग में यह मंदिर स्थित है यही हरियाली देवी मंदिर और कंडोलिया देवता मंदिर भी है!
हेली नेशनल पार्क- इस पार्क की स्थापना 1936 में हुई थी इसका नाम संयुक्त प्रांत अवध के तत्कालीन राज्यपाल सर जॉन मैकलन हैली के नाम पर रखा गया था!
कालकुट- कालसी का प्राचीन नाम कालकूट था जो कुणिंदो की राजधानी थी कालसी में अशोक के अभिलेख की खोज 1860 में फॉरेस्टर ने की थी!
कालसिन मेला- यहां मेला चंपावत में लगता है
कालाढूंगी- यह नगर बोर नदी के तट पर है
कालामुनि पहाड़- यह पहाड़ पिथौरागढ़ में स्थित है!
काशीपुर- बाज बहादुर चंद्र के समय 1640 में इनके अधिकारी काशीनाथ अधिकारी ने इसकी स्थापना की थी 1803 ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र पर ले लिया था!
बाला सुंदरी मंदिर- यह मंदिर काशीपुर में स्थित है इसे उज्जैनी देवी मंदिर भी कहते हैं
कीमोद- जौनसार बावर का एक उत्सव है
किरजी- कंडाली महोत्सव के नाम से इसे जाना जाता है यह पिथौरागढ़ की चौदास घाटी में होता है इसमें नृत्य करते समय युवा और प्रौढ महिलाएं भाग लेती है!
किलकेलेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर श्रीनगर पौड़ी जनपद में स्थित है
कीर्ति नगर- शहीदी नगर के नाम से इसे जाना जाता है इसकी स्थापना 1896 में कीर्ति शाह ने की थी!
कुकुछिना- यह गुफा अल्मोड़ा में स्थित है!
कुकुरालो- यहां चंद्र वंश के समय एक टेक्स था जो बाज बहादुर चंद्र के समय शुरू हुआ था!
कटकु (पढवा) - यह कुमाऊं मंडल की एक वीरगाथा है कटकु नौला पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है!
बाबा कालू सैय्यद- बीड़ी वाले बाबा के कहा जाता है यहां प्रसाद के रूप में बीड़ी दी जाती है!
कुत- चंद्र कालीन भू व्यवस्था के अंतर्गत नगद के बदले अन्न दिया जाने वाला कर कुत कहलाता था!
कुजांपुरी देवी- टिहरी
कुटेटी देवी- उत्तरकाशी के वर्णावत पर्वत पर यह मंदिर है इसे ऐरासु गढ कहा जाता है!
कुण्डाखाल प्रथा- यहां भोटिया तथा तिब्बत व्यापारियों की गमय्या प्रथा है!
कुमाऊं- चंद्रवरदाई के पृथ्वीराज रासो ग्रंथ में इसको कुमाऊं गढ़ कहा गया है इसका पूर्वांचल नाम सर्वप्रथम राजा कल्याण चंद्र के चंपावत स्थित नागनाथ मंदिर के शिलालेख में पाया गया है रुद्र चांद के नाटक उषा रुद्र गौरेया मे इसे कुर्मागिरी कहा गया है! कुमाऊं शब्द का प्रयोग मुस्लिम इतिहासकार अब्दुल्ला के ग्रंथ तारीखें दाऊदी में दिल्ली के सुल्तान इस्लाम शाह के समय किया गया था 1802 मेला ज्वेलरी ने यहां की वन संपदा एवं जलवायु की जानकारी के लिए मिस्टर गाट को यहां भेजा था!
1811-12 में मूरक्राट और हेयरसी भी कुमाऊं के रास्ते तिब्बत गए थे लार्ड हेस्टिंग्स भी गुप्त रूप से सर्वेक्षण पर यहां आया था!
पशुपति मंदिर- यह मंदिर नेपाल में स्थित है!
कुमासेण देवी मंदिर- यह मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
कुम्हडी देवी- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है
कुल्लेयवाप- यह कुमाऊं मंडल में रेका शासनकाल में भूमि माप का बोधक है!
कुस्मांडादेवी- यह देवी मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है!
केदार गंगा- यह नदी चमोली में बहती है स्वर्गारोहिणी से निकलती है!
केदारनाथ मंदिर- भगवान शिव के 52 ज्योतिर्लिंगों मे केवल यही ऐसा है जो शिलात्मक है यह लिंगात्मक नहीं है यह मंदिर कत्यूरी शैली मैं नागर शिखर युक्त है!
कैंची धाम- 15 जून 1976 को जहां पर माता वैष्णो और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई यह मंदिर बाबा नीम करौली द्वारा बनाया गया!
कैलाशी या कलावीर- मुस्लिम पीर या वीर बाबा इनकी आराधना केवल गढ़वाल मंडल में होती है यह टिहरी जनपद में स्थित है!
छोटा कैलाश धारचूला (पिथौरागढ़) और नैनीताल जनपद में स्थित है
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश में स्थित है!
केलुवा विनायक- यह चमोली जनपद में स्थित है
कोकरसी या कुकरसी- यह जौनसार क्षेत्र के देवता होते हैं और उनकी प्रगति बहुत ही क्रोधित स्वभाव की होती है!
कोकीलादेवी- पिथौरागढ़ में स्थित है
कोटगाडी देवा- यह मंदिर पिथौरागढ़ में स्थित है
कोटयुला या कोटुली- छोटे आकार के किलो को कोटयूडा कहा जाता है
कोटकांगडा देवी- यह मंदिर द्वाराहाट अल्मोड़ा में स्थित है!
कोटकीमायी- अल्मोड़ा में कत्यूरी वंश की देवी कोट भ्राभरी देवी के नाम से जानी जाती है!
कोटवी देवी- पिथौरागढ़ का यह मंदिर असुर कुल से संबंधित यह मंदिर है
कोटाल- ग्राम प्रधान के अधीन एक कर्मचारी
कोटीप्रयाग- रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
क्युकालेश्वर मंदिर- यह श्रीनगर पौड़ी के कीकांश पर्वत पर स्थित है!
क्युसरदेवता मंदिर- टिहरी में स्थित नाग देवता का मंदिर
कोटालगढ- बाणासुर के किले का अन्य नाम है!
कौसानी- कौसानी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का श्रेय रैम्जे साहब को जाता है कौसानी में गांधीजी की शिष्या सरला बहन ने कस्तूरबा महिला आश्रम की शुरुआत की थी!
खडगेश्वर महादेव- पिथौरागढ़ के अस्कोट के रजवार शासक खड्कपाल ने बनाया था
खलियाप्रथा- यहां पर था किसानों के जीवन का एक अंग है!
खसमंडल- बाराही संहिता व वायु पुराण में केदारखंड को खसमंडल कहां गया है!
खसरा या खतौनी- जमीनों से संबंधित जो देखा जो का होता है उसे खसरा कहते हैं
खरसाली- सोमेश्वर देवालय में 5 मंजिला भवन!
खिचड़ी नृत्य- थारू जनजाति में होली के समय दो नृत्य प्रसिद्ध है होली नृत्य और खिचड़ी नृत्य
सादी होली नृत्य मैं केवल पुरुष स्त्रियों की वेशभूषा में नृत्य करते हैं परंतु खिचड़ी नृत्य में दो पुरुषों के बीच एक महिला या दो महिलाओं के बीच एक पुरुष नृत्य करता है!
खील/कटिल- यह शब्द बंजर भूमि के लिए प्रसिद्ध है!
खेल- पिथौरागढ़ का एक लोक नृत्य है!
गंगनाथ मंदिर- यह कुमाऊं मुख्य रूप से sc जनजाति के इष्ट देवता माने जाते हैं!
गढ़ मुक्तेश्वर - लोहावती व महाकाली नदी के संगम पर स्थित है उत्तराखंड के चंपावत जनपद के अंतर्गत यह स्थल आता है भारत में गढ़मुक्तेश्वर नामक स्थल बिजनौर में भी है!
गणनाथ- यह स्थल अल्मोड़ा जनपद में स्थित है 23 अप्रैल 1815 में हस्तीदल चौथे को यहां वीरगति प्राप्त हुई यहीं पर हर्ष देव जोशी की भी मृत्यु हुई थी!
गणेश गंगा- गरुढ हिमानी के नाम से प्रसिद्ध यह नदी चमोली जनपद में है!
गणयात मेला- जौनसार बावर क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला!
गवलादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
गर्खो- चंद्र शासन कालीन राजस्व संबंधी एक प्रशासन इकाई थी जिसका प्रधान कोने की कहा जाता था
गमोरी गुफा- पाषाण कालीन यह गुफा चंपावत जनपद में स्थित है!
गिर का कौतिक- यह मेला अल्मोड़ा जनपद में लगता है!
गिरथी गंगा- यह चमोली के किंगरी बिंगरी पर्वत कि पश्चिमी ढाल से निकलती है!
गुढकेदार का मेला- अल्मोडा
गुणादित्य का मंदिर- यह सूर्य मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है!
मणिकर्णिका कुंड रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है परंतु मणिकर्णिका घाट उत्तरकाशी जनपद में स्थित है!
गुरु बेनी-गुरु भाई- चमोली में यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है इसका उद्देश्य सामाजिक स्तर पर युवक-युवतियों के बीच भाई-बहन के संबंध को बनाए रखना है!
गैडागर्दी- कुमाऊ के इतिहास में 720-29 तक का समय गया ड गर्दी के नाम से जाना जाता है इस समय राजा देवी चंद था!
शोंकर्णेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
रति कुंड- गोपेश्वर चमोली
गोविषाण- काशीपुर का यह प्राचीन नाम है यहां 1745 में शिवदत्त जोशी ने किला बनाया था 1764 में इनकी हत्या हो गई थी!
गोरखा किला- यह किला पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है!
गोरखनाथ धुनी- चंपावत के क्रांतेश्वर पर्वत पर यह धुनी है!
गौरिल चौड- चम्पावत
गोलदार- राजाओं के रक्षा अधिकारी
गोलक्ष- पौड़ी गढ़वाल
1963 में गोपेश्वर चमोली राजमार्ग को बनाया गया था!
घटकु देवता- यह मंदिर चंपावत जनपद में है यह भीम पुत्र घटोत्कच का मंदिर इसी के पास इनकी माता हिडिंबा का मंदिर है इसे हिंगला देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है!
Note- हिडिम्बा पर्वत नैनीताल जनपद में स्थित है
घड़ियाल उत्सव- यह उत्सव तेरी जनपद में होता है
घुनशेरा उत्सव- यह उत्सव पिथौरागढ़ जनपद में होता है!
घोडाखाल- यह नैनीताल जनपद में स्थित है यहां गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे बाज बहादुर चंद्र ने बनाया था और यहीं पर 21 मार्च 1966 को सैनिक स्कूल की स्थापना की गई थी!
चण्डाक का मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है इसी के पास मोस्टामानु मंदिर भी है!
Note- चण्डाक कोट का किला चंपावत जनपद में स्थित है!
चंडी देवी मंदिर- हरिद्वार में नील पर्वत में स्थित इस मंदिर का निर्माण 1866 में जम्मू के राजा सुरचैत सिंह द्वारा कराया गया था 1997 में यहां पर रोपवे की शुरुआत की गई!
चंद्रकुवंर बतर्वाल- इनके पिता का नाम भोपाली सिंह था उनका जन्म 20 अगस्त 1919 को रुद्रप्रयाग में हुआ!
चंद्रबदनी मंदिर- चंद्रकुट पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है जहां किसी देवी की मूर्ति नहीं है!
चंद्र सिंह गढ़वाली- उनका जन्म 24 दिसंबर 1891 को पौड़ी में हुआ इनके पिता का नाम जाथली सिंह था लखनऊ जेल में रहते हुए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मार्क्सवाद से प्रभावित हुए थे 26 सितंबर 1941 को एक 11 वर्ष 3 माह 18 दिन के बाद जेल से मुक्त हुए थे 1942 में वर्धा आश्रम (गुजरात) में श्री देव सुमन उनसे मिले थे!
17 साल बाद 22 सितंबर 1946 को इन्हें गढ़वाल में प्रवेश करने की अनुमति मिली और वहां सबसे पहले कोटद्वार पहुंचे!
चम्पूली- यह पूर्वी शौक जनजाति का लोक नृत्य है
चमदेवल मंदिर- यह मंदिर चंपावत में है
चित्ररेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर चित्रसिला घाट अर्थात रानीबाग नैनीताल में स्थित है
छिपुलाकोट- यह पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
छुरमल देवता- यह पिथौरागढ़ की राजी जनजाति के लोक देवता है
जगदीश्वरी या जग्देई मंदिर- यह मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
जगात- नेपाल सरकार द्वारा चंद्र ठेकेदारों से प्रति जानवर लिया जाने वाला कर था!
जरीब- अंग्रेजों के समय भू व्यवस्था संबंधित एक भूमि माप कि लोहे की श्रृंखला इस का सर्वप्रथम प्रयोग विकेट द्वारा किया गया इसे विकेट चैन भी कहा जाता है जो 20 गज लंबी थी!
जाख देवता मंदिर- रुद्रप्रयाग
जाखनदेवी/यक्षर्णी देवी मंदिर- अल्मोडा
जागेश्वर मंदिर- यह मंदिर आठवीं से 10 वीं शताब्दी के आसपास का है इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है इसी मंदिर मैं हाथ में दीपक लिए हुए राजा दीपचंद्र और उसकी रानी की कास्य मूर्ति है यहां राजा त्रिमलचंद्र की 40 किलो की रजत मूर्ति थी जो 1968 में चोरी हो गई
जाजलदेवी- यहां मंदिर सिरा क्षेत्र पिथौरागढ़ में स्थित है
जाती मेला- यहां मेला पांडुकेश्वर चमोली जनपद में लगता है!
जाह्नवी नौला- यह नौला अल्मोड़ा जनपद में स्थित है
जिम कार्बेट- जिम कार्बेट का जन्म 24 जुलाई 1875 नैनीताल में हुआ इन्होंने बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे में नौकरी की तथा 1914 के प्रथम विश्व युद्ध में मेजर के रूप में अफगानिस्तान के सहायता शिविर में कार्य किया था 1928 में यह नगर पालिका परिषद नैनीताल के उपाध्यक्ष भी रहे 19 अप्रैल 1955 को इनका निधन के केन्या हुआ!
जोश्यानी कांड(1785) - वर्ष 1785 में हर्ष देव जोशी ने जयकृत शाह पर आक्रमण किया था इस घटना को जोश्यानी कांड कहा जाता है इसके बाद 1786 में जयकृत शाह ने आत्महत्या कर ली थी!
जिया रानी अर्थात मौला देवी- राजा अमर देव पुंडीर की पुत्री जिन्हें कुमाऊ की झांसी की रानी कहा जाता है इनके विवाह का वर्णन सरमन ओकले साहब ने अपनी पुस्तक हिमालयन फोकलोर में किया है!
जौलजीवी मेला- विकासखंड डीडीहाट में यह मेला लगता है जिसका प्रारंभ अस्कोट के राजा राजेंद्र बहादुर सिंह ने कराया था!
ज्युला- अन्य की माप का परिमाण
ज्वाला देवी मंदिर काशीपुर में स्थित है और ज्वालपा देवी मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है!
झांकर सैंण - यह मंदिर नाग देवता का मंदिर है जो अल्मोड़ा में स्थित है!
झाल- उत्तराखंड का धातु निर्मित वाद्य यंत्र
झाली माली देवी- यह मंदिर हिडिंबा मंदिर के पास चंपावत में स्थित है इसकी खोज यशोधर मठपाल जीने की!
झूठा मंदिर- झूमा तथा झूठा मंदिर चंपावत में है परंतु झूला देवी मंदिर रानीखेत अल्मोड़ा में स्थित है!
टनकपुर-: कुमाऊ का गास्टिगंज कहा जाता है इसकी स्थापना मिस्टर टलक ने की इसे 1972 में नगरपलिका का रूप दिया गया!
ट्रेलपास- यहां दर्रा पिथौरागढ़ को चमोली से जोड़ता इसकी खोज सर्वप्रथम 1830 में कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल ने की!
टोकरियाँ मेला- यह मेला पिथौरागढ़ जनपद में लगता है!
डांगबुगडयागंल ताल- सलया देवता मंदिर यहीं पर स्थित है जहां पत्थर का प्रसाद चढ़ाया जाता है!
डांडा नागराजा- यह मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है
ढुढेश्वर मंदिर- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है!
तख्त- बुक्सा जनजाति में एक न्याय सकता है
तप्त कुंड- यमुनोत्री उत्तरकाशी में स्थित इस कुंड का सर्वाधिक गर्म है!
तपोवन- यह उत्तराखंड के 4 जगह में फैला हुआ है ऋषिकेश चमोली पिथौरागढ़ उत्तरकाशी
त्यूनी- पत्थर से बना सिराहना
ताडीखेत- कमला लेख पहाड़ी पर स्थित है यही 1929 में गांधी जी के आगमन पर गाजी कुटिया का निर्माण कराया गया!
तामाढौन- यह युधिस्टर अल्मोड़ा में स्थित है यहां प्रदीप साह और दीपचंद्र के बीच युद्ध हुआ था
तारा ताल- यह ताल रानीखेत अल्मोड़ा में है
ताडकेश्वर- यह पौड़ी जनपद में स्थित है
तारकेश्वर- यह चंपावत में स्थित है यही सीताकुंड भी स्थित है!
तिलका देवी मंदिर- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है!
रावण शिला- यह सिला रुद्रप्रयाग में स्थित है रावण माठ भी यही है!.
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर- इस मंदिर का निर्माण उद्धोत चंद्र ने अल्मोड़ा में कराया था!
त्रिपुरा सुंदरी देवालय -यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है!
तिमुंडिया देवता का नृत्य- यह नृत्य उत्सव जोशीमठ चमोली के नरसिंह मंदिर के प्रांगण में होता है!
बद्रीनाथ के कपाट खुलने से पूर्व तिमुडिया देवता नृत्य का आयोजन किया जाता है!
त्रिजुगी नारायण मंदिर- रुद्रप्रयाग बद्रीनाथ में बद्री विशाल के दर्शन उसे पहले जोशीमठ के नरसिंह मंदिर के दर्शन करना आवश्यक माना जाता है इस प्रकार केदारनाथ के दर्शन उसे पहले त्रिजुगीनरायण के दर्शन आवश्यक माने जाते हैं!
थर- चंद्रवंशी मैं 6 प्रकार के थर नियुक्त किए गए थे- देव देख मेहरा फर्त्याल धोनी करायार
थर्प- कत्यूरी सामंत के प्रशासनिक भवन रजवाड़ों के महल को भी थर्प कहा जाता है!
भूससेण देवता- थारू जनजाति में भूमि और किसी की रक्षक देवता होते हैं!
दक्षिण काली देवालय- यह मंदिर चमोली जनपद में स्थित है!
दामतारो या दामघडी- वधू मूल्य
दिखनौरी प्रथा- थारु में देख दिखावा प्रथा
देवरिया ताल- रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
देवीधार- चंपावत जनपद में लगता है!
भारतीय वन्यजीव संस्थान की स्थापना 1982 देहरादून में हुई भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1767 में हुई जिसे 1942 में देहरादून लाया गया!
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन की स्थापना 14 अगस्त 1956 को देहरादून में हुई राष्ट्रीय दृष्टि बाधितार्थ संस्थान की स्थापना 1979 देहरादून में हुई
घौंसिहा मंदिर- यह मंदिर चमोली जनपद में है!
घुरमा देवता- इन्हें वर्षा का देवता कहा जाता है!
नकुलेश्वर मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है थल केदार पहाड़ी में
नंदा देवी शिखर- 25689 फीट
नठाली- चल अचल संपत्ति
नागथात- इसे वासुकी नाग मंदिर के नाम से जाना जाता है जो देहरादून जनपद में है नागपुर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है!
नागफनी- सुशीर वाद्य यंत्र जो पीतल और तांबे से बना होता है!
नागिनी देवी मंदिर- यहां मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है!
नागनाथ पोखरी- यह मंदिर क्रोंच से पर्वत रुद्रप्रयाग में स्थित है
नंदा राज जात यात्रा- पहली 1881 दूसरी 1905 तीसरी 1925 और आखिरी 2014
नागार्जुन पर्वत- यह अल्मोड़ा के द्वाराहाट में स्थित है यही विमाण्डेश्वर महादेव मंदिर भी स्थित है!
नीलकंठ महादेव मंदिर- पौड़ी के यम्केश्वर विकासखंड में झिलमिल गुफा के पास यह मंदिर स्थित है!
नलिया आदित्य मंदिर- चंपावत में स्थित है
नैथीनी देवी मंदिर- यह मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है!
नैनीताल- इसकी को 1841 में पी बैरन ने की यह पहला विदेशी था जिसने बद्रीनाथ और केदारनाथ की पैदल यात्रा की थी यह कविता पिलग्रिम नाम से लिखता था 1845 में नैनीताल नगर पालिका की स्थापना हुई!
नौढा कौतिक- यह मेला रुद्रप्रयाग में लगता है जिसे लठमार मेला भी कहा जाता है!
पंचगंगा- गंगा यमुना अलकनंदा भागीरथी धौलीगंगा पंचगंगा में आती है!
पटरंगवाली प्रथा- इंद्रचंद के समय चली
प्रतापनगर- इसकी स्थापना 1877 में प्रताप शाह ने की थी
प्लेठी का सुर्य मंदिर- इसकी स्थापना कल्याण बर्मन ने देवप्रयाग में की थी यह उत्तराखंड का पहला सूर्य मंदिर
पागल नाला- यह नाला चमोली जनपद में स्थित है
पांडुकेश्वर चमोली जनपद में पांडूखोली गुफा अल्मोड़ा जनपद में है
पाथा- अन्न मापने का एक पैमाना
पाली पछाऊ क्षेत्र- द्वाराहाट रानीखेत के क्षेत्र को पाली पछाऊ क्षेत्र कहते हैं!
पावनेश्वर का सूर्य मंदिर- अल्मोड़ा
पिंडारी ग्लेशियर- यह ग्लेशियर बागेश्वर जनपद में है जिसकी खोज 1846 मेंडेन की!
पिथोरागढ- इसकी स्थापना कत्यूरी राजा पिथौरा शाही ने की इसकी स्थापना लगभग 1398 ईस्वी में हुई!
पिंगनाथ- बागेश्वर अल्मोड़ा
पीपलकोटी- चमोली में अलकनंदा और लक्ष्मण गंगा के संगम में बसा है!
पिनाकेश्वर मंदिर- इस मंदिर का निर्माण बहादुर चंद ने किया था
पुंगेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
पुष्ठि देवी मंदिर- यह मंदिर अल्मोड़ा जनपद में हैं जहां प्रसाद को ग्रहण नहीं किया जाता है!
फडकानौली- इन शैल चित्रों की खोज यशोधर मठपाल ने अल्मोड़ा में की!
फतेह पर्वत- उत्तरकाशी में टोंस नदी के किनारे स्थित है!
फिक्कवाल- यह प्रथा ज्योतिष के आधार पर हाथ देखना होती है!
फूलों की घाटी- फूलों की घाटी की खोज सिडनी निवासी फ्रैंक स्माइथ ने1931 मे की थी 1939 में लंदन निवासी जवान मार्गरेट लैलिन यहां पर चल कर मर गई
फेनीनाग- यह नाग देवता मंदिर बागेश्वर में स्थित है!
फेराभात- चंद्रवंशी के समय कर्मचारियों के खाने पीने के लिए दिया जाने वाला कर
फैला देवता-मारछा जनजाति की प्रमुख देवता है जो चमोली में निवास करते हैं
बग्वालीपोखर- क्या अल्मोड़ा में स्थित है
❤बाज बहादुर शाहजहां की सेना में भर्ती हो गए थे बाज बहादुर ने कवि अनंत देव को आश्रय दिया था स्मृति कौस्तुभ अनंत देव की रचना है
लोकपाल झील- इस ताल की खोज सोहन सिंह ने 1936 में की
हंदिया नृत्य- जौनसारी जनजाति में बूढ़ी दिवाली के अवसर में किया जाने वाला नृत्य
सेलकु उत्सव- यह उत्सव उत्तरकाशी में होता है!
सेरा/सेरी- कृषि भूमि
सूर्या देवी मंदिर- तराई भाबर की रक्षक देवी सूर्या देवी का मंदिर नैनीताल में है!
सीमार- ऐसी जलीय भूमि जो किसी योग्य नहीं हो!
सातो आठो महोत्सव- पिथौरागढ़
सलिया देवता- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है
शिव प्रयाग- अलकनंदा और खाडव नदी के संगम में यह प्रयाग चमोली जनपद में है!
सूर्य प्रयाग- मंदाकिनी और अलसतरंगिनी नदियों के संगम में यह प्रयाग चमोली जनपद में है!
मलकटिया देवी- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में
मासी का मेला- यह मेला अल्मोड़ा जनपद में लगता है जहां सामूहिक रूप से मछली मारने की कला का प्रदर्शन किया जाता है!
मायावती आश्रम- 1901 में स्वामी विवेकानंद यहां आए थे इसकी स्थापना का श्रेय कैप्टन सैवियर को जाता है आरंभ में इसे मेंबाट कहा जाता है!
मनीला देवी मंदिर- रानीखेत अल्मोड़ा में
बाबा मनिक नाथ मंदिर- तेरी जनपद में
लंढौर बाजार- 1828 मसूरी
मसूरी- 1823 में कैपिटल यंग और एफ जे शोर यहां आए थे मसूरी को विकसित करने का श्रेय सर्वाधिक जॉन मैककिनन को जाता है!
शिवलिंग शिखर- यह उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
मल्लिकार्जुन और मलिका देवी मंदिर- यह दोनों मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है और अल्मोड़ा जनपद में भी!
मनीभदू- तोरछा और मारछा जनजाति के देवता
मढ. का सुर्य मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
मंझरा- थारू जनजाति की जाति पंचायत
मंजूघोष मंदिर- यह मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है
मक्कुमठ- शीतकाल में जब जब तुंगनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं तो उनकी डोली मक्कुमठ में रखी जाती है!
भोटिया- इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग विलियम ट्रैल के शासनकाल में किया गया!
भीलेश्वर मंदिर- टिहरी
भाटकोट का किला- पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
भवाली- रविंद्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि यही लिखी थी!
बौराडी या बौराणी- यह मेला पिथौरागढ़ में लगता है इसे जुआ मेला आया धुत कीड़ा मेला भी कहते हैं! बेकर- चंद्र वंश के समय लिया जाने वाला भूमि करता
बाला सुंदरी मंदिर- यहां मुगल शैली का मंदिर है जिसे औरंगजेब ने बनाया था
बूढ़ी दिवाली- दिवाली से 11 दिन बाद मनाई जाने वाली दिवाली!
विष्ठाली- इस कचहरी का निर्माण शक्ति गुसाई ने किया था जिसे उत्तराखंड का धृतराष्ट्र कहा जाता है !