Friday, April 29, 2022

डीडी शर्मा उत्तराखंड ज्ञानकोष

अंगारी मठ- यह सिद्धपीठ टिहरी जनपद में स्थित है! 
अंचल विवाह- इसमें वर एवं वधू के कंधों पर डाले गए आचलो के कोनो को बाध कर उनमे गांठ लगाकर फेरे लिए जाते हैं! 
अप्सरा ताल- यह ताल टिहरी जनपद में स्थित है! 
अकता(इकता) - यह भू व्यवस्था का एक कर था! 
अंकितरि- जौनसार भाबर क्षेत्र में भेड़ पालको के रक्षक देवता है! 
अकर- कृषि योग्य भूमि को कहा जाता है जो राज्य की ओर से व्यक्ति विशेष को राजस्व मुक्त रूप में प्रदान की जाती है! 
अख्वाडी- कुमाऊं क्षेत्र में मक्के का नमकीन दलिया
अखिलतरणी मंदिर- खिलपति या उग्रतारा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह मंदिर लोहाघाट (चंपावत) में है! 
अगस्तमुनि- यह मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है यहां पर बड़ी गद्दी को राम का सिहासन कहा जाता है ऐसी दो गद्दी है यहीं पर योगादित्य मंदिर भी है! 
अजयपाल- इन्होंने गढ़वाल का एकीकरण किया था और प्रथम राजा थे जिन्होंने कुमाऊं पर आक्रमण किया था!  इन्हें उत्तराखंड का नेपोलियन और बिस्मार्क कहा जाता है! 
अटारिया देवी मंदिर- इस मंदिर का निर्माण चंद्र राजाओं के समय हुआ था! 
अनुसूइया मंदिर- यह मंदिर कत्यूरी शैली का चमोली जनपद में स्थित है! 
अट्टटा सट्टा- यह एक विवाह पड़ता है जिसे श्वर सांटो भी कहा गया है जो विनिमय विवाह है ! 
अठवाड- उत्तराखंड में बली पूजा का एक रूप है! 
अणवाल- धारचूला पिथौरागढ़ में एक जनजाति का कार्य है  पशुओं की देखभाल करना
अन्यारी देवता- जौहर क्षेत्र पिथौरागढ़ में यह मंदिर स्थित है
अपरहण विवाह- उत्तरकाशी की जाड जनजाति में यह विवाह प्रचलित है! 
कलमटिया पहाड़ी- अल्मोड़ा का कसार देवी मंदिर इसी चोटी पर स्थित है! 
अष्ठाव्रक महादेव मंदिर- यह मंदिर पौड़ी के खिरसू में स्थित है! 
अस्कोट- यह अभय पाल ने बसाया था! 
अच्छा/अस्के- यहां एक खाद्य पदार्थ है! 
आदित्य महादेव मंदिर- यह मंदिर चंपावत जनपद में है! 
आदि केदार- यह चमोली जनपद में है! 
आदि बद्री- यह चमोली में स्थित है यहां से उत्तर नारायण गंगा (दुधातोली) निकलती है! 
लठमार मेला- यहां मेला आदि बद्री में लगता है परंतु लठमार होली मथुरा में होती है! 
आलम- भोज वृक्ष का कटा हुआ तना! 
आलम सैन्यो चुमौ- यह उत्सव धारचूला पिथौरागढ़ में हर 12 वर्ष में मनाया जाता है! 
इंडरा- यह एक भोज व्यंजन है! 
इंजरान/इरन- यह एक बंजर भूमि होती है! 
इंद्रकिल पर्वत- जहां पर्वत टिहरी जनपद में स्थित है
उखलभेद- तंत्रिका अनुष्ठान
उजयाली देवी मंदिर- यह मंदिर द्वाराहाट अल्मोड़ा में स्थित है!. 
वरिष्ठ गुफा- यह गुफा रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
कोटेश्वर गुफा- यह गुफा उत्तरकाशी जनपद में स्थित है! 
ष्यम्बक गुफा- द्वाराहाट अल्मोड़ा मैं यह गुफा स्थित है
गोरखनाथ गुफा- यह गुफा पौड़ी जनपद में स्थित है
कपरकोट गुफा-  यह गुफा अल्मोड़ा जनपद में स्थित है! 
कुचियादेव उड्यार- यह गुफा मंदिर है जो पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है! 
उखीमठ- जब केदारनाथ के द्वार शीतकाल में बंद हो जाते हैं उनकी डोली उठी मटके ओंकारेश्वर मंदिर में रखी जाती है  इसके अतिरिक्त शीतकाल में मद्महेश्वर की मूर्ति भी उत्सव के साथ यहीं पर रखी जाती है
उधम सिंह नगर- चंद्र शासकों के समय इस स्थान को नौलखा माल चौरासीकोस तल्लादेश कहा जाता था अभी इसे कुमाऊ का अन्न भंडार कहा जाता है
एक हथिया देवाल- पिथौरागढ
एक हथिया नौला-  चम्पावत
एकेश्वर महादेव मंदिर- पौडी
भेलछडा  जलप्रपात- पिथौरागढ़
एगास- यह एक पशु उत्सव है
माउंट एबॉट- यह लोहाघाट चंपावत में स्थित है यहां सर्वप्रथम ऑस्ट्रेलिया निवासी सर एवर्ट ने अपना निवास स्थान बनाया था! 
एलरमाठी की मार- जौनसार बावर क्षेत्र देहरादून में दशहरे के दिन मनाया जाने वाला एक उत्सव है! 
ऐडी(अहेडी) - यह पशु चारक वर्ग के देवता है! 
कस्तूरी मृग विवाह- यह पिथौरागढ़ में देखने को मिलता है! 
ऐडीधुरा मंदिर- यहां चंपावत में स्थित है! 
औसर- चमोली का एक नृत्य है
ओडाल प्रथा- यह एक वैवाहिक प्रथा है
कुबेर पर्वत- यह पर्वत चमोली जनपद में स्थित है यहां से अलकनंदा की सहायक नदी कंचनगंगा निकलती है
कंडार देव मंदिर- उत्तरकाशी जनपद
कंस मर्दिनी शक्तिपीठ- पौड़ी जनपद
कोटरा दुर्ग प्रसाद- यह एक महल है जो  काशीपुर में स्थित है! 
कठपुडिया या कठपतिया देवी- यह शौका जनजाति की देवी है इसका ना कोई मंदिर है ना मूर्ति ना पूजा
कठाले- घर जमाई का मित्र घर में रह सकता है जौनसार बावर क्षेत्र में इसे कठाले कहते हैं! 
कठैतगर्दी- गढ़वाल के इतिहास में पांच भाई कठैतो के अत्याचार को कठैतगर्दी कहा जाता है उत्तराखंड के इतिहास में! 
कपिलेश्वर मंदिर- यह मंदिर कुमिया व सकुनी नदी के संगम में अल्मोड़ा जनपद में स्थित है! 
कमीण- राजस्व अधिकारी को
करकोटक नाग मंदिर- भीमताल के पांडे गांव में
करगैत मंदिर- बद्रीनाथ मंदिर के लिए यह प्रसिद्ध मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है
कर्ण देवता मंदिर- उत्तरकाशी
कर्मान्त- कत्यूरी प्रशासन मे तहसील स्तर की प्रशासन इकाय जिस का उल्लेख धुतीवर्मन तथा सुमिक्षराज के  ताम्रपत्रों में किया गया! 
करवीरपपुर- यह भी कत्यूरी प्रशासन की एक इकाई थी जिसका वर्णन धुतीवर्मन के तलेश्वर ताम्रपत्र में मिलता है
कलियर शरीफ- यह रुड़की में स्थित है हजरत मोहम्मद अलाउद्दीन अली अहमद साबिर की दरगाह है
कवल्लीकुर्मो- कुमाऊं के दारमा आर्थिक दंड सूचक शब्द है! 
कव्वालेख - यह बागेश्वर जनपद में स्थित है! यहां पर हजारों कौवे के पंख दिखते हैं
कंसेरी- यहां उत्तराखंड का एक वाद्य यंत्र है
काकभुसंडीताल- इसका आकार अर्धचंद्राकार है इस साल के विषय में यह कथा प्रचलित है यहां सारे कौवे अपना शरीर त्याग दें! 
काजा- जौनसार बावर क्षेत्र में महिलाओं के सौंदर्य प्रशासन की विद्या है जिसमें लड़की अपने शरीर पर सुई से टैटू गुदवाती है! 
गुलाब घाटी- काठगोदाम को गुलाब घाटी कहा जाता है! 
कार्तिकेय मंदिर- क्रौंच पर्वत रुद्रप्रयाग में यह मंदिर स्थित है यही हरियाली देवी मंदिर और कंडोलिया देवता मंदिर भी है! 
हेली नेशनल पार्क- इस पार्क की स्थापना 1936 में हुई थी इसका नाम संयुक्त प्रांत अवध के तत्कालीन राज्यपाल सर जॉन मैकलन हैली के नाम पर रखा गया था! 
कालकुट- कालसी का प्राचीन नाम कालकूट था जो कुणिंदो की राजधानी थी कालसी में अशोक के अभिलेख की खोज 1860 में फॉरेस्टर ने की थी! 

कालसिन मेला- यहां मेला चंपावत में लगता है
कालाढूंगी- यह नगर बोर नदी के तट पर है
कालामुनि पहाड़- यह पहाड़ पिथौरागढ़ में स्थित है! 
काशीपुर- बाज बहादुर चंद्र के समय 1640 में इनके अधिकारी काशीनाथ अधिकारी ने इसकी स्थापना की थी 1803 ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र पर ले लिया था! 
बाला सुंदरी मंदिर- यह मंदिर काशीपुर में स्थित है इसे उज्जैनी देवी मंदिर भी कहते हैं
कीमोद- जौनसार बावर का एक उत्सव है
किरजी- कंडाली महोत्सव के नाम से इसे जाना जाता है यह पिथौरागढ़ की चौदास घाटी में होता है  इसमें नृत्य करते समय युवा और प्रौढ महिलाएं भाग लेती है! 
किलकेलेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर श्रीनगर पौड़ी जनपद में स्थित है
कीर्ति नगर- शहीदी नगर के नाम से इसे जाना जाता है  इसकी स्थापना 1896 में कीर्ति शाह ने की थी! 
कुकुछिना- यह गुफा अल्मोड़ा में स्थित है! 
कुकुरालो- यहां चंद्र वंश के समय एक टेक्स था जो बाज बहादुर चंद्र के समय शुरू हुआ था! 
कटकु (पढवा) -  यह कुमाऊं मंडल की एक वीरगाथा है कटकु  नौला पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है! 
बाबा कालू सैय्यद- बीड़ी वाले बाबा के कहा जाता है यहां प्रसाद के रूप में बीड़ी दी जाती है! 
कुत- चंद्र कालीन भू व्यवस्था के अंतर्गत नगद के बदले अन्न दिया जाने वाला कर कुत कहलाता था! 
कुजांपुरी देवी- टिहरी
कुटेटी देवी- उत्तरकाशी के वर्णावत पर्वत पर यह मंदिर है इसे ऐरासु गढ कहा जाता है! 
कुण्डाखाल प्रथा- यहां भोटिया तथा तिब्बत व्यापारियों की गमय्या प्रथा है! 
कुमाऊं- चंद्रवरदाई के पृथ्वीराज रासो ग्रंथ में इसको कुमाऊं गढ़ कहा गया है इसका पूर्वांचल नाम सर्वप्रथम राजा कल्याण चंद्र के चंपावत स्थित नागनाथ मंदिर के शिलालेख में पाया गया है रुद्र चांद के नाटक उषा रुद्र गौरेया मे इसे कुर्मागिरी कहा गया है! कुमाऊं शब्द का प्रयोग मुस्लिम इतिहासकार अब्दुल्ला के ग्रंथ तारीखें दाऊदी में दिल्ली के सुल्तान इस्लाम शाह के समय किया गया था 1802 मेला ज्वेलरी ने यहां की वन संपदा एवं जलवायु की जानकारी के लिए मिस्टर गाट को यहां भेजा था! 
1811-12 में मूरक्राट और हेयरसी  भी कुमाऊं के रास्ते तिब्बत गए थे लार्ड हेस्टिंग्स भी गुप्त रूप से सर्वेक्षण पर यहां आया था! 
पशुपति मंदिर- यह मंदिर नेपाल में स्थित है! 
कुमासेण देवी मंदिर- यह मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
कुम्हडी देवी- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है
कुल्लेयवाप- यह कुमाऊं मंडल में रेका शासनकाल में भूमि माप का बोधक है! 
कुस्मांडादेवी- यह देवी मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है! 
केदार गंगा- यह नदी चमोली में बहती है स्वर्गारोहिणी से निकलती है! 
केदारनाथ मंदिर- भगवान शिव के 52 ज्योतिर्लिंगों मे  केवल यही ऐसा है जो शिलात्मक है  यह लिंगात्मक नहीं है  यह मंदिर कत्यूरी शैली मैं नागर शिखर युक्त है! 
कैंची धाम- 15 जून 1976 को जहां पर माता वैष्णो और हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई यह मंदिर बाबा नीम करौली द्वारा बनाया गया! 
कैलाशी या कलावीर- मुस्लिम पीर  या वीर बाबा इनकी आराधना केवल गढ़वाल मंडल में होती है यह टिहरी जनपद में स्थित है! 
छोटा कैलाश धारचूला (पिथौरागढ़) और नैनीताल जनपद में स्थित है
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश में स्थित है! 
केलुवा विनायक- यह चमोली जनपद में स्थित है
कोकरसी या कुकरसी- यह जौनसार क्षेत्र के देवता होते हैं और उनकी प्रगति बहुत ही क्रोधित स्वभाव की होती है! 
कोकीलादेवी- पिथौरागढ़ में स्थित है
कोटगाडी देवा- यह मंदिर पिथौरागढ़ में स्थित है
कोटयुला या कोटुली- छोटे आकार के किलो को कोटयूडा कहा जाता है
कोटकांगडा देवी- यह मंदिर द्वाराहाट अल्मोड़ा में स्थित है! 
कोटकीमायी- अल्मोड़ा में कत्यूरी वंश की देवी कोट भ्राभरी देवी के नाम से जानी जाती है! 
कोटवी देवी- पिथौरागढ़ का यह मंदिर असुर कुल से संबंधित यह मंदिर है
कोटाल-  ग्राम प्रधान के अधीन एक कर्मचारी
कोटीप्रयाग- रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
क्युकालेश्वर मंदिर- यह श्रीनगर पौड़ी के कीकांश पर्वत पर स्थित है! 
क्युसरदेवता मंदिर- टिहरी में स्थित नाग देवता का मंदिर
कोटालगढ- बाणासुर के किले का अन्य नाम है! 
कौसानी- कौसानी को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का श्रेय रैम्जे साहब को जाता है  कौसानी में गांधीजी की  शिष्या सरला बहन ने कस्तूरबा महिला आश्रम की शुरुआत की थी! 
खडगेश्वर महादेव- पिथौरागढ़ के अस्कोट के रजवार शासक खड्कपाल ने बनाया था
खलियाप्रथा- यहां पर था किसानों के जीवन का एक अंग है! 
खसमंडल- बाराही संहिता व  वायु पुराण में केदारखंड को खसमंडल कहां गया है! 
खसरा या खतौनी- जमीनों से संबंधित जो देखा जो का होता है उसे खसरा कहते हैं
खरसाली- सोमेश्वर देवालय में 5 मंजिला भवन! 
खिचड़ी नृत्य- थारू जनजाति में होली के समय दो नृत्य प्रसिद्ध है होली नृत्य और खिचड़ी नृत्य
सादी होली नृत्य मैं केवल पुरुष स्त्रियों की वेशभूषा में नृत्य करते हैं परंतु खिचड़ी नृत्य में दो पुरुषों के बीच एक महिला या दो महिलाओं के बीच एक पुरुष नृत्य करता है! 
खील/कटिल- यह शब्द बंजर भूमि के लिए प्रसिद्ध है! 
खेल- पिथौरागढ़ का एक लोक नृत्य है! 
गंगनाथ मंदिर- यह  कुमाऊं मुख्य रूप से sc जनजाति के  इष्ट देवता माने जाते हैं! 
गढ़ मुक्तेश्वर - लोहावती व  महाकाली नदी के संगम पर  स्थित है उत्तराखंड के चंपावत जनपद के अंतर्गत यह स्थल आता है भारत में गढ़मुक्तेश्वर नामक स्थल बिजनौर में भी है! 
गणनाथ- यह स्थल अल्मोड़ा जनपद में स्थित है 23 अप्रैल 1815 में हस्तीदल चौथे  को यहां वीरगति प्राप्त हुई यहीं पर हर्ष देव जोशी की भी मृत्यु हुई थी! 
गणेश गंगा- गरुढ हिमानी के नाम से प्रसिद्ध यह नदी चमोली जनपद में है! 
गणयात मेला- जौनसार बावर क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला! 
गवलादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
गर्खो- चंद्र शासन कालीन राजस्व संबंधी एक प्रशासन इकाई थी जिसका प्रधान कोने की कहा जाता था
गमोरी गुफा- पाषाण कालीन यह गुफा चंपावत जनपद में स्थित  है! 
गिर का कौतिक- यह मेला अल्मोड़ा जनपद में लगता है! 
गिरथी गंगा- यह चमोली के किंगरी बिंगरी पर्वत कि पश्चिमी ढाल से निकलती है! 
गुढकेदार का मेला- अल्मोडा
गुणादित्य का मंदिर- यह सूर्य मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है! 
मणिकर्णिका कुंड रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है परंतु मणिकर्णिका घाट उत्तरकाशी जनपद में स्थित है! 
गुरु बेनी-गुरु भाई- चमोली में यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है  इसका उद्देश्य सामाजिक स्तर पर युवक-युवतियों के बीच भाई-बहन के संबंध को बनाए रखना है! 
गैडागर्दी- कुमाऊ के इतिहास में 720-29 तक का समय गया ड गर्दी के नाम से जाना जाता है इस समय राजा देवी चंद था! 
शोंकर्णेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
रति कुंड- गोपेश्वर चमोली
गोविषाण- काशीपुर का यह प्राचीन नाम है यहां 1745 में शिवदत्त जोशी ने किला बनाया था 1764 में इनकी हत्या हो गई थी! 
गोरखा किला- यह किला पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है! 
गोरखनाथ धुनी- चंपावत के क्रांतेश्वर पर्वत पर यह धुनी है! 
गौरिल चौड- चम्पावत
गोलदार- राजाओं के रक्षा अधिकारी
गोलक्ष- पौड़ी गढ़वाल
1963 में गोपेश्वर चमोली राजमार्ग को बनाया गया था! 
घटकु देवता- यह मंदिर चंपावत जनपद में है यह भीम पुत्र घटोत्कच का मंदिर इसी के पास इनकी माता हिडिंबा का मंदिर है इसे हिंगला देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है! 
Note- हिडिम्बा पर्वत  नैनीताल जनपद में स्थित है
घड़ियाल उत्सव- यह उत्सव तेरी जनपद में होता है
घुनशेरा उत्सव- यह उत्सव पिथौरागढ़ जनपद में होता है! 
घोडाखाल- यह नैनीताल जनपद में स्थित है यहां गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे बाज बहादुर चंद्र ने बनाया था और यहीं पर 21 मार्च 1966 को सैनिक स्कूल की स्थापना की गई थी! 
चण्डाक का मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है इसी के पास मोस्टामानु मंदिर भी है! 
Note- चण्डाक कोट  का किला चंपावत जनपद में स्थित है! 
चंडी  देवी मंदिर- हरिद्वार में नील पर्वत में स्थित इस मंदिर का निर्माण 1866 में जम्मू के राजा सुरचैत सिंह द्वारा कराया गया था 1997 में यहां पर रोपवे की शुरुआत की गई! 
चंद्रकुवंर बतर्वाल- इनके पिता का नाम भोपाली सिंह था उनका जन्म 20 अगस्त 1919 को रुद्रप्रयाग में हुआ! 
चंद्रबदनी मंदिर- चंद्रकुट पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर  टिहरी जनपद में स्थित है जहां किसी देवी की मूर्ति नहीं है! 
चंद्र सिंह गढ़वाली- उनका जन्म 24 दिसंबर 1891 को पौड़ी में हुआ इनके पिता का नाम जाथली सिंह था  लखनऊ जेल में रहते हुए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली मार्क्सवाद से प्रभावित हुए थे 26 सितंबर 1941 को एक 11 वर्ष 3 माह 18 दिन के बाद जेल से मुक्त हुए थे 1942 में वर्धा आश्रम (गुजरात)  में श्री देव सुमन उनसे मिले थे! 
17 साल बाद 22 सितंबर 1946 को इन्हें गढ़वाल में प्रवेश करने की अनुमति मिली और वहां सबसे पहले कोटद्वार पहुंचे! 
चम्पूली- यह पूर्वी शौक  जनजाति का लोक नृत्य है
चमदेवल मंदिर- यह मंदिर चंपावत में है
चित्ररेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर चित्रसिला घाट अर्थात रानीबाग नैनीताल में स्थित है
छिपुलाकोट- यह पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
छुरमल देवता- यह पिथौरागढ़ की राजी जनजाति के लोक देवता है
जगदीश्वरी या जग्देई मंदिर- यह मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
जगात- नेपाल सरकार द्वारा चंद्र ठेकेदारों से प्रति जानवर लिया जाने वाला कर था! 
जरीब- अंग्रेजों के समय भू व्यवस्था संबंधित एक भूमि माप कि लोहे की श्रृंखला इस का सर्वप्रथम प्रयोग विकेट द्वारा किया गया इसे विकेट चैन भी कहा जाता है जो 20 गज लंबी थी! 
जाख देवता मंदिर-  रुद्रप्रयाग
जाखनदेवी/यक्षर्णी देवी मंदिर- अल्मोडा
जागेश्वर मंदिर- यह मंदिर आठवीं से 10 वीं शताब्दी के आसपास का है इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में हुआ है इसी मंदिर मैं हाथ में दीपक लिए हुए राजा दीपचंद्र और उसकी रानी की कास्य मूर्ति है यहां राजा   त्रिमलचंद्र की 40 किलो की रजत मूर्ति थी जो 1968 में चोरी हो गई
जाजलदेवी- यहां मंदिर सिरा क्षेत्र पिथौरागढ़ में स्थित है
जाती मेला- यहां मेला पांडुकेश्वर चमोली जनपद में लगता है! 
जाह्नवी नौला- यह नौला अल्मोड़ा जनपद में स्थित है
जिम कार्बेट- जिम कार्बेट का जन्म 24 जुलाई 1875 नैनीताल में हुआ  इन्होंने बंगाल नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे में नौकरी की तथा 1914 के प्रथम विश्व युद्ध में मेजर के रूप में अफगानिस्तान के सहायता शिविर में कार्य किया था 1928 में यह नगर पालिका परिषद नैनीताल के उपाध्यक्ष भी रहे 19 अप्रैल 1955 को इनका निधन के केन्या हुआ! 
जोश्यानी कांड(1785) - वर्ष 1785 में हर्ष देव जोशी ने जयकृत शाह पर आक्रमण किया था इस घटना को जोश्यानी कांड कहा जाता है इसके बाद 1786 में जयकृत शाह ने आत्महत्या कर ली थी! 
जिया रानी अर्थात मौला देवी- राजा अमर देव पुंडीर की पुत्री जिन्हें कुमाऊ की झांसी की रानी कहा जाता है इनके विवाह का वर्णन सरमन ओकले साहब ने  अपनी पुस्तक हिमालयन फोकलोर में किया है! 
जौलजीवी मेला- विकासखंड डीडीहाट में यह मेला लगता है जिसका प्रारंभ अस्कोट के राजा राजेंद्र बहादुर सिंह ने कराया था! 
ज्युला- अन्य की माप का परिमाण
ज्वाला देवी मंदिर काशीपुर में स्थित है और ज्वालपा देवी मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है! 
झांकर सैंण - यह मंदिर नाग देवता का मंदिर है जो अल्मोड़ा में स्थित है! 
झाल- उत्तराखंड का धातु निर्मित वाद्य यंत्र
झाली माली देवी- यह मंदिर हिडिंबा मंदिर के पास चंपावत में स्थित है इसकी खोज यशोधर मठपाल जीने की! 
झूठा मंदिर- झूमा तथा झूठा मंदिर चंपावत में है परंतु झूला देवी मंदिर रानीखेत अल्मोड़ा में स्थित है! 
टनकपुर-: कुमाऊ का गास्टिगंज कहा जाता है इसकी स्थापना मिस्टर टलक ने की  इसे 1972 में नगरपलिका का रूप दिया गया! 
ट्रेलपास- यहां दर्रा पिथौरागढ़ को चमोली से जोड़ता  इसकी खोज सर्वप्रथम 1830 में कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल ने की! 
टोकरियाँ मेला- यह मेला पिथौरागढ़ जनपद में लगता है! 
डांगबुगडयागंल ताल- सलया देवता  मंदिर यहीं पर स्थित है जहां पत्थर का प्रसाद चढ़ाया जाता है! 
डांडा नागराजा- यह मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है
ढुढेश्वर मंदिर- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है! 
तख्त- बुक्सा जनजाति में एक न्याय सकता है
तप्त कुंड- यमुनोत्री उत्तरकाशी में स्थित इस कुंड का सर्वाधिक गर्म है! 
तपोवन- यह उत्तराखंड के 4 जगह में फैला हुआ है ऋषिकेश चमोली पिथौरागढ़ उत्तरकाशी
त्यूनी- पत्थर से बना सिराहना
ताडीखेत- कमला लेख पहाड़ी पर स्थित है यही 1929 में गांधी जी के आगमन पर गाजी कुटिया का निर्माण कराया गया! 
तामाढौन- यह युधिस्टर अल्मोड़ा में स्थित है यहां प्रदीप साह और दीपचंद्र के बीच युद्ध हुआ था
तारा ताल- यह ताल रानीखेत अल्मोड़ा में है
ताडकेश्वर- यह पौड़ी जनपद में स्थित है
तारकेश्वर- यह चंपावत में स्थित है यही सीताकुंड भी स्थित है! 
तिलका देवी मंदिर- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है! 
रावण शिला- यह सिला रुद्रप्रयाग में स्थित है रावण माठ भी यही है!. 
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर- इस मंदिर का निर्माण उद्धोत चंद्र ने  अल्मोड़ा में कराया था! 
त्रिपुरा सुंदरी देवालय -यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है! 
तिमुंडिया देवता का नृत्य- यह नृत्य उत्सव जोशीमठ चमोली के नरसिंह मंदिर के प्रांगण में होता है! 
बद्रीनाथ के कपाट खुलने से पूर्व तिमुडिया देवता नृत्य का आयोजन किया जाता है! 
त्रिजुगी नारायण मंदिर- रुद्रप्रयाग बद्रीनाथ में बद्री विशाल के दर्शन उसे पहले जोशीमठ के नरसिंह मंदिर के दर्शन करना आवश्यक माना जाता है इस प्रकार केदारनाथ के दर्शन उसे पहले त्रिजुगीनरायण के दर्शन आवश्यक माने जाते हैं! 
थर- चंद्रवंशी मैं 6 प्रकार के थर नियुक्त किए गए थे- देव देख मेहरा फर्त्याल धोनी करायार
थर्प- कत्यूरी सामंत के प्रशासनिक भवन रजवाड़ों के महल को भी थर्प कहा जाता है! 
भूससेण देवता- थारू जनजाति में भूमि और किसी की रक्षक देवता होते हैं! 
दक्षिण काली देवालय- यह मंदिर चमोली जनपद में स्थित है! 
दामतारो या दामघडी- वधू मूल्य
दिखनौरी प्रथा- थारु में देख दिखावा प्रथा
देवरिया ताल- रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है
देवीधार- चंपावत जनपद में लगता है! 
भारतीय वन्यजीव संस्थान की स्थापना 1982 देहरादून में हुई भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1767 में हुई जिसे 1942 में देहरादून लाया गया! 
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन की स्थापना 14 अगस्त 1956 को देहरादून में हुई राष्ट्रीय दृष्टि बाधितार्थ संस्थान की स्थापना 1979 देहरादून में हुई
घौंसिहा मंदिर- यह मंदिर चमोली जनपद में है! 
घुरमा देवता- इन्हें वर्षा का देवता कहा जाता है! 
नकुलेश्वर मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है थल केदार पहाड़ी में
नंदा देवी शिखर- 25689 फीट
नठाली- चल अचल संपत्ति
नागथात- इसे वासुकी नाग मंदिर के नाम से जाना जाता है जो देहरादून जनपद में है नागपुर रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है! 
नागफनी- सुशीर वाद्य यंत्र जो पीतल और तांबे से बना होता है! 
नागिनी देवी मंदिर- यहां मंदिर उत्तरकाशी जनपद में स्थित है! 
नागनाथ पोखरी- यह मंदिर क्रोंच से पर्वत रुद्रप्रयाग में स्थित है
नंदा राज जात यात्रा- पहली 1881 दूसरी 1905 तीसरी 1925 और आखिरी 2014
नागार्जुन पर्वत- यह अल्मोड़ा के द्वाराहाट में स्थित है यही विमाण्डेश्वर  महादेव मंदिर भी स्थित है! 
नीलकंठ महादेव मंदिर- पौड़ी के यम्केश्वर विकासखंड में झिलमिल गुफा के पास यह मंदिर स्थित है! 
नलिया आदित्य मंदिर- चंपावत में स्थित है
नैथीनी देवी मंदिर- यह मंदिर अल्मोड़ा जनपद में स्थित है! 
नैनीताल- इसकी को 1841 में पी बैरन ने की  यह पहला विदेशी था जिसने बद्रीनाथ और केदारनाथ की पैदल यात्रा की थी यह कविता पिलग्रिम नाम से लिखता था  1845 में नैनीताल नगर पालिका की स्थापना हुई! 
नौढा कौतिक- यह मेला रुद्रप्रयाग में लगता है जिसे लठमार मेला भी कहा जाता है! 
पंचगंगा- गंगा यमुना अलकनंदा भागीरथी धौलीगंगा पंचगंगा में आती है! 
पटरंगवाली प्रथा- इंद्रचंद के समय चली
प्रतापनगर- इसकी स्थापना 1877 में प्रताप शाह ने की थी
प्लेठी  का सुर्य मंदिर- इसकी स्थापना कल्याण बर्मन ने देवप्रयाग में की थी यह उत्तराखंड का पहला सूर्य मंदिर
पागल नाला- यह नाला चमोली जनपद में स्थित है
पांडुकेश्वर चमोली जनपद में पांडूखोली गुफा अल्मोड़ा जनपद में है
पाथा- अन्न मापने का एक पैमाना
पाली पछाऊ क्षेत्र- द्वाराहाट रानीखेत के क्षेत्र को पाली पछाऊ क्षेत्र कहते हैं! 
पावनेश्वर का सूर्य मंदिर- अल्मोड़ा
पिंडारी ग्लेशियर- यह ग्लेशियर बागेश्वर जनपद में है जिसकी खोज 1846 मेंडेन की! 
पिथोरागढ- इसकी स्थापना  कत्यूरी राजा पिथौरा शाही ने की  इसकी स्थापना लगभग 1398 ईस्वी में हुई! 
पिंगनाथ- बागेश्वर अल्मोड़ा
पीपलकोटी- चमोली में अलकनंदा और लक्ष्मण गंगा के संगम में बसा है! 
पिनाकेश्वर मंदिर- इस मंदिर का निर्माण बहादुर चंद ने किया था
पुंगेश्वर महादेव मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
पुष्ठि देवी मंदिर- यह मंदिर अल्मोड़ा जनपद में हैं जहां प्रसाद को ग्रहण नहीं किया जाता है! 
फडकानौली- इन शैल चित्रों की खोज यशोधर मठपाल ने अल्मोड़ा में की! 
फतेह पर्वत- उत्तरकाशी में टोंस नदी के किनारे स्थित है! 
फिक्कवाल- यह प्रथा ज्योतिष के आधार पर हाथ देखना होती है! 
फूलों की घाटी- फूलों की घाटी की खोज सिडनी निवासी फ्रैंक स्माइथ ने1931 मे की थी  1939 में लंदन निवासी जवान मार्गरेट लैलिन यहां पर चल कर मर गई
फेनीनाग- यह नाग देवता मंदिर बागेश्वर में स्थित है! 
फेराभात- चंद्रवंशी के समय कर्मचारियों के खाने पीने के लिए दिया जाने वाला कर
फैला देवता-मारछा  जनजाति की प्रमुख देवता है जो चमोली में निवास करते हैं
बग्वालीपोखर- क्या अल्मोड़ा में स्थित है 
❤बाज बहादुर शाहजहां की सेना में भर्ती हो गए थे बाज बहादुर ने कवि अनंत देव को आश्रय दिया था स्मृति कौस्तुभ अनंत देव की रचना है
लोकपाल झील- इस ताल की खोज सोहन सिंह ने 1936 में की
हंदिया नृत्य- जौनसारी जनजाति में बूढ़ी दिवाली के अवसर में किया जाने वाला नृत्य
सेलकु उत्सव- यह उत्सव उत्तरकाशी में होता है! 
सेरा/सेरी- कृषि भूमि
सूर्या देवी मंदिर- तराई भाबर की रक्षक देवी सूर्या देवी का मंदिर नैनीताल में है! 
सीमार- ऐसी जलीय भूमि जो किसी योग्य नहीं हो! 
सातो आठो महोत्सव- पिथौरागढ़
सलिया देवता- यह मंदिर टिहरी जनपद में स्थित है
शिव प्रयाग- अलकनंदा और खाडव नदी के संगम में यह प्रयाग चमोली जनपद में है! 
सूर्य प्रयाग- मंदाकिनी और अलसतरंगिनी नदियों के संगम में यह प्रयाग चमोली जनपद में है! 
मलकटिया देवी- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में
मासी का मेला- यह मेला अल्मोड़ा जनपद में लगता है जहां सामूहिक रूप से मछली मारने की कला का प्रदर्शन किया जाता है! 
मायावती आश्रम- 1901 में स्वामी विवेकानंद यहां आए थे इसकी स्थापना का श्रेय कैप्टन सैवियर को जाता है  आरंभ में इसे मेंबाट कहा जाता है! 
मनीला देवी मंदिर- रानीखेत अल्मोड़ा में
बाबा मनिक नाथ मंदिर- तेरी जनपद में
लंढौर बाजार- 1828 मसूरी
मसूरी- 1823 में कैपिटल यंग और एफ जे शोर यहां आए थे  मसूरी को विकसित करने का श्रेय सर्वाधिक जॉन मैककिनन को जाता है! 
शिवलिंग शिखर- यह उत्तरकाशी जनपद में स्थित है
मल्लिकार्जुन और मलिका देवी मंदिर- यह दोनों मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है और अल्मोड़ा जनपद में भी! 
मनीभदू- तोरछा और  मारछा  जनजाति के देवता
मढ. का सुर्य मंदिर- यह मंदिर पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
मंझरा- थारू जनजाति की जाति पंचायत
मंजूघोष  मंदिर- यह मंदिर पौड़ी जनपद में स्थित है
मक्कुमठ- शीतकाल में जब जब तुंगनाथ के कपाट बंद हो जाते हैं तो उनकी डोली मक्कुमठ में रखी जाती है! 
भोटिया- इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग विलियम ट्रैल के शासनकाल में किया गया! 
भीलेश्वर मंदिर- टिहरी
भाटकोट का किला- पिथौरागढ़ जनपद में स्थित है
भवाली- रविंद्र नाथ टैगोर ने गीतांजलि यही लिखी थी! 
बौराडी या बौराणी- यह मेला पिथौरागढ़ में लगता है इसे जुआ मेला आया धुत कीड़ा मेला भी कहते हैं! बेकर- चंद्र वंश के समय लिया जाने वाला भूमि करता
बाला सुंदरी मंदिर- यहां मुगल शैली का मंदिर है जिसे औरंगजेब ने बनाया था
बूढ़ी दिवाली- दिवाली से 11 दिन बाद मनाई जाने वाली दिवाली! 
विष्ठाली- इस कचहरी का निर्माण शक्ति गुसाई ने किया था जिसे उत्तराखंड का धृतराष्ट्र कहा जाता है ! 

घनश्याम जोशी भाग-2

157- फुल देई चैत मास की संक्रांति को मनाया जाता है इस समय घरों में  साई बनाई जाती है! इसी महीने स्त्री का भिटोला भी आता है ! 
158- बिखौती में बाड़े पकाए जाते हैं और ताला डालने की प्रथा भी प्रचलित है! 
159- हरेला करके संक्रांति के दिन मनाया जाता है इसमें 7 या 5 प्रकार के अनाज बोये जाते जिन्हें 9-10 दिन में काटा जाता है! 
160- श्रावण पूर्णिमासी इसे रक्षाबंधन या जन्योपुन्यो कहा जाता है इसी दिन देवीधुरा का मेला लगता है! 
161- धृत संक्रानती या घ्यु त्यार इस त्यौहार को ओलगिया भी कहते हैं! 
162. खतडवा यह त्यौहार कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है! 
163. नंदा अष्टमी उत्सव यह उत्सव भाद्र माह की शुक्ल षष्टी को मनाया जाता है! नंदा देवी का डोला हेमकुंड के चबूतरे में रखा जाता है! 
164. मकर संक्रांति इस त्यौहार को घुघूतीया त्यौहार के नाम से जाना जाता है! 
165. तप्त कुंड सूर्य कुंड सप्त ऋषि कुंड ब्रह्म कुंड यमुनोत्री में हैं! 
166. गौरीकुंड रुद्रप्रयाग भाग कुंड चमोली तप्त कुंड और नारद कुंड बदरीनाथ सती कुंड हरिद्वार सूर्य कुंड विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड गंगोत्री में है! 
167. गरुण शीला मारकंडे शीला नर शीला नारद जिला वराह शीला चरण पादुका सिला बद्रीनाथ में है! 
168. भगीरथ शीला भृगु शिला गंगोत्री में है! 
169. उत्तराखंड में 81000 हेक्टेयर भूमि उत्पादन के लिए कार्य में ली जाती है! 
170. दुन क्षेत्र का बासमती चावल विश्व में काफी प्रसिद्ध है! 
171. कोटली भेल परियोजना गंगा नदी पर टिहरी गढ़वाल में है! 
172. भिलंगना परियोजना भागीरथी नदी पर टिहरी जनपद में है! 
172. चीला परियोजना गंगा नदी पर पौड़ी जनपद में स्थित है! 
173. उत्यासू परियोजना अलकनंदा पर पौडी जनपद में है! 
174. कुमाऊं आयरन वर्कर कंपनी लिमिटेड
की स्थापना 1862 मे हूई! 
175. 1834 में चाय के बागान विकसित हेतु चाय काफी चीन से मगाया गया! 
176. उत्तराखंड में उत्पादित होने वाली चाय का ब्रांड कैच उत्तराखंड रखा गया है उत्तराखंड में सर्वाधिक चाय कौसानी घोडाखाल नौटी में होती है! 
177. चाय उत्पादन को प्रोत्साहन देने हेतु भारतीय चाय बोर्ड का मुख्यालय अल्मोड़ा में खोला जाने की योजना है सरकार द्वारा बनाई गई है! 
178. उत्तराखंड की 63% भूभाग वनों से घिरा हुआ है! 
179. राज्य में 10 हर्बल गार्डन स्थापित किए गए हैं साथ ही हरिद्वार टनकपुर रामनगर में जड़ी-बूटी मंडी स्थापित की गई है! 
180. भांग की छाल से बने कपड़ों को भंगेला या त्युखा कहां जाता है! 
181. उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण हरिद्वार उधमसिंह नगर में कार्यरत नहीं है सबसे ज्यादा घराट चमोली जनपद में स्थापित है! 
182. वास्तु शिरोमणि की रचना श्याम शाह के दरबारी साहित्यकार शंकर ने 1619 में संस्कृत भाषा में की थी! 
183. मौला राम के वंशज सुनार थे! उत्तराखंड शैली की चित्रकला का उत्पन्न 1658 में हुई जिन्हें प्रकाश में लाने का श्रेय बैरिस्टर मुकुंदी लाल को जाता है! 
184. मोलाराम ने गढ़राज वंशकाव्य, गढ़ गीता संग्राम मन्मथ सागर की रचना की थी  यह गौरखनाथ पंथ का अनुयायी था बाद में इतने मन्मथ  समुदाय का अनुयाय बना! मौला राम के अन्य चित्र मोर प्रिया नायिका एवं चकोर राजा ललित शाह एवं मोलइराम राधाकृष्ण नृसिंह मयूर मुखी जयदेव वजीर दंपति प्रमुख चित्र थे! 
185. चैतु व माण्डकु मौला राम के शिष्य थे! Imp-उत्तराखंड शैली के चित्रों में कांडा शैली के समान लघु चित्र है! 
186. बरेली के सूबेदार मिर्जा मेहंदी अली  बेग को हर्ष देव जोशी ने  कुमाऊ की स्थिति बताएं और अमर सिंह थापा जगजीत पांडे शूरवीर थापा, हस्तीदल चौतरिया बहादुरशाह के साथ मिलकर 1790 में कुमाऊं नरेश महेंद्र चंद( कुमाऊँ का अंतिम चंद राजा) पर आक्रमण किया! इस समय नेपाल का राजा रण बहादुर शाह था! 
187.  नेपाल नरेश नरभुपाल के पुत्र पृथ्वी नारायण(1743-75)ने नेपाल का एकीकरण किया! जिस कारण से नेपाल का बिस्मार्क कहते हैं! 
188. 1804 में गोरखाओ ने गढ़वाल नरेश प्रघुम्न शाह को हराकर गढ़वाल में गोरखा शासन की नींव रखी! यह युद्ध यमुना तट पर खुडबुडा मैदान में हुआ जिसमें प्रघुम्न सा मारा गया! 
189. 30 नवम्बर 1814  में अंग्रेजों ने देहरादून पर अधिकार किया! 
190. 27 अप्रैल 1815  को कुमाऊं कमिश्नर गार्डनर और गोरखा सेनापति बम शाह  के बीच समझौता हुआ और नवंबर 1815  संगोली संधि हुई जिसमें  अमर सिंह थापा ने हस्ताक्षर किए! 
जिसको मंजूरी 1816 में दी! 
191. कप्तान हेरसी ने हर्ष देव जोशी को कुमाऊ का अर्लवारविक और विशाल व्यक्तित्व वाला व्यक्ति कहा  है! 
192. गोरखा काल में स्थाई सेना दो प्रकार की होती थी सैनिक जगरिया और ढाकरिया! 
193. गोरखा प्रशासन सैनिक प्रशासन था जिसमें मामलों की सुनवाई बिचारी नामक अधिकारी करता था और जिन मामलो के साक्ष्य से नहीं होते थे  उनमें न्याय दिव्य प्रणाली के आधार पर होता था! 
194. गोरखा काल में राजद्रोह तथा गौ हत्या मृत्युदंड तथा चोरी में अंग काट दिए जाते थे किसी के प्रति व्यभिचार विचार रखने पर  उसे अर्थदंड दिया जाता था निम्न वर्ग द्वारा उच्च वर्ग की हुक्का पीने में भी मृत्युदंड का प्रावधान था! 
195. गोरखा काल में भूमि कर प्रमुख कर था जो इसे नहीं देता था उसे दास बना कर हरिद्वार में भेज दिया जाता था! इन्हें ₹10 से  ₹150 में बेचा जाता था! 
196. मौकर(गृहकर) बुनाई कर या ताना कर  घी कर सलामी या नजराना कर  जिसे उच्च अधिकारियों को उपहार स्वरूप दिया जाता था! 
197. सौन्या फागुन  कर गोरखा करता जो त्योहारों या उत्सव पर लगता था! 
198. मांगा कर  व्यस्क व्यक्ति पर लगता था!और कुशही कर कृषक ब्राह्मण पर लगता था! 
199. पंडित हरीकृष्ण रतूड़ी ने  गोरखा शासन के लिए कहा- संसार में कितने ही बड़ी शक्ति क्यों ना हो पर जब वह न्याय और नियम से खाली हो और अत्याचार की बुनियाद पर खड़ी हो वह कदापि अधिक समय तक स्थिर नहीं रह सकती थी
200. गोरखा काल में औरतों को छत पर जाना मना था और इस समय कर स्वेच्छा से वसूल किया जाता था! 
201. जहांगीरनामा शाहजहांनामा तारीख ए बदायूनी मआसिर उल उमरा नामक ग्रंथों से परमार वंश की जानकारी मिलती है! 
202. एटकिंसन साहब ने पवार वंश की वंशावली अल्मोड़ा से खोजी है! 
203. जगतपाल का शिलालेख 1455 ई.का था! 
204. मानोदयकाव्य के अनुसार  अजय पाल का पुत्र सहजपाल था जिसे शत्रुओं का नाशक, विद्वानों का आंसर दाता प्रजा का हितेषी और दानवीर कहा है! 
205. सहजपाल  2 अभिलेख 1539 और 1561 ई. के देवप्रयाग से प्राप्त हुए! 
206. श्याम शाह के समय जेसुएट पादरी  श्रीनगर आया था 1624 में पादरी अन्तोनिया दे आन्द्रोद श्रीनगर आया था! श्याम शाह के काल में ही सती प्रथा के पहले साक्ष्य मिलते हैं! 
207. मौलाराम ने महिपति साह को प्रचंड भुंजदंड कहा है! महिपति शाह ने ही रोटी सूची प्रथा चलाई थी! 
208.1635 से 1640 तक पृथ्वीपति शाह की संरक्षिका महारानी कर्णावती रही! 
209.

Tuesday, April 12, 2022

घनश्याम जोशी भाग 1

1.उत्तराखंड में पुरातत्व की खोजो का श्रेय हेनवुड को जाता है इन्होंने 1856 में  देवीधुरा से महापाषाण कालीन अवशेषो को खोजा था! 
2.1951 में हरिद्वार के निकट बहादराबाद में ताम्र उपकरण और मृदभांड खोजें 1952 में की गई!  इसी स्थल से यशोधर मठपाल ने भी उत्तर पाषाण कालीन अवशेष खोजें! 
3.डॉक्टर धर्मपाल अग्रवाल ने थापली (उत्तरकाशी) से प्राप्त मृदभांड का काल 300 ईसवी पूर्व का बताया है! 
4.धनखलगांव (बग्वालीपोखर) पुरोला थापली के समान चित्रित  धूसर मृदभांड मिले हैं! 
5. धनखलगांव  रानीखेत के बग्वालीपोखर में है यहां से चित्रित मृदभांड कुमाऊं विश्वविद्यालय ने 1998 में एमपी जोशी और बीडीएस नेगी के संरक्षण में खोजें! 
6.डॉक्टर यशोधर मठपाल ने अल्मोड़ा में पश्चिमी रामगंगा घाटी तथा नैनीताल से पुरापाषाण कालीन पाषाण उपकरण खोजें! 
9.शिव प्रसाद डबराल ने 1956 ईस्वी में मलारी गांव से महापाषाण कालीन  शवाधानो को खोजा था! इन शवाधानो को राहुल सांकृत्यायन खशो की समाधियों के रूप में उल्लेखित किया इस प्रकार के शमाधान सानणा  एवं बिसेडी गांव से भी प्राप्त हुए! 
10.1877 ईस्वी में रिबेट कार्नक ने द्वाराहाट के चंद्रेश्वर मंदिर से कपमार्क्स खोजें और डॉक्टर यशोधर मठपाल ने इस तरीके के  कपमार्क्स रामगंगा घाटी के नौला गांव से खोजे थे! 
11.लाखुगुफा की खोज 1968 में  महेश्वर प्रसाद जोशी ने की थी यह अल्मोड़ा के सुयाल नदी के तट पर है! 
12.ग्वारखा गुफा डूंगरी गांव चमोली में है यहां से लाल रंग के 8 मानव तथा 7 पशु आकृति इंगित है! 
13.चमोली जिले में पिंडर घाटी के  किमनी गांव से खोजे गए  यहां से मानव एवं पशु आकृति प्राप्त हुई है क्योंकि हल्के श्वेत रंग की है! 
14.कोल प्रजाति को उत्तराखंड की सर्वाधिक पूरा प्रजाति माना जाता है! 
15. कालिदास तथा बाणभट्ट की पुस्तकों में भी कोल जाति का वर्णन है पूरा साहित्य में इन्हें मुण्ड या शबर कहा गया है! 
16.कोल सिंधु सभ्यता के समान मृत्युको को खुले में फेंक देते थे! 
17.इनमें कुंवारा कुमारी प्रथा पाई जाती है! 
18.जौनसारी जनजाति उत्तराखंड के सर्वाधिक  जनसंख्या वाली जनजाति है! 
19. जौनसारी जनजाति अपने को पांडवों का वंशज बताती है! और कुंती को पूजती है! 
19.इनका समाज 3 वर्ग में बटा होता है- खसास, कारीगर, हरिजन खसास, 
20.जौनसारी जनजाति में संयुक्त परिवार प्रथा प्रचलित है और परिवार पितृसत्तात्मक होता है पहले यहां बहुविवाह प्रचलित था! 
21.जौनसारी समाज खुमरी और सयाणा प्रथा प्रचलित है! 
22.जौनसारी जनजाति का प्रमुख देवता महासू और प्रमुख तीर्थ लाखामंडल है! 
23. जौनसारी जनजाति के प्रमुख त्योहार विस्सु(बैसाखी),पाचोई(दशहरा),दियाई(दिपावली) और माघ  मेला है! 
24. जौनसारी जनजाति संगीत तथा नृत्य प्रेमी होती है रास रासो पांडववाला बराड़ी गाण्डिया पौवई आदि नृत्य और गायन  पसंद करते हैं! 
26. जौनसारी जनजाति का प्रमुख व्यवसाय कृषि है! 
27.किरात को स्कंदन पुराण के केदारखंड में भिल्ल शब्द से संबोधित किया है! 
28.किरात संयुक्त परिवार और मंगल प्रजाति से संबंधित थे शिव इनके  आराध्य देव थे! 
29. महाभारत की सभा पर्व में खशो का वर्णन है! इन्होंने महाभारत में कौरवों का साथ दिया था! 
30. राजशेखर ने  काव्य मीमांसा मे मध्य हिमालय के कार्तिकेय नगर में खशो  का उल्लेख किया! 
31.1885 ब्रिटिश काल में खशो  को शुद्र वर्ग में रखा गया! 
33.घर जमाई, जेलों, झटेला ठेकुवि प्रथा खसो में दिखाई देती है! 
34.भोटिया जनजाति को किरात प्रजाति से जोड़ा जाता है! 
35.ग्रंथों तथा अभिलेखों में भोटिया को शौका शब्द से संबोधित किया! 
36.ग्रीष्म काल(अप्रैल से जून) में भोटिया जनजाति निकली घाटी में जाते हैं! 
37. भोटिया जनजाति के समूह को स्थानीय भाषा में कुंज कहा जाता है! 
38.भोटिया जनजाति का मुख्य व्यवसाय पशुपालन तथा व्यापार है! 
39.भोटिया स्वयं को हिंदी क्षत्रिय मानते हैं! 
40. भोटिया जनजाति में राठ को बिरादरी का सूचक माना जाता है! 
41.भोटिया परिवार पितृसत्तात्मक तथा संयुक्त परिवार होते हैं! 
42.भोटिया जनजाति जौ एवं घी के मिश्रित से बने मुख्य खाद्य पदार्थों को यह सत्तू कहते हैं! 
43.भोटिया जनजाति शराब को पवित्र मानती है और शराब को च्यकती या द्वेग  कहती है! 
44. भोटिया जनजाति चावल से निर्मित पेय पदार्थों को यह जान कहते हैं! 
45. दहेज प्रथा भोटिया जनजाति में प्रचलित नहीं है! 
46.रड-बड प्रथा दारमा एवं व्यास घाटी के भोटिया जनजाति में प्रचलित है! 
47.भोटिया जनजाति में वर्षा के देवता को घुरमा देवता और संपत्ति के देवता को घबला देवता कहते हैं! 
48.भोटिया और तिब्बत व्यापारियों के बीच व्यापार संस्कार सुल्जी और मुल्जी है! 
49.उत्तराखंड का सबसे प्राचीन व्यापारिक मेला बागेश्वर का उत्तरायणी मेला है जो मकर संक्रांति के दिन लगता है! यहां मेला गोमती तथा सरयू नदी के संगम में लगता है! 
50. टिहरी रियासत का प्रथम राजा सुदर्शन शाह था जिसका कार्यकाल 1815 से 1857 ईसवी तक था
51. दूसरा प्रमुख व्यापारिक मेला जौलजीबी मेला है जो 14 नवंबर 1914 से लगातार लग रहा है! यह मेला काली तथा गोरी गंगा के संगम में लगता है! 
52.तीसरा प्रमुख व्यापारिक मेला थल मेला है जो कि अप्रैल महा में लगता है! 
53. टिहरी में 6 राजाओं ने शासन किया सुदर्शन शाह(1815-1857)भवानी शाह(1857-71)प्रताप शाह(1871-86)कृति शाह(1886-1913) नरेंद्र शाह(1913-50)मानवेंद्र शाह(1950) 
54.1825 से 1842 तक देहरादून का डिप्टी कमिश्नर टिहरी रियासत का एजेंट होता था! 1842 में कुमाऊं कमिश्नर को यह जिम्मेदारी दी प्रारंभ में यह जिम्मेदारी कुमाऊं कमिश्नर के पास थी! 
55.टिहरी रियासत को 1937 दिन में पंजाब हिल स्टेशन एजेंसी के साथ संयुक्त कर दिया गया था! 
56.1839 में गढ़वाल जिले का निर्माण हुआ! 
57.तराई जिला 1842 में अस्तित्व में आया! 
58. उत्तराखंड के औपनिवेशिक क्षेत्र का प्रथम कमिश्नर ए गार्डनर थे! 
59. कुमाऊ के प्रथम कमिश्नर जीडब्ल्यू ट्रेल थे! 
60. हैनरी रैमजे के काल को उत्तराखंड में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल का स्वर्ण काल कहते हैं! इन्हें कुमाऊ का राजा भी कहा जाता है यह मूल रूप से स्टॉकलैंड के निवासी थे इनका शासनकाल 1856 से 1884 तक था! 
61. उत्तराखंड में कांग्रेस की स्थापना 1912 में हुई जिसे अल्मोड़ा कांग्रेस के नाम से जाना जाता है! 
62.रुड़की कॉलेज की स्थापना 1847 में हुई  1854 में इसे थामसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग नाम देखकर तकनीकी शिक्षा संस्थान बनाया गया यह भारत एवं एशिया का प्रथम इंजीनियर विश्वविद्यालय है! 
63.1882 ईसवी में काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क मार्ग का निर्माण किया गया! 
64. सन 1882-84 के मध्य बरेली से काठगोदाम तक रेल मार्ग बिछाया गया परिणाम स्वरूप 24 अप्रैल 1884 प्रथम बार हल्द्वानी में रेल पहुंची सन 1900 में देहरादून में रेलवे स्टेशन की स्थापना की! 
65.1868 में उत्तराखंड का सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाला पत्र समय विनोद बना! 
66.1871 में अल्मोड़ा अखबार 1902 में गढ़वाल समाचार 1905 में गढ़वाली समाचार पत्र प्रकाशित हुए! 
67.समय विनोद का प्रकाशन 1878 में बंद हो गया! 
68. खत्याडी गांव अल्मोड़ा में 16 ग्रामीणों ने 21 जुलाई 1930 को  कुली बेगार देने की प्रथा का उल्लंघन किया! 
69. 1913 में अल्मोड़ा अखबार के संपादक बद्री दत्त पांडे जी बने! 
70. पुरुषार्थ एक बार 1918 में प्रकाशित हुआ! 
71. उत्तराखंड में होमरूल लीग की स्थापना 1914/1916 मे हुई! 
72. कुमाऊं परिषद की स्थापना 1916 में हुई! 
73. कुमाऊं परिषद का प्रथम अधिवेशन 1917 में अल्मोड़ा में हुआ जिसकी अध्यक्षता जय देव जोशी ने की इसका दूसरा अधिवेशन दिसंबर 1918 में हल्द्वानी में हुआ इसकी अध्यक्षता तारा दत्त गैरोला जीने की तीसरा अधिवेशन 1920 मे कोटद्वार में हुआ इसकी अध्यक्षता बद्री दत्त जोशी जी ने की चौथा अधिवेशन 1923 ईस्वी में  काशीपुर मे हुआ इसकी अध्यक्षता हर गोविंद पंत जी ने की पांचवा अधिवेशन 1923 में टनकपुर में हुआ इसकी अध्यक्षता बद्री दत्त पांडे जी ने की पांचवा अधिवेशन 1926 में हुआ जिसकी अध्यक्षता बैरिस्टर मुकंदी लाल ने की इसके बाद 1926 में यह कांग्रेस में मिल  गया! 
74. गढ़वाल परिषद की स्थापना 1919 में हुई इस का प्रथम अधिवेशन नवंबर 1920 में कोटद्वार में हुआ! 
75. 14 जून 1929 को गांधी जी उत्तराखंड(कुमाऊँ) के भ्रमण में आए! इस यात्रा का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक यंग इंडिया में भी किया! 
76 1922/28 में देहरादून से अवैध नामक पत्रिका प्रकाशन हुई! 
77.5 अप्रैल 1915 को गांधी जी हरिद्वार में आए थे दूसरी बार वह हरिद्वार मार्च 1916 मे आये थे! 
78. 12 मार्च 1930 को 240 मिल दांडी यात्रा में उत्तराखंड से ज्योतिरव कांडपाल भैरव देव जोशी खड़क बहादुर शामिल थे
79. 23 अप्रैल 1930 को पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली बने जो2/18 गढ़वाल राइफल से संबंधित है इस कांड का वर्णन मुंशी प्रेमचंद्र जी ने अपनी पत्रिका हंस में 30 जुलाई 1930 में किया! 
80. वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को गढ़वाली की उपाधि महात्मा गांधी जी ने दी! 
81. 1933 के मद्रास बम कांड का संबंध   इंद्र सिंह नयाल से है इसके लिए ने 20 वर्ष की काला पानी की सजा मिली! 
82. गाडोदिया स्टोर डकैती से संबंध भवानी सिंह रावत जी का है! 
83. खुमांड सल्ट में 5 सितंबर 1942 को नरसंहार हुआ इसे गांधी जी ने कुमाऊं के बारदोली की संज्ञा दी! 
84. अल्मोड़ा जेल की स्थापना 1816 हुई! एंव वर्तमान जेल की स्थापना 1872 में हुई
85. मेजर देव सिंह दानू नेताजी सुभाष चंद्र बोस के संरक्षण के तौर पर तैयार किया गया! 
86. रवाई कांड 1930 में हुआ जिसे उत्तराखंड का जलियांवाला बाग भी कहते हैं! 
87. 23 जनवरी 1939 को देहरादून में टिहरी प्रजामंडल की स्थापना की! 
88. 84 दिन के अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 को श्री देव सुमन शहीद हुए! 
89. पौणी टूटी एक आयात निर्यात करता था  बरा कर पूर्णता की देखरेख करने वाले समस्त कर्मचारियों के लिए सुविधा शुल्क की भांति था! 
90. राज्य प्रशासन द्वारा 1944 में व्यवस्था का निरीक्षण प्रारंभ किया गया! 
91. 1946 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जेल से छूटकर आए! 
92. मई 1938 में श्रीनगर में राजनीतिक सम्मेलन हुआ जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और विजया लक्ष्मी पंडित श्री देव सुमन मिले! 
93. 24 फरवरी 1944 को श्री देव सुमन पर राजद्रोह का मुकदमा लगा! 
94. श्री देव सुमन की मुलाकात गांधी जी से 1942 में सेवाग्राम वर्धा में हुई थी! 
95. वीरेंद्र  सकलानी की अध्यक्षता में टिहरी में आजाद पंचायत बनाई गई! 
96. 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत उत्तर प्रदेश राज्य में मिलाई गई! 
97. 39 वी गढ़वाल राइफल के सैनिकों को बेगारी से मुक्त किया गया था! 
98. रैम्जे  के  कुली बेगार का विरोध किसानों ने सोमेश्वर घाटी में किया! 
99.13-14 जनवरी 1921 मे कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ! 
100. नायक  जनजाति का उदय चंद राजा भारती चंद के समय हुआ ऐसा मत एटकिंसन साहब का है परंतु लक्ष्मी दत्त जोशी जी ने का यह खस परिवार थे! 
101. 1924 में कुमाऊं कमिश्नर एनसी स्टिप्फ की अध्यक्षता में नायक जाति के लिए एक कमेटी का गठन किया गया 1929 में सरकार द्वारा नायक बालिका सुरक्षा कानून पारित किया गया! 
102. 1925 में अछूत शिल्पकार सम्मेलन का आयोजन हुआ! 
103. 1913 में स्वामी सत्य देव ने शुद्ध साहित्य समिति का गठन किया और 1925 में इन्होंने अल्मोड़ा में अनाथालय की स्थापना की! 
104. प्रथक उत्तराखंड राज्य की मांग सर्वप्रथम कामरेड पीसी जोशी ने 1952 ईस्वी में भारत सरकार के समक्ष ज्ञापन के रूप में रखें! 
105. 1957 ईस्वी में टिहरी नरेश मानवेंद्र शाह ने भी पृथक राज्य आंदोलन के लिए जन संपर्क करना आरंभ किया! 
106. जून 1967 में रामनगर में पर्वतीय राज्य परिषद की स्थापना दया कृष्ण पांडे ने की इस परिषद ने 1973 में बद्रीनाथ से दिल्ली तक पदयात्रा का आयोजन किया! 
107. कुमाऊं राष्ट्रीय मूर्ति की स्थापना पीसी जोशी ने 1970 में कि 1973 में पर्वतीय विकास मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र मंत्री की नियुक्ति की गई! 
108. 25 जुलाई 1979 को देवी दत्त पंत जी की अध्यक्षता में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की गई! 
109. सन 1991 ईस्वी में भारतीय जनता पार्टी ने भी पृथक राज्य को अपना मुद्दा बना लिया  सन 1991 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी सरकार ने 1991 में प्रथम राज्य का प्रस्ताव केंद्र को भेजा! 
110. जुलाई 1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने गैरसैंण  को भावी राजधानी बनाने की मांग की
111.1994 में कौशिक समिति का गठन हुआ! 
112. 1 सितंबर 1994 को धर्मानंद भट्ट प्रताप सिंह गोपीचंद भवानी सिंह भुवन सिंह  परमजीत सिंह शहीद हुए! जिसे 2018 से कुमाऊं दिवस के रूप में मनाया जाता है! 
113. 2 सितंबर 1994 को मसूरी हत्याकांड हुआ जिसमें बेलमती चौहान हनसा धनाई धनपत सिंह राय सिंह मदन मोहन मंमगाई और बलवीर सिंह शहीद हुए! 
114. 2 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा कांड हुआ! 
115. 10 नवंबर 1995 को श्रीयंत्र टापू कांड हुआ! 
116. 15 अगस्त 1996 को एचडी देवगोडा ने उत्तराखंड निर्माण की घोषणा की! 
117. 27 जुलाई 2000 को उत्तराखंड प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 ईस्वी लोकसभा में पारित किया गया 1 अगस्त को  लोकसभा ने इसे मंजूरी दी  और 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में इसकी स्वीकृति मिली 28 अगस्त 2000 ईस्वी को राष्ट्रपति केआर नारायणन इसे मंजूरी दी इस तरह 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड का निर्माण हुआ! 
118. मयूर ध्वज की खोज 18 सो 87 में मलखान जी ने की यहां से उन्होंने 23 अंडा का मृण्यफलकों की खोज की! इन मृण्यफलकों में योगासन मुद्रा में बौद्ध पाशर्व में अवलोकितेश्वर तथा ब्रजपाणि  उत्तीर्ण है! 
119. थारू जनजाति स्वयं को राजपूत मानती हैं और अपने आप को महाराणा प्रताप का वंशज मानती है! 
120. थारों में संयुक्त परिवार पर था तथा मातृसत्तात्मक प्रथा होती है  स्त्रियों का भी संपत्ति में अधिकार होता है! 
121. जब थारू जनजाति में विवाह पक्का हो जाता है उसे पक्की पौड़ी कहा जाता है विवाह से पूर्व दिखनौरी प्रथा प्रचलित है! 
122. पुन:विवाह से संबंधित लठभरखा भोज थारू जनजाति में प्रचलित है! 
123. थारू जनजाति का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है! 
124.थारु जनजाति में चावल से निर्मित शराब को जाड कहा जाता है! 
125. बजहर नामक त्यौहार थारू जनजाति का प्रमुख त्योहार है! यह त्यौहार जेठ या वैशाख के महीने में होता है! 
126. झुमडा सेजनी लहचारी थारू जनजाति के प्रमुख नृत्य है! 
127. बुक्सा को उदय जीत का वंशज बताया जाता है जो सबसे पहले उत्तराखंड में बनबसा में बैठे थे इनकी महिलाएं स्वयं को पंवार राजपूत वंश से संबंधित मानती है! 
128. बुक्सा परिवार पितृसत्तात्मक होता है बुक्सा जनजाति  राजनीतिक गठन बिरादरी पंचायत के नाम से जाना जाता है! 
129. बुक्सा जनजाति में बैठाण विवाह प्रचलित है! 
130. बुक्सा जनजाति भूमिया वन देवी हिडिंबा की पूजा करते हैं यहां कृषि तथा पशुपालन करते हैं इनका मुख्य भोजन चावल और मछली है! 
131. इनके प्रमुख त्यौहार होगण भौरो ढलइया है! 
132. राजी जनजाति को वन रावत के नाम से भी जाने जाते हैं या पिथौरागढ़ में सबसे अधिक पाए जाते हैं! 
135. राहुल सांकृत्यायन ने राजी जनजाति को किरातों का वंशज बताया है! 
136. वधू मूल चुकाने की प्रथा राजी जनजाति में प्रचलित है! 
137.  राजी जनजाति मे मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति  प्रमुख त्यौहार हैं! 
138.  राजी जनजाति में झूम खेती भी प्रचलित है! 
139. गगन सिंह रजवार राजी जनजाति से चुने जाने वाले प्रथम विधायक है! 
140. कौंणी एक प्रकार का अन्न है जिससे भात बनता है! 
141.गाती खस जाति  का प्रमुख ग्रामीण पोशाक है! 
142. झुमैलो नृत्य विरह वेदना  और मिलन का प्रतीक नृत्य जो युवती द्वारा किया जाता है! 
143. चौफुला नृत्य श्रृंगार एवं  भाव प्रधान नृत्य है जो स्त्री और पुरुष सामूहिक रूप से करते हैं! 
144. थडया नृत्य विवाह के उपरांत पहली बार मायके में आने वाली स्त्री करती है! 
145. छपेली यह एक प्रकार का श्रंगार प्रधान युगल नृत्य गीत है! 
147. वेली न्यौली यह एक प्रकार का बिरह गीत व वन गीत है! 
148. दूसरे विवाह की पत्नी को न्योली कहा जाता है! 
149. देवचेलियो प्रथा खसो में पाई जाती है! 
150. कत्युरी कॉल को उत्तराखंड में शैव धर्म का स्वर्ण काल कहा जाता है! 
151. बहुत बहादुर चंद्र ने मानसरोवर यात्रा मैं अवरोध ना होने के लिए हुणियो के विरुद्ध तिब्बत अभियान किया था! 
152. परमदेव ने  बद्रीनाथ मंदिर के लिए भूमि दान की थी! 
153. राजा ज्ञानचंद ने कत्यूरी घाटी में बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना की थी! 
154. पलेठी के सूर्य मंदिर से सातवीं सदी का राजा कल्याण बर्मन का शिलालेख प्राप्त हुआ है तथा तथा कंडारा ताम्र लेख 9 वी सदी का है  जिससे हमें ललित सुखदेव के काल का पता चलता है! 
155. मज्झिम उत्तराखंड में बौद्ध धर्म का प्रथम प्रचारक था! 
156. कत्यूरी काल उत्तराखंड में बौद्ध धर्म के पतन का काल जाना जाता है इस वंश के शासक भूदेव की एक उपाधि बुद्ध शरणम् शत्रु के अनुसार लगता है कि कत्यूरी राजाओं ने बौद्ध धर्म को हतोत्साहित किया! 

Tuesday, April 5, 2022

उत्तराखंड का भूगोल

✴️ उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन✴️
उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन आठ भागों में हुआ है उत्तर से दक्षिण दिशा में इनका क्रम  निम्नलिखित है-
1- ट्रांस हिमालय(जैंक्सर श्रेणी,वृष्टि छाया प्रदेश) 
2. वृहत् हिमालय(आंतरिक/मुख्य/महान हिमालय) 
3. लघु हिमालय(मध्य हिमालय) 
4. दून क्षेत्र
5. शिवालिक क्षेत्र
6. भाबर क्षेत्र
7. तराई क्षेत्र
8. गंगा के मैदान

1. ट्रांस हिमालय-
✴️इसकी खोज 1936 में स्वेन हैडन ने की थी! 
✴️उत्तराखंड में इसका विस्तार  3 जिलों उत्तरकाशी चमोली  है! 
✴️यह भाग अवसादी शैल से बना है! 
✴️यह टेथीज भ्रंश द्वारा बृहद हिमालय से अलग होती है
✴️ट्रांस हिमालय तथा बृहद हिमालय के मध्य के क्षेत्र को सचर जोन कहते हैं! 
✴️इस क्षेत्र मे संकरे मार्ग (दर्रे) पाए जाते हैं! 
✴️यह क्षेत्र 20 से 30 किलोमीटर चौड़ा तथा 3200 से 3500 मीटर ऊंचा है! 
✴️इस क्षेत्र में वर्षा बहुत कम होती है  क्योंकि यहां वृष्टि छाया प्रदेश हैं! 

2. वृहद हिमालय-
इसे बर्फ का घर(हिमाद्री) भी कहा जाता है! 
इस क्षेत्र मे ग्लेशियर पाए जाते हैं! 
इसका निर्माण प्लाइस्टोसीन युग में हुआ है! 
उत्तराखंड में इस की चौड़ाई 15 से 30 किलो मीटर तथा ऊंचाई 4500 से 7817 मीटर तक है! 
इसमें गर्मी में अधिक वर्षा होती है तथा शीतकाल में यहां कम वर्षा होती है! 
यहां रूपांतरित अवसादी ग्रेफाइट नीस शिष्ट चट्टाने पाई जाती है! 
इस क्षेत्र  में शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार नुकेली पत्ती वाले वन पाए जाते हैं जैसे सागुन साल चीड़ इत्यादि
इसमें छोटी-छोटी घास के मैदान भी पाए जाते हैं जिन्हें बुग्याल प्यार कहते हैं फूलों की घाटी भी इसके अंतर्गत आती है! 
भोटिया जनजाति यहां ग्रीष्म काल में कृषि करती है! 

Monday, April 4, 2022

आर्थिक नियोजन( अर्थशास्त्र भाग 2)

                 ✴️आर्थिक नियोजन✴️
किसी राज्य का राष्ट्रीय या राष्ट्रीय का राज्य के नेतृत्व में धन का नियोजन करता है इसे ही आर्थिक नियोजन कहते हैं! 
यह चार प्रकार का होता है-
1.आदेशात्मक- इस अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा एक आदेश दिया जाता है जिसका उपदेश जनकल्याण होता है इसको केंद्र से प्रशासन द्वारा चलाया जाता है तथा दंड विधि काम में ली जाती है! 
2.निर्देशात्मक- विकेंद्रीकृत व्यवस्था होती है अर्थात निजी क्षेत्र का हस्तक्षेप होता है बाजार नियंत्रण विधि काम में ली जाती है! 
3.संरचनात्मक 
4.प्रकायात्मक
Note- संरचनात्मक और प्रकायात्मक नियोजन भारत अपनाता है! 

✴️ भारत में आर्थिक नियोजन का इतिहास- आर्थिक नियोजन का जनक रूस को माना जाता है 1927-32 मे  रूस के प्रधानमंत्री स्टेलिन ने पंचवर्षीय योजना शुरू की! 
भारत में नियोजन का जनक पंडित जवाहरलाल नेहरू को कहा जाता है! 
1934 मैं सर्वप्रथम नियोजन का प्रयास एम विश्वेश्वरैया ने किया है इसका वर्णन ने अपनी पुस्तक Planned economi of india  मे किया है! 
1938 में हरीपुरा कांग्रेस अधिवेशन (गांव में पहला  अधिवेशन) जिसकी अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे यहां राष्ट्रीय नियोजन समिति(NPC) का गठन हुआ जिसकी अध्यक्षता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की! 
1944 मे 8 उद्योगपति ने  मुंबई प्लान लाइट जिसकी अध्यक्ष अर्देशीर दलाल कर रहे थे यह पहली निजी क्षेत्र का प्रयास था तथा 15 वर्षीय योजना पर बल देता था
1944 में श्रीमन्नानारायण जी गांधीवादी योजना लाए! 
1945 मे  एमएन राव जनवादी प्लान(people plan) लाये! 
1946 में केसी नियोगी राष्ट्रीय नियोजन समिति के अध्यक्ष बने बाद में योजना आयोग के जनक भी! 
1950 जेपी नारायण सर्वोदय योजना का प्लान बताया! 
15 मार्च 1950 को के सी नियोगी की सिफारिश में योजना आयोग का गठन हुआ जिसका कार्य था योजना तैयार करना वह समीक्षा करना इसका अध्यक्ष देश का प्रधानमंत्री होता है और उपाध्यक्ष  कैबिनेट स्तर का मंत्री! 
योजना आयोग 1 जनवरी 2005 को समाप्त हो गया और इसके स्थान पर नीति आयोग आया जो थिंक टैंक की भांति कार्य करता है! 
योजना आयोग ने 12 योजनाएं बनाई थी! इसमें वित्त मंत्री रक्षा मंत्री शामिल थे परंतु राज्यों के मुख्यमंत्री और प्रशासक शामिल नहीं थे! 
6 अगस्त 1952 को राष्ट्रीय विकास परिषद(NDC) का गठन हुआ जिसका कार्य था योजनाओं का अनुमोदन करना!  
राष्ट्रीय विकास परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रशासक या उपराज्यपाल शामिल होते थे! 
पूर्व वित्त मंत्री के.संथानम ने इसे सुपर कैबिनेट की संज्ञा दी थी! 
इसने 11 योजनाओं का अनुमोदन किया था! 
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की अवधारणा रूस से लाए थे जिसे भारत में लाने का श्रेय पंडित जवाहरलाल नेहरु जी को जाता है! 
1951-1990 के समय को पर  प्रोफेसर राजाकृष्णन्  ने हिंदू वृद्धि दर की संज्ञा दी थी जिसका संबंध राष्ट्रीय आय से है! 

संगम युग का उदय

                        ✴️संगम युग✴️
इस युग के अंतर्गत हम सुदूर दक्षिण का इतिहास जानते हैं इसका पता हमें एक अज्ञात लेखक की पुस्तक "द पेरीपलम आफ द इरिथ्रियन सी" से भी पता चलता है इसमें दक्षिण के लिए दमीरीकस शब्द प्रयोग है! 

वाकाटक वंश व कदंब वंश वातापी के चालुक्य( भाग 16)

                   ✴️वाकाटक वंश✴️
इनका उदय उत्तर महाराष्ट्र और विदर्भ में सातवाहन  वंश के स्थान में हुई! 
इस वंश का संस्थापक  विंध्यशक्ति ने की थी ! 
रूद्रसेन द्वितीय का विवाह चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री  प्रभावती से हुआ था 
रुद्रसेन द्वितीय  इस वंश का एक महान शासक था जिसकी मदद से चंद्रगुप्त द्वितीय ने शको पर विजय अर्जित की थी! 

                  ✴️कदंब वंश✴️
इस  वंश का साम्राज्य  उत्तरी कर्नाटक और कोंकण में था!  इस वंश की राजधानी वैजयंती या वनवासी थी! 
इस वंश का संस्थापक मयूरशर्मन था  इसने 18 अश्वमेघ यज्ञ किये थे और ब्राह्मणों को कई गांव दान दिए थे! 


           ✴️ वातापी (बदामी) के चालुक्य✴️
इस वर्ष की राजधानी वातापी आधुनिक बादामी थी जो वर्तमान के बीजापुर (कर्नाटक) में आता है! 
इस वंश का सबसे प्रतापी शासक पुलकेशिन द्वितीय था! उसके पिता का नाम कीर्तिवर्मन प्रथम था! 
पुलकेशिन द्वितीय की जानकारी हमें ऐहोल अभिलेख से मिलती है जिसकी रचना रवि कीर्ति ने की थी इससे पता चलता है कि नर्मदा नदी के तट पर हर्षवर्धन को इसने पराजित किया था! 
हर्षित को पराजित करने के बाद इतने परमेश्वर की उपाधि धारण की थी तथा इसकी एक उपाधि दक्षिणा पथेश्वर भी थी! 
 पल्लव राजा नरसिंह वर्मन द्वितीय ने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया था और मार डाला! 
इस वंश में महिलाओं को प्रशासन का उच्च पद प्रदान था! 

                  ✴️वेगीं के चालुक्य✴️
इस वंश का जन्म पुलकेशिन द्वितीय के समय ही हो गया था यह चालुक्य वंश की एक शाखा थी! 
इन्हें पूर्वी चालुक्य वंश से भी कहा जाता है इसकी स्थापना विष्णुवर्धन ने की थी! 

 
                   ✴️पल्लव वंश✴️
पल्लव वंश का उदय दक्षिण आंध्र और उत्तर तमिल दोनों पर था इनके आरंभिक अभिलेख प्राकृत और फिर संस्कृत में जारी की  किये! 
इस वंश के प्रमुख शासक-
1.सिंहविष्णु-
यह इस वंश का वास्तविक संस्थापक था! 
इसकी राजधानी  कांची थी जो सांस्कृतिक केंद्र था! 
यह वैष्णो धर्म का अनुयाई था! 
इसके दरबार में भारवि थे जिन्होंने किरातार्जुनीयम पुस्तक लिखी थी! 

2. महेंद्र वर्मन प्रथम-
इसीके समय पल्लव और चालुक्य  के बीच संघर्ष आरंभ हुआ! 
इसने मत्तविलासप्रहसन नामक ग्रंथ लिखा! 
3. नरसिंह वर्मन प्रथम-
इसने महाबलीपुरम के रथ मंदिर का निर्माण कराया था जिसे सप्त पैगोडा भी कहते हैं! 
इसने पुलकेशिन द्वितीय को पराजित करा और वातापीकोंड की उपाधि धारण की थी! 
इसने महामल्ल की उपाधि धारण की थी! 
इसके समय कांची  मे ह्वेनसांग भी आया था! 
4.नरसिंह वर्मन द्वितीय-
कांची के कैलाश मंदिर तथा महाबलिपुरम के तटीय मंदिर का निर्माण कराया था! 
इसने राजसिंह की उपाधि धारण की थी! 
संस्कृत के महान विद्वान दंडीन इसी के दरबार में थे! 
5.नरसिंह वर्मन द्वितीय-
रांची के मुक्तेश्वर मंदिर तथा बैकुंठ पेरूमाल मंदिर का निर्माण कराया था! 
इसी के समकालीन वैष्णव संत तिरूमंगई अलवार थे! 


बौद्ध धर्म ( प्राचीन भारत भाग 6)

                         बौद्ध धर्म
बुद्ध का अर्थ होता प्रकाशमान  या जागृत
एडविन अर्नोल्ड नए महात्मा बुद्ध को लाइट ऑफ एशिया कहा है! 
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई.पु. लुंबिनीवन (कपिलवस्तु नेपाल) में हुआ था! 
बुद्ध के जन्म के समय कालदेवल नामक  तपस्वी व कोडिनीय नामक ब्राह्मण ने बुद्ध के बारे में कहा था यह चक्रवर्ती सम्राट या सन्यासी बनेगा! 
इनके पिता जी शुद्धोधन थे जो शाक्य प्रधान थे! 
इनकी माता का नाम महामाया देवी था जो कौलीय राज्य की राजकुमारी थी! 
इनका पालन-पोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था जिसका गौतम बुद्ध भी कहा जाता है! 
इनकी मौसी प्रजापति गौतमी इन की पहली शिष्या थी! 
इनका विवाह यशोधरा से हुआ था उनके पुत्र का नाम राहुल था! 
इन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग दिया था इस घटना को बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहते हैं! 
ग्रह त्याग की घटना का प्रतीक घोड़ा है उनके घोड़े का नाम कथक व सारथी का नाम चनना था! 
इनके प्रारंभिक गुरु आचार्य आरंभ आलारकलाम और  धर्माचार्य रुद्रकराम पुत्र थे! 
इन्हें 35 वर्ष की आयु में निजरना  (पुनपुन नदी) नदी के तट पर पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई! 
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश ऋषिपतनम  (सारनाथ) में दिया था! इस समय उनके  अनुयायी पांच सन्यासी थे इनने पाली भाषा में यह उपदेश दिया था जिसे बौद्ध धर्म में धर्मचक्रप्रवर्तन कहते हैं
इन्होंने अपना अंतिम उपदेश सुभद्र के वहां कुशीनगर(उत्तर प्रदेश) में दिया था! 
इनकी मृत्यु 483 ईसवी में अपने शिष्य चुंद के वहां शुकरमादव भोजन सामग्री खाने से हिरण्यवती नदी के तट पर हुआ इस घटना को बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहते हैं! 
✴️महात्मा बुद्ध के जीवन के महान संकेत-
वृद्ध व्यक्ति,बीमार व्यक्ति,मृत व्यक्ति,सन्यासी व्यक्ति

✴️ बौद्ध धर्म के त्रिरत्न-
बुद्ध, धम्म,संघ

✴️ बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य-
दुख, दुख समुदाय, दुख निरोध, दुख निरोध गामिनी मार्ग
✴️ बौद्ध धर्म के अष्टागिक मार्ग-
बौद्ध धर्म में दुखों को दूर करने के लिए मध्य प्रतिपदा या मध्य मार्ग बताया गया है जिनके 8 सोपान होते हैं जिस कारण इसे अष्टागिक मार्ग कहा जाता हैl
प्रज्ञा- सम्यक दृष्टि और सम्यक संकल्प
सील- सम्यक वाणी, सम्यक आजीविका, सम्यक क्रमात
समाधि- सम्यक व्यायाम,  सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि
✴️ बौद्ध धर्म का दर्शन-
अनिश्वरवाद- ईश्वर की सत्ता पर विश्वास नहीं करते थे
शुन्यतावाद- संसार की समस्त वस्तुएं शुन्य है
अनात्मवाद- आत्मा चेतना पर सर्वाधिक बोल देना
क्षणिकवाद- संसार में कोई चीज स्थिर नहीं है
✴️ बौद्ध संगीतियां-
1. प्रथम  बौद्ध संगीति(483Bc)- यह बौद्ध संगीति अजातशत्रु के काल में राजग्रह (बिहार) में हुई थी जिसकी अध्यक्षता महाकस्प ने की! 
2. द्वितीय बौद्ध संगीति(383Bc)- यह बौद्ध संगीति कालाशोक के समय वैशाली बिहार में हुई थी जिसकी अध्यक्षता शाबकवीर ने की थी! 
3. तृतीय बौद्ध संगीति(251Bc)- यह बौद्ध संगति अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र बिहार में हुई जिसकी अध्यक्षता मोगलीपुत्ततिस्स की! 
4. चतुर्थ बौद्ध संगीति(100ई.)- यह बौद्ध संगीती कुंड वन कश्मीर में कनिष्क के समय हुई इस संगिति की अध्यक्षता वासु मित्र ने की! 

✴️बौद्ध साहित्य का विवरण-
1. त्रिपिटक- यह तीन ग्रंथ है जिनसे हमें बौद्ध धर्म के बारे में पता चलता है-
⚫सुत्तपिटक- इसकी रचना का आनंद थे इसके 5 भाग होते हैं यह सबसे बड़ा पिटक है! 
1. दीर्घ निकाय
2. अंगूत्तर निकाय
3. मज्झिम निकाय
4. खुद्दक निकाय
5. संयुक्त निकाय
विनय पिटक- इसकी रचना उपाली ने की थी! बौद्ध भिक्षुको के अनुशासन के नियम इसी में वर्णित है! 
अभिधम्म पिटक- इसकी रचना सम्राट अशोक के समय मोगल्लीपुत्त तिस्स ने की  इस में बौद्ध धर्म के दर्शन का उल्लेख है! 
2. मिलिंदपन्हो- यूनानी शासक मिनांडर तथा बौद्ध भिक्षु नागसेन  के बीच का संवाद है! 
3. दीपवंश- इस ग्रंथ से श्रीलंका के इतिहास का पता चलता है! 
4. महावंश- इसके रचनाकार महंत महानामा थे! इससे हमें मगध के राजाओं की  सूची मिलती है! 
5. जातक कथाएं- यह पाली भाषा में है इसमें बुद्ध के पूर्व जन्म की कहानियां है! 

✴️ बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले राजा-
बिंबिसार और उसकी पत्नी क्षेमा और उनका पुत्र अजातशत्रु! 
कौशल नरेश प्रसेनजीत और उनकी पत्नी मल्लिका
कौशांबी नरेश उदयन और उनकी पत्नी समावती
अवंती नरेश पद्योत
मौर्य नरेश अशोक और दशरथ, कुषाण नरेश कनिष्क
 हर्षवर्धन( अंतिम राजा जिसने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया) 

✴️बौद्ध धर्म से जुड़े मुख्य तथ्य-
महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद के कहने में संघ में औरतों का प्रवेश किया! 
इनके चचेरे भाई देवव्रत ने इन्हें दो बार मारने की कोशिश की!
महात्मा बुद्ध ने श्रावस्ती के डाकू अंगुलिमाल को अपना शिष्य बनाया
बुद्ध ने तपस्सु और भल्लिक नामक दो शूद्रों को अपना शिष्य बनाया! 
महात्मा बुद्ध ने अपने सबसे अधिक उपदेश कौशल की राजधानी श्रावस्ती में दिए! 
बौद्ध धर्म का प्रचार का मुख्य केंद्र मगध था! 
बौद्ध धर्म के सबसे अधिक मठ सिक्किम में है! 
✴️ बौद्ध धर्म से जुड़े मठ-
जम्मू और कश्मीर में स्थित मठ- हेमिस मठ, माथे मठ, थाकसे मठ
अरुणाचल प्रदेश में स्थित मठ- नामग्याल मठ और लवांग मठ( भारत का सबसे बड़ा बौद्ध मठ) 
सिक्किम के मठ- रूमटेक मठ
हिमाचल प्रदेश के मठ- ताबों मठ( इसे हिमाचल का अजंता कहा जाता) 
✴️ बौद्ध धर्म के संप्रदाय- बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय हैं-
1.हीनयान संप्रदाय-
इसका अर्थ होता है निम्न मार्ग
इस संप्रदाय के ग्रंथ पाली भाषा में होते थे
यह महात्मा बुद्ध को महापुरुष मानते थे! 
2. महायान संप्रदाय-
इसका अर्थ होता है- उत्कृष्ट मार्ग
इनके ग्रंथ संस्कृत भाषा में होते थे
यह महात्मा बुद्ध को देवता मानते हैं




पर्यावरण

                      ✴️पर्यावरण✴️
🌅 पर्यावरण- पृथ्वी में उपस्थित सभी घटक पर्यावरण है! इसके अंतर्गत जलमंडल स्थलमंडल वायुमंडल जैवमंडल आता है! 
Note- जैवमंडल ऐसा मंडल जो जल स्थल तथा  वायु तीनों से संबंधित हो! 
पर्यावरण के घटक-पर्यावरण के मुख्य दो घटक होते हैं- 1. जैविक घटक 2. अजैविक घटक
जैविक घटक- जीवित समूह जैसे- पेड़-पौधे  इत्यादि! 
अजैविक घटक- निर्जीव समूह  जैसे- वायु जल
✴️पर्यावरण के अन्य घटक-
1.प्राकृतिक घटक- पेड़ पौधे जल वायु  इत्यादि
2.मानव निर्मित घटक- भवन, सड़क इत्यादि
✴️पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्य- पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए कार्यों का वर्णन हम दो भागों में करते हैं  विश्व द्वारा किए गए कार्य और भारत द्वारा किए गए कार्य-
विश्व द्वारा किए गए कार्य- विश्व द्वारा पर्यावरण के लिए किए गए मुख्य कार्य-
1.स्टॉकहोम सम्मेलन(स्वीडेन) -1972( पर्यावरण के क्षेत्र में किया गया प्रथम  प्रयास
Note- स्टॉकहोम सम्मेलन के अगले ही वर्ष से 5 जून 1973 को पर्यावरण दिवस मनाया गया! 
2. पृथ्वी सम्मेलन (रियो-20)- यूएनएफसीसीसी संगठन द्वारा 1992 में यह सम्मेलन कराया गया! 
3.Cop इस की प्रथम बैठक ब
4. क्योटो प्रोटोकॉल- इसका आयोजन 1997 में जापान में हुआ! 
5. मोन्ट्रियल प्रोटोकॉल- इसका आयोजन 16 सितंबर 1987 को कनाडा में हुआ 16 सितंबर को ओजोन संरक्षण दिवस मनाते हैं इस प्रोटोकॉल का संबंध ओजोन परत के संरक्षण से है! 
✴️ भारत द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में किए गए कार्य- भारत द्वारा पर्यावरण के क्षेत्र में विभिन्न कार्य किए गए हैं जिनमें से कुछ कार्य मुख्य है-
1. 1985- पर्यावरण व वन मंत्रालय का गठन! 
2. 1986- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
3. 1988- राष्ट्रीय वन नीति( देश के क्षेत्रफल का 33% वन होना चाहिए) 
4. 2002- जैव विविधता संरक्षण अधिनियम
5. 2002- राष्ट्रीय जल नीति
6. 2004- राष्ट्रीय पर्यावरण नीति
7. 2010- एनजीटी का गठन

पर्यावरण से संबंधित महत्वपूर्ण दिवस-
2 फरवरी- विश्व नम भूमि दिवस
21 मार्च- विश्व वन दिवस
22 मार्च- विश्व जल दिवस
22 अप्रैल- विश्व पृथ्वी दिवस
22 मई- जैव विविधता दिवस
5 जून- पर्यावरण दिवस
16 सितंबर- ओजोन संरक्षण दिवस


                   ✴️पारिस्थितिकी✴️
पारिस्थितिकी- जीव समूह का पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिकी कहलाता है! अर्थात जीव का वनस्पति मिट्टी वायु और जल से संबंधित पारिस्थितिकी है! 

Note- 1. रेटर ने पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग 1865 में किया! अर्नेस्ट हैकल ने  पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग 1869 मे किया! 

✴️ पारिस्थितिकी तंत्र- एक विशेष क्षेत्र में सभी जीवधारी अपने पर्यावरण के साथ संपूर्ण जैविक इकाई बनाता है जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं! 

Note- पारिस्थितिकी तंत्र की संकल्पना सर्वप्रथम 1935 में एजी टान्सले ने की! 
⚫ पारिस्थितिक तंत्र की विशेषताएं-
1.सुनिश्चित क्षेत्र
2.एक खुला तंत्र
3.कार्यशील क्षेत्रीय इकाई
4.इनकी अपनी उत्पादकता

✴️पारिस्थितिकी तंत्र के तीन संगठन भी होते हैं-ऊर्जा, जैविक और अजैविक
इकोटोन- घास तथा वन से संबंधित संकलन क्षेत्र

✴️ पारिस्थितिकी पिरामिड- किसी खाद्य श्रृंखला में अलग-अलग पोषण स्थल के जैविक समुदायों के बीच उनकी संख्या जैव भार उत्पादकता तथा ऊर्जा के आधार पर किया गया चित्रण प्रदर्शन जो सम्मानित एक सीधा या उल्टा पिरामिड की तरह होता है पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है यह तीन प्रकार का होता है-
संख्या पिरामिड- एक पारिस्थितिकी तंत्र में पोषण के स्थल के आधार पर अलग-अलग प्रजाति के जीव की संख्या दर्शाए जाती है जो पिरामिड रूप में सीधा होता है! 
उर्जा पिरामिड- एक पारिस्थितिक तंत्र में जीवो के उर्जा के आधार पर पिरामिड सदैव सीधा बनता है! 
जैवभार पिरामिड- किसी जीवित प्राणी में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थ का कुल  शुष्क भार उसका जैवभार कहलाता है!  यह पिरामिड के रूप मे सीधा या उल्टा हो सकता है! 
 Note-अपघटक को पारिस्थितिक तंत्र का सफाई कर्मचारी कहते हैं! 

✴️ पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार- यह दो प्रकार का होता है प्राकृतिक पारितंत्र और मानव द्वारा निर्मित पारिस्थितिक तंत्रl
प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र- वन समुद्र इत्यादि
मानव द्वारा निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र- खेत प्रयोगशाला इत्यादि

✴️ पारिस्थितिक तंत्र को वनों का विनाश प्रदूषण जलवायु परिवर्तन प्रभावित करता है! 

✴️ सबसे बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र और अस्थाई पारिस्थितिकी तंत्र महासागरीय है! 


                      ✴️जैव विविधता✴️






Saturday, April 2, 2022

गुप्तोत्तर काल (इतिहास का भाग 14)

    ✴️थानेश्वर के पुष्पभूति वंश या वर्धन वंश✴️
इस वंश के संस्थापक पुष्यभूति था! 
बाणभट्ट के अनुसार थानेश्वर श्रीकंठ जनपद का भाग था जो पंजाब हरियाणा में फैला था! 
🎇प्रभाकर वर्धन-
यह इस वंश का वास्तविक संस्थापक कहलाता है! 
इसने परमभट्ठारक महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी! 
इसकी पुत्री राजश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के राजा ग्रहवर्मन के साथ हुआ था! 
Note- राजश्री व ग्रहवर्मन का विवाह भारतीय इतिहास का पहला बाल विवाह है! 
इस के दरबार में दो चिकित्सक थे रसायण व सुशेण थे! 
इसके दो बेटे थे राजवर्धन और हर्षवर्धन
✴️राजवर्धन- 
इसका शासनकाल 605-606ई. तक था! 
इसकी हत्या धोखे से गोड नरेश शशांक ने की थी! 
✴️ हर्षवर्धन-
इसका शासनकाल 606-647 ई. तक था
इतने अपनी बहन राजश्री के शहर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाई
इसकी माता का नाम यशोमती था! 
देवभूति ने इसे प्राचीन भारत का अंतिम महान हिंदू सम्राट बताया है! 
हर्ष बौद्ध धर्म का अंतिम समर्थक था! 
हर्ष ने वल्लभी (गुजरात) के शासक दुलल्लभी को हराया! 
🎇नर्मदा युद्ध 630ई.-
इस युद्ध में हर्ष को बदामी के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने पराजित किया इस युद्ध की जानकारी हमें एलोरा अभिलेख (कर्नाटक) से मिलती है! 
हर्ष की दो मुद्राएं नालंदा व सोनिपत से मिली है जिनमें नंदी का चित्र उत्तीर्ण है! 
हर्ष प्रत्येक 5 वर्ष में प्रयाग में महामोक्ष परिपथ का आयोजन करता था! 
असम के राजा भास्कर वर्मा का राजदूत हंसबेग हर्ष के दरबार में आया था! 
हर्ष के दरबार में ह्वेसांग-
इसकी पुस्तक सी यू की  थी! 
हर्ष ने कन्नौज में ह्वेसांग की अध्यक्षता में महायान संप्रदाय की सभा करवाई थी! 
इसने नालंदा के कुलपति का नाम सीलभद्र बताया! 
इसे यात्रियों का राजकुमार या शाक्यमुनि कहते थे! 
इसने भारत को ब्राह्मणों का देश कहा है और वाराणसी को रेशम के लिए प्रसिद्ध बताएं! 
इसने रहट (सिंचाई यंत्र) का वर्णन किया है जिसे सर्वप्रथम प्रमाण शक काल में मिलता है! 
हर्ष के दरबार में बाणभट्ट था जिसने हर्ष चरित्र तथा कादंबरी की रचना की थी! 
647 ईसवी में निसंतान हर्ष की मृत्यु हुई  इसके बाद सामंतवाद का उदय हुआ है! 

Friday, April 1, 2022

अर्थशास्त्र का उदय (अर्थशास्त्र भाग 1)

                 अर्थशास्त्र का परिचय
अर्थशास्त्र- किसी राष्ट्रीय राज्य के धन व्यय का अध्ययन अर्थ अर्थशास्त्र कहलाता है जिसका वर्णन सर्वप्रथम चाणक्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में मिलता है!
📀अर्थशास्त्र का पिता-
एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है! 
इस की पुस्तक का नाम Wealth of Nations (1776) था! 
वेल्थ ऑफ नेशन में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पर बल दिया गया था! 
📀 अर्थशास्त्र का पितामह-
अर्थशास्त्र का पितामह जे.एम.किन्स को कहा जाता है! 
किसकी पुस्तक थी-
1. The general theory of employment
2. How to pay for war

अर्थव्यवस्था के प्रकार- उत्पादन के साधन के अनुसार अर्थव्यवस्था के तीन प्रकार होते हैं-
1.पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
2.राज्य अर्थव्यवस्था
3.मिश्रित अर्थव्यवस्था

1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था-
इस अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्रों की भागीदारी देखी जाती है! 
यह अर्थव्यवस्था बाजार नियंत्रण नीति पर कार्य करती है! 
इसका उद्देश्य लाभ कमाना होता है! 
बाजार नियंत्रण नीति होने के कारण इसमें मांग पूर्ति तथा प्रतियोगिता बाजार में दिखाई देती है! 
इस अर्थव्यवस्था का सबसे अच्छा उदाहरण संयुक्त राष्ट्र अमेरिका है! 

2. राज्य अर्थव्यवस्था-
इस अर्थव्यवस्था का सबसे पहला वर्णन अपनी पुस्तक दास कैपिटल में कार्ल मार्क्स ने किया है! 
इस अर्थव्यवस्था में सरकार का नियंत्रण होता है! 
इस अर्थव्यवस्था का उद्देश्य जनकल्याण होता है! 
यह अर्थव्यवस्था विकेंद्रीकृत होती है जिसमें प्रशासनिक ढांचा कार्य करता है और सरकार न्याय दंड विधि का प्रयोग करती है! 
✴️राज्य अर्थव्यवस्था दो प्रकार की होती है-
1.समाजवाद अर्थव्यवस्था- इस अर्थव्यवस्था को सर्वप्रथम 1917 में रूस ने अपनाया था इस व्यवस्था में मजदूर सरकार का पूंजी में समान हस्तक्षेप होता है! 
2.साम्यवाद अर्थव्यवस्था- यह अर्थव्यवस्था 1949 में चीन ने अपनाई थी इस अर्थव्यवस्था में सरकार का अर्थव्यवस्था पर पूर्ण हस्तक्षेप रहता है! 

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था- इसमें निजी तथा राज्य(सरकार) दोनों का हस्तक्षेप होता है इसका प्रमुख उदाहरण भारत है! 

📀 अर्थव्यवस्था के क्षेत्र- अर्थव्यवस्था के भारत में 3 क्षेत्र पाए जाते हैं-
1.प्राथमिक क्षेत्र
2.द्वितीय क्षेत्र
3.तृतीय क्षेत्र

1. प्राथमिक क्षेत्र-
पर्यावरण प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र में दिखाई देता है उदाहरण के लिए कृषि मत्स्य पालन मधुमक्खीपालन इत्यादि! 
अर्थव्यवस्था में 70% भागीदारी इसकी होती है! 
इसमें भाग लेने वाले श्रमिकों को रेट कॉलर जॉब के अंतर्गत रखा जाता है! 
Note- सरकारी नौकरी को लालफीताशाही जॉब कहते हैं! 
2. द्वितीय क्षेत्र-
यह उद्योगों पर आधारित होते हैं! 
इसके अंतर्गत लोहा उद्योग सूती उद्योग इत्यादि उद्योग आते हैं! 
इसमें कुशल श्रमिकों को व्हाइट कॉलर जॉब तथा अकुशल श्रमिकों को ब्लू कॉलर जॉब कहते हैं! 
3. तृतीय क्षेत्र-
यह क्षेत्र सेवा पर आधारित होता है जिस कारण इसे सेवा का क्षेत्र भी कहते हैं जैसे शिक्षा बैंक चिकित्सा इत्यादि! 

अर्थव्यवस्था के प्रकार- अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों के आधार पर इन्हें तीन भागों में बांटा गया है! 
1.विकसित अर्थव्यवस्था
2.विकासशील अर्थव्यवस्था
3.पिछड़ी अर्थव्यवस्था

1. विकसित अर्थव्यवस्था-
विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश वह देश होते हैं जिनमें तृतीय क्षेत्र की भागीदारी सर्वाधिक उसके बाद द्वितीय क्षेत्र के अंत में प्राथमिक क्षेत्र की भागीदारी होती है ! 
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका फ्रांस जर्मन विकासशील देशों की श्रेणी में आते हैं!
2. विकासशील अर्थव्यवस्था-
विकासशील अर्थव्यवस्था वाले वह देश होते हैं जिनमें द्वितीय क्षेत्र की भागीदारी सर्वाधिक फिर प्राथमिक क्षेत्र और अंत में तृतीय क्षेत्र की भागीदारी होती है! 
विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देश भारत चीन पाकिस्तान इत्यादि हैं! 
3. पिछड़ी अर्थव्यवस्था-
पिछले अर्थव्यवस्था में बहुत देश आते हैं जिनमें सर्वाधिक भागीदारी  प्राथमिक क्षेत्र की फिर द्वितीय क्षेत्र की और अंत में तृतीय क्षेत्र की होती है! 
इस अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सूडान इंडोनेशिया कांगो इत्यादि देश आते हैं!