प्राचीन काल में सिंधु लिपि खरोष्ठी लिपि तथा ब्राह्मी लिपि थी ब्राह्मी लिपि की दो शैली थी दक्षिणी शैली तथा उत्तरी शैली!
उत्तरी शैली से गुप्त लिपि का विकास हुआ है और गुप्त लिपि से सिद्धमात्रिका लिपि (कुटिका लिपि) और सिद्धमात्रिका लिपि से देवनागरी तथा शारदा लिपि का विकास हुआ!
देवनागरी लिपि का नामकरण-
नागलिपि से- ललिता विस्तार में नाग लिपि की चर्चा की गई है कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इसी नाग लिपि से नागरी लिपि का जन्म हुआ है!
नगर से- कुछ विद्वानों का मत है कि यह लिपि नगरों में विकसित हुई इसलिए इसे नागरी लिपि कहते हैं!
नागर ब्राह्मण से- देवनागरी लिपि का पहला साक्षी गुजरात के राजा जय भट्ट के अभिलेखों में मिलता है और गुजरात के नागर ब्राह्मण के कारण इसे नागरी लिपि कहा जाता है!
नागर व देव से- कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चंद्रगुप्त को देव तथा पाटलिपुत्र को नगर कहा जाता था इसका विकास यहीं से हुआ है इसलिए इसका नाम देवनागरि पड़ा!
स्थापत्य शैली नाम पर- डॉक्टर धीरेंद्र वर्मा के अनुसार मध्यकाल में स्थापत्य इस शैली नागर शैली थी जिस कारण इसका नाम नागर शैली के कारण पड़ा!
देवनागरी लिपि का विकास-
1- फोर्ट विलियम कॉलेज अध्यक्ष जॉन गिलक्राइस्ट देवनागरी लिपि के विरोधी थे तथा वह फारसी लिपि को प्रोत्साहन देना चाहते थे और हिंदी के स्थान पर हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग करना चाहते हैं परंतु विलियन प्राइम ने 1813 में फारसी के स्थान में देवनागरी तथा हिंदुस्तानी के स्थान पर हिंदी भाषा को प्रोत्साहन देने की बात की!
2- राजा सितारे हिंद ने 1868 में फारसी के स्थान पर देवनागरी लिपि का प्रयोग करने के लिए अहम भूमिका निभाई!
3- पंडित गौरी दत्त जी ने 874 में नागरिक प्रकाश पत्र निकाला जिसने देवनागरी के विकास और सुधार में अहम भूमिका निभाई!
4- 1893 में पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की तथा कचहरी भाषा में फारसी लिपि के स्थान में देवनागरी लिपि के प्रयोग की बात की जो 1898 में सफल हुई
5- 1928 में नेहरू समिति ने रिपोर्ट दी और कहा देवनागरी लिपि तथा फारसी लिपि मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा देश की राज्य भाषा होगी!
6- संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संस्कृत मिश्रित खड़ी बोली से विकसित हिंदी भाषा भारत की राजभाषा होगी जो देवनागरी लिपि लिखी जाएगी!
देवनागरी लिपि के गुण-
👉यह बाएं से दाएं लिखी जाने वाली अक्षरात्मक लिपि है जिसका विकास वर्णनात्मक लिपि से हुआ है!
👉 प्रत्येक ध्वनि के अलग वर्णों की व्यवस्था है और ध्वनि का नाम ही वर्ण का नाम है अर्थात हर वर्ण अपनी स्वतंत्र ध्वनि रखता है!
👉 इसमें मुक वर्ण नहीं होता है एक वर्ण में दूसरे का भ्रम नहीं होता है!
👉 राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह दुनिया की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि है!
👉 देवनागरी लिपि का व्यापक प्रयोग किया जाता है संस्कृत हिंदी नेपाली मराठी इत्यादि भाषाएं देवनागरी लिपि के अंतर्गत आती हैl
देवनागरी लिपि की कमियां-
👉 मुद्रण में कठिनाई क्योंकि इसमें टाइप/अक्षर बहुत अधिक हैl
👉 मात्राओं का प्रयोग दाएं बाएं ऊपर नीचे होता हैl
👉 त्वरालेखन का अभाव बहुत अधिक दिखता है l
👉 कुछ ऐसी दुनिया है जिनके चिन्ह एक से अधिक होते हैं जैसे- 'र' की मात्रा
👉 कुछ वर्ण भ्रम की स्थिति पैदा करते है जैसे ख,रव
व्यक्तिगत रूप से देवनागरी लिपि में सुधार के प्रयास-
👉 1964 में बाल गंगाधर तिलक ने तिलक फाण्ट का निर्माण किया इसका प्रयोग उन्होंने केसरी नामक पत्रिका में किया इन्होनें 403 टाइप को 190 टाइप मे बदला!
👉 सावरकर बंधु अ की बारघड़ी लाए- अ आ अ्इ..... जिसका प्रयोग हरिजन सेवक नामक पत्रिका में महात्मा गांधी ने किया!
👉 श्यामसुंदर बजाज ने पंचमाक्षर के स्थान में अनुस्वार का प्रयोग को प्राथमिकता दी-
गंड्गा 👉 गंगा
विभिन्न संस्थानों द्वारा देवनागरी के विकास में किए गए कार्य-
👉 1935 में हिंदी साहित्य सम्मेलन इंदौर में हुआ इसके संयोजक काकासाहेब कालेकर व अध्यक्ष महात्मा गांधी थे इस समिति ने नागरी लिपि सुधार समिति की स्थापना की!
👉 आचार्य नरेंद्र देव ने 21 जुलाई 1947 को नागरी लिपि सुधार परिषद का गठन किया जिसने अपने रिपोर्ट 25 मई 1949 को दिए 1953 में इस समिति की अध्यक्षता डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कि यह सम्मेलन लखनऊ में हुआ!
❤ सुमिति कुमार चटर्जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने देवनागरी लिपि की जगह रोमन लिपि का प्रयोग को प्राथमिकता दी✌
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