हर्ष के पश्चात हिमालय क्षेत्र बरहमपुर शत्रुघ्न और गोविषाण राज्य में टूट गया इनमें सबसे बड़ा राज्य बरहमपुर राज्य था!
ब्रह्मपुर राज्य
यह राज्य गंगा से लेकर करनाली नदी तक फैला हुआ था यह राज्य पौरव राजवंश के अधीन था! इनका शासन यहां 6वि सदी से आठवीं सदी तक रहा यह राजा सोनवंशी राजा थे! 1915 में अल्मोड़ा के तारकेश्वर से इस वंश का ताम्रपत्र मिला जिसमें धुतिवर्मन, विषणुवर्मन, विषवर्मन, अग्निवर्मन धुतिवर्मन के नामों का वर्णन है! यह राजा महाराजा अधीराज परम भट्ठारक की उपाधि लेते थे इनके कुलदेवता विरणेश्वर स्वामी थे!
बरहमपुर राज्य को इंद्र की राजधानी और नगरों में श्रेष्ठ के रूप में जाना जाता है तामपत्रो मे इसकी राजधानी तालकेश्वर छेत्र मानी जाती है !
Note-
पर्वताकार वंश के अभिलेखों की भाषा संस्कृत भाषा तथा लिपि गुप्त ब्राह्मी लिपि थी इनके ताम्रपत्र के साथ एक अंडाकार मुद्रा जोड़ी थी जिसमें वृषभ मकर और गरुड़ के चित्र अंकित थे इन मुद्राओं में संस्कृत भाषा तथा कुटिला लिपि अंकित थीl
इनके शासकों के निवास स्थान को कोट कहा जाता था
पौरव शासकों के आय का मुख्य स्त्रोत भूमि कर था जिसे भाग कहा जाता था इसे वसूल करने वाले अधिकारी को मार्गक कहा जाता था
इस वंश में सिंचित क्षेत्र को केदार तथा गैर सिंचित क्षेत्र को सारी कहा जाता था!
भूमि माप के लिए द्रोणवाप
खारीवाप और कुल्यावाप विधि का प्रयोग किया जाता है!
शत्रुघ्न राज्य
हवेनसांग के अनुसार इस राज्य की पूर्वी सीमा गंगा व उत्तर में हिमालय और राज्य के मध्य से यमुना नदी बहती थी लेकिन कनिंघम के अनुसार यह राज्य सिरमौर का हिस्सा था!
गोविषाण
इसे वर्तमान में काशीपुर के नाम से जाना जाता है कनिंघम के अनुसार गोविषाण राज्य में काशीपुर के साथ-साथ रामपुर और पीलीभीत जनपद भी थे इसका विस्तार रामगंगा से लेकर शारदा तक था !
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