Sunday, January 23, 2022

कार्तिकेय पुर राजवंश

                 कार्तिकेयपुर राजवंश
उत्तराखंड के इतिहास का पहला ऐतिहासिक राजवंश इसे ही माना जाता है इसका समयावधि लगभग 700 ई. से 1100 ई. का माना जाता है! इस वंश के अंतर्गत तीन परिवार आते थे! जिसमें 14 राजाओं ने शासन किया था! 
प्रथम परिवार (बसंत देव राजवंश) 
द्वितीय परिवार (निम्बर देव राजवंश) 
तृतीय परिवहन (सलोणादित्य राजवंश) 

कार्तिकेयपुर राजवंश का मूल स्थान- इतिहासकार लक्ष्मीधर जोशी और बद्री दत्त पांडे के अनुसार यह अयोध्या के सूर्यवंशी थे! उत्तराखंड में मूल कार्तिकेय पुर का स्थान जोशीमठ चमोली माना जाता है किंतु तो यह भी संभव है कि कार्तिकेयपुर  मूल रूप से वर्तमान कार्तिकेय मंदिर क्षेत्र रुद्रप्रयाग भी हो सकता है कार्तिकेयपुर राज्य इष्ट देवता कार्तिकेय स्वामी थे ताम्रपत्र से स्पष्ट होता है कि  कत्युरी शासकों की राजभाषा संस्कृति तथा लोकभाषा संभवत प्राकृति थी! 

प्रथम शाखा  (बसंतदेव राजवंश)-
1- बसंतदेव- यह कन्नौज के राजा यशोवर्मन का सामंत था! जो ललितादित्य मुक्तापीड के आक्रमण के बाद स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर देता है और बसंत देव राजवंश की स्थापना करते हैं  इतने जोशीमठ के पास कार्तिकेयपूर को अपनी राजधानी बनाया इस वंश की जानकारी बागेश्वर शिलालेख से मिलती है बागेश्वर से प्राप्त त्रिभुवन राज के शिलालेख से पता चलता है कि इस वंश का संस्थापक बसंत देव था
बागेश्वर अभिलेख से यह पता चलता है कि बसंत देव ने शरणेश्वर ग्राम में वैष्णवों को भूमि दान दी थी इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी और जोशीमठ में नरसिंह मंदिर व बागेश्वर के मंदिरों का निर्माण करें बागेश्वर अभिलेख  मैं इसकी पत्नी का नाम सज्यनारा मिलता है यह शैव धर्म को मानता था! 
Note- कुछ किताबों में बसंत देव की पत्नी राज नारायणी देवी उत्तीर्ण है! 
बसंत देव के बाद के राजा का नाम वर्णन नहीं है उसके बाद खर्परदेव का नाम आता है! 
2- खर्परदेव- इसकी पत्नी का नाम कल्याणी देवी था इसने भी परमभट्ठारक महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी  इसके बाद इसका पुत्र कल्याण राज अर्थात अधिधज राजा बना! 

3- कल्याण राज- उसकी पत्नी का नाम लद्धा देवी था! उसके बाद त्रिभुवन राज गद्दी में बैठा! 

4- त्रिभुवन राज- बसंत देव के समान त्रिभुवन महाराजाधिराज परमेश्वर तथा परमभट्ठारक की उपाधि धारण की थी  त्रिभुवन राज अपने दानवीर प्रगति के लिए जाना जाता था इसने कई मंदिरों के लिए भूमि दान की थी यह इस वंशिका अंतिम राजा था इसलिए किरातों तथा शोखा जनजाति से मैत्री संबंध स्थापित किए थे इसके किरात मित्र द्वारा गंवियपिंड देवता को  ढाई द्रोण दान दिए जाने का जिक्र भी प्राप्त होता है! 
नालंदा अभिलेख से पता चलता है कि धर्मपाल ने त्रिभुवनराज के समय उत्तराखंड में आक्रमण किया और इस समय का फायदा उठाते हुए निम्बर राजवंश ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की! 

👉 द्वितीय परिवार (निम्बर राजवंश)-
राजा निम्बर- पांडुकेश्वर ताम्रपत्र तथा बागेश्वर शिलालेखों से इस वंश के राजाओ की जानकारी मिलती है! 
राजा निम्बर इस राजवंश का स्थापक था जो शैव  का अनुयाई था! और भगवती नंदा का आराधक था! 
इसकी पत्नी का नाम दाशु या नाथु देवी था! उसके पुत्र का नाम इष्टगण था! 
Note-
निम्बर को  पांडुकेश्वर ताम्रपत्रों मे श्री निम्वरम् तथा बागेश्वर शिलालेख मे निंबर्त कहा है! 
ललितसुर देव के ताम्रपत्रों में उसकी प्रशंसा की गई है! 

इष्टगण- यह पहला शासक था जिसने संपूर्ण उत्तराखंड को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया  इसने परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की  इसकी पत्नियों के नाम वेगादेवी और धरा देवी मिलता है!  धरा देवी  के पुत्र का नाम ललितसूर देव था जो बाद में राजा बनता है इसके ताम्र अभिलेखों में इष्टगण को परममाहेश्वर और परम ब्राह्मण कहा गया है! 
 Note- इसने तराई भाबर क्षेत्र में शत्रु को हराया था! 
इसने जागेश्वर में नव दुर्गा मंदिर,लवलीश  मंदिर तथा नटराज मंदिर का निर्माण कराया था! 

 ललितसुर देव- यह 832ई.में गद्दी में बैठा इसने अपने पिता की भांति परम भट्ठारक महाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की! 
की अन्य उपाधि परममाहेश्वर तथा  परम ब्राह्मण थी! 
पांडुकेश्वर से इसके दो ताम्र अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिसमें इसे वाराहअवतार के सामान बताएं! 
इस की दो पत्नियां थी लया देवी और सामा देवी थी! सामा देवी के पुत्र का नाम  भूदेव था जो इसके बाद राजा बनता है! 
Note- बागेश्वर में बैजनाथ मंदिर का निर्माण भूदेव ने कराया परंतु यहां नारायण मंदिर का निर्माण सामा देवी ने कराया! 

भूदेव- यह कट्टर ब्राह्मण धर्मावलम्बी था  इसकी उपाधि परम भट्ठारक महाराजअधिराज परमेश्वर,  परम ब्राह्मण भक्त तथा बुद्ध श्रवण शत्रु थी! 
इसने बागेश्वर में शिलालेख उत्तीर्ण कराया था  इस वंश की राजधानी बागेश्वर की गरुड़ घाटी एवं कार्तिकेयपुर दोनों थी!  
इसके बाद सलोणादित्य वंश का उदय हुआ! 

सलोणादित्य वंश- इस वंश की जानकारी हमें पांडुकेश्वर ताम्रपत्र तथा देशटदेव के बालेश्वर ताम्रपत्र  से पता चलती है! इस वंश का पहला शासक सलोणादित्य था! 
सलोणादित्य- इसकी पत्नी का नाम सिंधवली देवी था  इसे अभिलेखों में भानुदित्य की भांति स्वभुजा से राज्य प्राप्त करने वाला शासक कहा गया है! 

इच्छटदेव- सलोणादित्य के पुत्र पदमटदेव के ताम्रपत्र में इसे ब्राह्मण भक्त शासक कहां है इसकी रानी का नाम सिंधु देवी था इसका राज्य वर्तमान चंपावत पिथौरागढ़ क्षेत्र तक विस्तृत था! 

देशटदेव- ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि इसने अपने शासन के 5 वर्ष विजयेश्वर मंदिर को एशाल विषय के अंतर्गत यमुना नामक ग्राम अग्रहार के रूप में दिया! यह राजा दीन दुखियों का रक्षक एवं स्वर्ण दानदाता के नाम से भी जाना जाता है! इसकी पत्नी का नाम पझल्ल देवी था इन के पुत्र का नाम पदम देव था जो देशटदेव  के बाद राजा बनता है! 

Note-  देशटदेव  का चंपावत के बालेश्वर मंदिर में ताम्रपत्र है जिसमें किसी शत्रु के प्रयास को विफल बनाने वाला कहा गया है! 

पद्मदेव- इसका ताम्रपत्र पांडुकेश्वर से प्राप्त हुआ जिससे हमें पता चलता है कि इसने 25 वर्ष से अधिक दान किया तथा अपने शासन के 25 वर्ष बद्रीनाथ मंदिर के नाम पर भूमि दान की इसके बाद का पुत्र सुभिक्षराज गद्दी में बैठता है! सुमिक्षराज के ताम्रपत्र में इसे  परम माहेश्वर,ब्राह्मण भक्त एवं सूर्य के समान प्रकाशवान, कर्ण, दधीचि, चंद्रगुप्त से अधिक दानदाता कहा गया है! 

सुभिक्षराज - इसे वैष्णव तथा परम ब्राह्मण का जाता है यह शास्त्रों के अनुसार शासन करने वाला शासक था इसने सुभिक्षपुर नामक नगर बताया और इसे अपनी राजधानी बनाया! यह कार्तिकेयपुर राजवंश का अंतिम शासक था

 Note- जागरों एवं पवांडो के अनुसार सुभिक्षराज के पुत्र नरसिंह के द्वारा कार्तिकेयपुर से बैजनाथ यानी कत्यूरी घाटी राजधानी  स्थानांतरित की! 






No comments:

Post a Comment