Friday, January 28, 2022

संधि

                    संधि और उसके प्रकार
संधि-जब तो समीपवर्ती वर्णों के मेल से जो विकार या परिवर्तन होता है  उसे संधि कहते हैं यह तीन प्रकार की होती है स्वर संधि व्यंजन संधि विसर्ग संधि

स्वर संधि की परिभाषा

जब दो स्वर आपस में जुड़ते हैं या दो स्वरों के मिलने से उनमें जो परिवर्तन आता है, तो वह स्वर संधि कहलाती है। जैसे :

  • विद्यालय : विद्या + आलय 

इस उदाहरण में आप देख सकते है कि जब दो स्वरों को मिलाया गया तो मुख्य शब्द में हमें अंतर देखने को मिला। दो आ मिले एवं उनमे से एक आ का लोप हो गया।

  • पर्यावरण : परी + आवरण 

ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आपने देखा दो स्वरों को मिलाया गया एवं उससे वाक्य में परिवर्तन आया। ई एवं आ को मिलाने से या बन गया।

  • मुनींद्र : मुनि + इंद्र 

ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं इ एवं इ दो स्वरों को मिलाया गया। जब दो इ मिलीं तो एक ई बन गयी। यह परिवर्तन हुआ।

स्वर संधि के प्रकार

स्वर संधि के मुख्यतः पांच भेद होते हैं:

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादी संधि

1. दीर्घ संधि :

संधि करते समय अगर (अ, आ) के साथ (अ, आ) हो तो ‘आ‘ बनता है, जब (इ, ई) के साथ (इ , ई) हो तो ‘ई‘ बनता है, जब (उ, ऊ) के साथ (उ ,ऊ) हो तो ‘ऊ‘ बनता है। जब ऐसा होता है तो हम इसे दीर्घ संधि कहते है। इस संधि को ह्रस्व संधि भी कहा जाता है।

उदाहरण:

  • विद्या + अभ्यास : विद्याभ्यास (आ + अ = आ)
  • परम + अर्थ : परमार्थ (अ + अ = आ)
  • कवि + ईश्वर : कवीश्वर (इ + ई = ई)
  • गिरि + ईश : गिरीश (इ + ई = ई)
  • वधु + उत्सव : वधूत्सव (उ + उ = ऊ)

2. गुण संधि

जब संधि करते समय  (अ, आ) के साथ (इ , ई) हो तो ‘ए‘ बनता है, जब (अ ,आ)के साथ (उ , ऊ) हो तो ‘ओ‘ बनता है, जब (अ, आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर‘ बनता है तो यह गुण संधि कहलाती है।

उदाहरण:

  • महा + उत्सव :  महोत्सव  (आ + उ = ओ)
  • आत्मा + उत्सर्ग : आत्मोत्सर्ग (आ + उ = ओ)
  • धन + उपार्जन : धनोपार्जन (अ + उ = ओ)
  • सुर + इंद्र : सुरेन्द्र  (अ + इ = ए)
  • महा + ऋषि : महर्षि (आ + ऋ = अर)

3. वृद्धि संधि

जब संधि करते समय जब अ , आ  के साथ  ए , ऐ  हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब अ , आ  के साथ ओ , औ हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।

उदाहरण:

  • महा + ऐश्वर्य : महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)
  • महा + ओजस्वी : महौजस्वी (आ + ओ = औ)
  • परम + औषध : परमौषध (अ + औ = औ)
  • जल + ओघ : जलौघ (अ + ओ = औ)
  • महा + औषध : महौषद (आ + औ = औ)

4. यण संधि

जब संधि करते समय इ, ई के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है, जब उ, ऊ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ऋ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।

उदाहरण :

  • अति + अधिक : अत्यधिक (इ + अ = य)
  • प्रति + अक्ष : प्रत्यक्ष (इ + अ = य)
  • प्रति + आघात : प्रत्याघात (इ + आ = या)
  • अति + अंत : अत्यंत (इ + अ = य)
  • अति + आवश्यक : अत्यावश्यक (इ + आ = या)

5. अयादि संधि-जब संधि करते समय ए , ऐ , ओ , औ के साथ कोई अन्य स्वर हो तो (ए का अय)(ऐ का आय), (ओ का अव)(औ – आव) बन जाता है। यही अयादि संधि कहलाती है।

  • उदाहरण:

    • श्री + अन : श्रवण
    • पौ + अक : पावक
    • पौ + अन : पावन
    • नै + अक : नायक

                व्यंजन संधि 

व्यंजन संधि-जब संधि करते समय व्यंजन के साथ स्वर या कोई व्यंजन के मिलने से जो रूप में परिवर्तन होता है, उसे ही व्यंजन संधि कहते हैं।
  • यानी जब दो वर्णों में संधि होती है तो उनमे से पहला यदि व्यंजन होता है और दूसरा स्वर या व्यंजन होता है तो उसे हम व्यंजन संधि कहते हैं।

व्यंजन संधि के कुछ उदाहरण :

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • अभी + सेक = अभिषेक
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • जगत + ईश = जगदीश

व्यंजन संधि के नियम :

व्यंजन संधि के कुल 13 नियम होते हैं जो कि निम्न है :

नियम 1:

  • जब किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या (य्, र्, ल्, व्, ह) से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है।
  • अगर व्यंजन से स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी।
  • लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे।

उदाहरण :

  • क् का ग् में परिवर्तन :
    • वाक् +ईश : वागीश
    • दिक् + अम्बर : दिगम्बर
    • दिक् + गज : दिग्गज
  • ट् का ड् में परिवर्तन :
    • षट् + आनन : षडानन
    • षट् + यन्त्र : षड्यन्त्र
    • षड्दर्शन : षट् + दर्शन
  • त् का द् में परिवर्तन :
    •  सत् + आशय : सदाशय
    •  तत् + अनन्तर : तदनन्तर
    •  उत् + घाटन : उद्घाटन
  • प् का ब् में परिवर्तन :
    • अप् + ज : अब्ज
    • अप् + द : अब्द आदि।

नियम 2:

  • अगर किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् का ङ्च् का ज्ट् का ण्त् का न्, तथा प् का म् में परिवर्तन हो जाता है।

उदाहरण :

  • क् का ङ् में परिवर्तन :
    • दिक् + मण्डल : दिङ्मण्डल
    • वाक् + मय  : वाङ्मय
    • प्राक् + मुख : प्राङ्मुख
  • ट् का ण् में परिवर्तन :
    • षट् + मूर्ति : षण्मूर्ति
    • षट् + मुख : षण्मुख
    • षट् + मास : षण्मास
  • त् का न् में परिवर्तन :
  • उत् + मूलन : उन्मूलन
  • उत् + नति :  उन्नति
  • जगत् + नाथ : जगन्नाथ
  • नियम 3-
  • जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है।
  • म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।
  • उदाहरण :
  • म् का (क ख ग घ ङ) के साथ मिलन :
  • सम् + कल्प : संकल्प/सटड्ढन्ल्प
  • सम् + ख्या : संख्या
  • सम् + गम : संगम
  • शम् + कर : शंकर
  • म् का (च, छ, ज, झ, ञ) के साथ मिलन :
  • सम् + जीवन : संजीवन
  • सम् + चय : संचय
  • किम् + चित् : किंचित
  • म् का (ट, ठ, ड, ढ, ण) के साथ मिलन :
  • दम् + ड : दंड
  • खम् + ड : खंड
  • म् का (त, थ, द, ध, न) के साथ मिलन :
  • सम् + देह : सन्देह
  • सम् + तोष : सन्तोष
  • किम् + नर : किन्नर
  • म् का (प, फ, ब, भ, म) के साथ मिलन :
  • सम् + पूर्ण : सम्पूर्ण
  • सम् + भव : सम्भव
  • त् का (ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व्) के उदहारण :
  • जगत् + ईश : जगदीश
  • भगवत् + भक्ति : भगवद्भक्ति
  • तत् + रूप : तद्रूपत
  • सत् + भावना = सद्भावना
  • नियम 4 :
  • त् से परे च् या छ् होने पर ज् या झ् होने पर ज्ट् या ठ् होने पर ट्ड् या ढ् होने पर ड् और  होने पर ल् बन जाता है।
  • म् के साथ (य, र, ल, व, श, ष, स, ह) में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।
  • उदाहरण :

    • सम् + वत् : संवत्
    • तत् + टीका : तट्टीका
    • उत् + डयन : उड्डयन
    • सम् + शय : संशय

    नियम 5:

    • जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ  या  का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है।

    उदाहरण:

    • उत् + शिष्ट : उच्छिष्ट
    • शरत् + चन्द्र : शरच्चन्द्र
    • उत् + छिन्न : उच्छिन्न
    • उत् + चारण : उच्चारण

    नियम 6 :

    • जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ  या  का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है।

    उदाहरण :

    • उत् + हरण : उद्धरण
    • तत् + हित : तद्धित
    • सत् + जन : सज्जन
    • जगत् + जीवन : जगज्जीवन
    • वृहत् + झंकार : वृहज्झंकार
    • उत् + हार : उद्धार

    नियम 7:

    • स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है।
    • त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है।
    • जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है।

    उदाहरण:

    • आ + छादन : आच्छादन
    • संधि + छेद : संधिच्छेद
    • तत् + टीका : तट्टीका
    • वृहत् + टीका : वृहट्टीका
    • भवत् + डमरू : भवड्डमरू
    • स्व + छंद : स्वच्छंद

    नियम 8:

    • अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।
    • त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है।

    उदाहरण :

    • तत् + लीन = तल्लीन
    • विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
    • किम् + चित = किंचित
    • उत् + लास = उल्लास

    नियम 9 :

    • म के बाद य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से कोई एक व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है।

    उदाहरण:

    • सम् + योग : संयोग
    • सम् + हार : संहार
    • सम् + वाद : संवाद
    • सम् + शय : संशय

    नियम 10 :

    रू या थ्रू के बाद न तथा इनके बीच में चाहे स्वर, क वर्ग, प वर्ग , अनुश्वार , य व या ह आये तो न् का ण हो जाता है।

    उदाहरण :

    • भुष + अन : भूषण
    • प्र + मान : प्रमाण
    • राम + अयन : रामायण

    नियम 11 :

    • यदि किसी शब्द का पहला वर्ण स हो तथा उसके पहले अ या आ के अलावा कोई दूसरा स्वर आये तो स के स्थान पर ष हो जाता है।

    उदाहरण:

    • अनु + सरण : अनुसरण
    • सु + सुप्ति : सुषुप्ति
    • वि + सर्ग : विसर्ग
    • नि : सिद्ध : निषिद्ध

    नियम 12 :

    • यौगिक शब्दों के अंत में यदि प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण न हो, तो उसका लोप हो जाता है।

    उदाहरण :

    • हस्तिन + दंत : हस्तिन्दंत
    • प्राणिन + मात्र : प्राणिमात्र
    • राजन + आज्ञा : राजाज्ञा

    नियम 13 :

    जब ष के बाद त या थ रहे तो त के बदले ट और थ के बदले ठ हो जाता है। जैसे-

    • उदाहरण:

      • शिष् + त : शिष्ट
      • पृष् + थ : पृष्ठ


     

                 विसर्ग संधि

    जब संधि करते समय  विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन वर्ण के आने से जो विकार उत्पन्न होता है, हम उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे:

    विसर्ग संधि के उदाहरण :

    • अंतः + करण : अन्तकरण
    • अंतः + गत : अंतर्गत
    • अंतः + ध्यान : अंतर्ध्यान
    • अंतः + राष्ट्रीय : अंतर्राष्ट्रीय

    विसर्ग संधि के नियम :

    नियम 1:

    अगर कभी शब्द में विसर्ग के बाद च या छ हो तो विसर्ग श हो जाता है। ट या ठ हो तो ष तथा त् या थ हो तो स् हो जाता है। जैसे:

    उदाहरण:

    • नि: + चल : निश्चल
    • धनु: + टकार : धनुष्टकार
    • नि: + तार : निस्तार

    नियम 2:

    अगर कभी संधि के समय विसर्ग के बाद श, ष या स आये तो विसर्ग अपने मूल रूप में बना रहता है या उसके स्थान पर बाद का वर्ण हो जाता है।

    उदाहरण : 

    • नि: + संदेह : निस्संदेह
    • दू: + शासन : दुशासन

    नियम 3:

    अगर संधि के समय विसर्ग के बाद क, ख या प, फ हों तो विसर्ग में कोई विकार नहीं होता।

    उदाहरण: 

    • रज: + कण : रज:कण
    • पय: + पान : पय:पान

    नियम 4:

    अगर संधि के समय विसर्ग से पहले ‘अ’ हो और बाद में घोष व्यंजन या ह हो तो विसर्ग ओ में बदल जाता है।

    उदाहरण :

    • मनः + भाव : मनोभाव
    • यशः + दा : यशोदा

    नियम 5:

    अगर संधि के समय विसर्ग से पहले अ या आ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तथा बाद में कोई घोष वर्ण हो तो विसर्ग के स्थान र आ जाता है। जैसे: 

    उदाहरण :

    • निः + गुण : निर्गुण
    • दु: + उपयोग : दुरूपयोग

    नियम 6:

    अगर संधि के समय विसर्ग के बाद त, श या स हो तोविसर्ग के बदले श या स् हो जाता है। जैसे: 

    उदाहरण :

    • निः + संतान :  निस्संतान
    • निः + तेज़ : निस्तेज
    • दु: + शाशन : दुश्शाशन

    नियम 7:

    अगर संधि करते समय विसर्ग से पहले अ या आ हो तथा उसके बाद कोई विभिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है एवं पास-पास आये हुए स्वरों की संधि नहीं होती। जैसे:

    उदाहरण:

    • अतः + एव : अतएव

    नियम 8:

    • अंत्य के बदले भी विसर्ग होता है। यदि के आगे अघोष वर्ण आवे तो विसर्ग का कोई विकार नहीं होता और यदि उनके आगे घोष वर्ण आ जाता है तो र ज्यों का त्यों रहता है। जैसे: 

    उदाहरण:

    • पुनर् + उक्ति : पुनरुक्ति
    • अंतर् + करण : अंतःकरण

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