उत्तराखंड में चंद्र वंशएटकिंसन और बद्री दत्त पांडे इस वंश का संस्थापक सोमचंद्र को मानते हैं परंतु फ्रेजर साहब यशवंत सिंह कटोच इस वंश का संस्थापक थोहरचंद्र को मानते हैं!
सोम चंद- यह मुलरूप से इलाहाबाद के निकट झुसी या प्रतिस्थानपुर नामक स्थान से लगभग 685 ईसवी या 700 ईसवी में कुमाऊ आया! इसका विवाह कत्यूरी शासक ब्रह्मा देव की पुत्री चंपा से हुआ दहेज में इसे चंपावत क्षेत्र में 300 नाली जमीन मिली जहां इसने चंद्र वंश की नींव रखी!
दहेज की जमीन में इसने अंडाकार राजबुंगा का किला बनाया था!
सोमचंद एक मांडलिक राजा था जो जयदेवमल डोडी को कर देता था!
इसने किले की सुरक्षा के लिए चाराल या चारखाम व्यवस्था लागू की और कार्की चौधरी बोरा तड़ागी को राजकार्य हेतु नियुक्त किया!
मेहरा व फर्त्याल लोगों से अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए इन्हें उच्च पद दिए और इनकी मदद से कुमाऊं में पंचायती राज व्यवस्था की नींव रखी है!
चोथानी ब्राह्मणों की नियुक्ति की जिसमें जोशी बिष्ट पांडे सिमल्टीया आते थे!
इसका पहला अभियान खस राजा के विरुद्ध था जिसमें इसका सेनापति कालू तड़ागी था इस मे इसकी प्रथम विजय हुई!
कुमाऊनी ऐपण कला का उदय सोमचंद ने ही कराया था!
केपी नौटियाल के अनुसार संसद ने जागेश्वर में कई मंदिरों का निर्माण कराया था!
सोमचंद ने पुलिस व्यवस्था व टैक्स व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए बुंढो और सयानो की नियुक्ति की!
721 ईसवी में इसका निधन हो गया!
इसके बाद आत्मचंद्र पूर्णचंद्र राजा बने जो अयोग्य राजा सिद्धू हुए!
राजा इंद्रचंद- इसका शासनकाल 758 ईस्वी से 778 ईसवी का था! यह तिब्बत से नेपाल की मदद से रेशम कीटो को लाया और यहां रेशम कारखाने खोलें! इसके समय पटरंगवाली झूठी खबरें सुर्खियों में थी!
Note- पटरंगवाली खबर के विषय में ऐसी चर्चा थी इन खबरों से रेशम रगंते समय रंग पक्का होता था!
राजा वीणाचंद- इसका शासनकाल 856 से 869 ईसवी तक का था यह एक विलासी राजा था संतान ना होने के कारण इस पर खसो ने आक्रमण किया और 200 साल तक शासन किया!
वीरचंद- यह संसार चंद्र का वंशज था जो नेपाल में रहता था सौनखडायत की मदत सौपाल नामक खस राजा को हराकर उत्तराखंड में पुनः चंद्र वंश की नींव रखी!
राजा नानकोंचंद- इसका शासनकाल 1177 से 1195 तक का था गोपेश्वर के त्रिशूल लेख से पता चलता है कि इस के समय में 1191 में अशोक चल्ल का यहां आधिपत्य था!
सहणपाल व पुरुषोत्तम बोधगया शिलालेखों में इसे खस देश का राजा अधिराज कहा गया!
बलकेश्वर मंदिर चंपावत का लेख 1223 में अशोक चल्ल व क्राचल्लदेव नामक राजाओं के नाम उल्लेखित है!
थोहरचंद- कुछ इतिहासकार इसे चंद्र वंश का संस्थापक मानते हैं परंतु वह 23 वें नंबर का राजा था! राजा अभयचंद के गढ़ सारा कुट ताम्रपत्र में उसे थोरहत अभयचंद कहा गया है! यह ताम्रपत्र लोहाघाट में है!
त्रिलोकचंद- इसका शासनकाल 1296 से 1303 ईसवी तक था इसने छकाता अर्थात नैनीताल पर आक्रमण किया और भीमताल में एक किला बनाया इसने पाली,बारामंडल क्षेत्र को भी विजित किया था इसके बाद डमरु चंद्र धर्म चंद्र अभय चंद्र गद्दी में बैठे जिनका अधिक विवरण प्राप्त नहीं है!
अभयचंद- चंद्र वंश का प्रथम शासक जिसका वर्णन अभिलेखों में मिलता है इसके चार अभिलेख प्राप्त हुए हैं मानेसर मंदिर भीतरी शिलालेख, वालकेश्वर मंदिर लघु स्तंभ लेख, गढ़ सारी ताम्रपत्र, चौकुनी बोरा शिलालेख है! इसका शासनकाल 1344 से 1374 तक था!
गरुण ज्ञानचंद- दिसंबर 1378 में अभय चंद की मृत्यु के बाद ज्ञान चंद्र प्रथम जिसे गुरु ज्ञानचंद के नाम से भी जानते हैं वह गद्दी में बैठा! इस के दरबार में नीलू कठायत व जस्सा कमलेखी थे! ज्ञान चंद ने नीलू कठायत को रौत भुमि दी थी! परंतु जस्ता कमलेखी के बहकावे में ज्ञान चंद्र नीलू कठायत को मरवा देता है! नीलू कठायत को कुमय्या खिल्लत भी कहा जाता है! ज्ञान चंद्र को गरुण की उपाधि फिरोजशाह तुगलक ने दी थी! 1591 के ताम्रपत्र से पता चलता है कि यह प्रथम चंद शासक था जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी!
उधान चंद या ध्यानचंद- इसका शासनकाल 1420 से 1422 तक था इतने चंपावत के बालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था जिसे बाद में विक्रम चंद्र ने कराया इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 1796 में गोरखा सूबेदार महावीर थापा ने कराया!
विक्रम चंद- इसने गुजराती ब्राह्मणों को भी भूमि दान की तथा बालेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया! इसके समय माल क्षेत्र में सुल्तान मुबारक शाह की सेना द्वारा आक्रमण किया गया था! इसके समय जनता ने विद्रोह किया था!
भारती चंद- विक्रम चंद्र के बाद कली कल्याण चंद गद्दी में बैठता है जिसका काफी विद्रोह होता है इसी विद्रोह का फायदा उठाकर भारती चंद्र गद्दी प्राप्त करता है! इतने डोडी की अधीनता स्वीकार नहीं की और इन से 12 वर्ष तक युद्ध किया और नायक जाति का उद्भव हुआ इस समय डोडी का राजा नाग माल था! डोडी अभियान में भारती चंद के पुत्र रतन चंद्र का बहुत बड़ा हाथ इसी के कारण इस अभियान को सफल बनाया गया! भारती चंद ने अपनी सेना में सभी को भर्ती किया इसने अपना पड़ाव देव सिंह मैदान में लगाया था जिसके साथ कटकु नौला में हैं!
रतनचंद- जैंदा किराल की मदद से इसने उत्तराखंड में सोर क्षेत्र में भूमि बंदोबस्त कराया जो उत्तराखंड का प्रथम बंदोबस्त था!
कीर्ति चंद- यह नाथ संप्रदाय का अनुयाई था और पहला शासक था जिसने गढ़वाल पर आक्रमण किया इस समय गढ़वाल का राजा अजय पाल था गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा को देवघाट निर्धारित किया!
इसके बाद प्रताप चंद्र तारा चंद मानिकचंद कल्याण चंद्र तथा पूर्ण चंद्र राजा बने!
मानिकचंद ने इस्लाम खां के विरोधी खवास खां को शरण दी थी!
भीष्मचंद- यह चंद वंश का 43वे नंबर का का राजा था! इसका शासनकाल 1511 से 1533 ईस्वी तक रहा यह अंतिम शासक था जिसने चंपावत से शासन किया था! इसने अल्मोड़ा की स्थापना की और इसका नाम आलमनगर रखा यहां खगमराकोट का किला बनाया परंतु वह यहां से शासन नहीं कर पाया उसने अपनी राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा बनाए जिसका लाभ उठाकर रामगढ़ के गणपति गुजवा ने इसे मार कर बारामंडल पर अधिकार कर लिया! इस समय इसका गोद लिया हुआ पुत्र बालोकल्याण चंद डोडी अभियान में था वह वहां संधि कर यहां आता है और गुजवा मारता है!
बालोकल्याण चंद- यह अल्मोड़ा में शासन करने वाला पहला शासक था! इतने गंगोलीहाट पर भी अपना अधिकार प्राप्त किया!
इसका विवाह डोडी के राजा हरि मल की बहन से हुआ और दहेज में सोर क्षेत्र मिला! परंतु इसे सिरा क्षेत्र चाहिए था!
सिरा को प्राप्त करने के लिए इसने उस पर आक्रमण किया परंतु यह सफल रहा इसने दानपुर क्षेत्र को भी जीता था! इसके बाद इसका पुत्र रुद्रचंद गद्दी में बैठता है
Note- इतने अल्मोड़ा में लाल मंडी का किला तथा मल्ला महल का निर्माण कराया था परंतु कुछ इतिहासकार मल्ला महल का निर्माणकर्ता रुद्रचंद को मानते है!
राजा रुद्रचंद- यह अकबर के समकालीन था इसने नागौर की लड़ाई में अकबर का साथ दिया था इसकी बहादुरी देखकर अकबर ने इसे 84माल दे दिया था!
इसका बीरबल से भी अच्छा संबंध था इसने बीरबल को अपना पुरोहित बनाया था!
इसने पुरुष पंत के सहयोग से डोडी के रैका राजा हरिमल्ल को हराया था परंतु बधाणगढी के युद्ध में गढ़वाल नरेश बलभद्र साह के साथ युद्ध करते समय पुरुष पंत मारा जाता है!
इतने रुद्रपुर की स्थापना व मल्ला महल का निर्माण कराया था एवं 1593 में रामशिला मंदिर का निर्माण करें तथा संस्कृति के प्रचार-पसार किया एवं अल्मोड़ा में संस्कृत शिक्षा की व्यवस्था की युवाओं को संस्कृत सीखने के लिए काशी तथा कश्मीर भेजा!
इसने त्रैवर्णिक धर्मनिर्णय, श्येनिकशास्त्र, ययाति चरित्रम्, यथा ऊषिरागोदय चार ग्रंथ लिखे!
इतने चौथानी ब्राह्मणों के नीचे भी ब्राह्मण वर्ग बनाएं- पंचबिडिये(तिथानी) ब्राह्मण, हलिया ब्राह्मण(पितलिये) ओली ब्राह्मण!
लक्ष्मीचंद- राजा रुद्रचंद के बाद उसका बेटा लक्ष्मीचंद गद्दी में बैठता है जिसे मानोदय काव्य लक्ष्मण चंद कहा है!
इसके मुगलों से अच्छे संबंध थे जिस कारण जहांगीर की आत्मकथा में से पहाड़ी राजाओं में सबसे अमीर राजा बताया गया!
गढ़वाल नरेश मानशाह के साथ सात युद्ध हारने के बाद आठवे युद्ध में अपने सेनापति गैंडा सिह साथ उतरता है! इस युद्ध को यह जीत जाते है और मानशाह के सेनापति खतडसिह को मार देते है! कुछ लोगों का मत है तब से कुमाऊं में खतड़वा त्यौहार मनाया जाता है
लक्ष्मीचंद के गढ को गीदड़ गढ़ तथा इसे लखुली बिरालो कहते थे!
इसने न्योवली और बिष्टावाली नामक कचहरिया बनाई थी! 1602 में इसने बागनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था
इसने कई बाग बगीचों का निर्माण कराया था तथा ज्यूलिया व सिरती नामक कर भी लगाए थे! लोक मान्यता के अनुसार इसके समय करो का भार इतना था कि लोग सब्जियां अपनी छत पर उगाते थे!
इसने प्रशासन को तीन भागों में बांटा था-
सरदार- परगने का अधिकारी.
फौजदार- सेना का अधिकारी
नेगी(दस्तुर) - राज्य के छोटे कर्मचारी
लक्ष्मीचंद के भाई का नाम शक्ति गोसाई था जो जन्म से अंधा था इसे कुमाऊ का धृतराष्ट्र कहा जाता है यह प्रशासनिक व्यवस्था देखता था!
लक्ष्मी चंद के बेटे दीपचंद त्रिमलचंद नारायण चंद नीलू गोसाईं थे!
राजा दिलीप चंद- इसका शासनकाल 1621 से 1624 तक था यह लक्ष्मीचंद का पुत्र था टीवी के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है!
राजा विजय चंद- यह दिलीप चंद का बेटा था इस के शासन में शंकर कार्की पीरु गोसाई विनायक भट्ट का हस्तक्षेप था!
विजय चंद के चाचा ने इन तीनों का विरोध किया जिस कारण इन्होंने इसकी आंखें निकाल दी जिससे इसके कुछ समय बाद इसकी मृत्यु हो जाती है इसके बेटे को पुरोहित श्री धर्माकर तिवारी जी पालते हैं! जो बाद में बाज बहादुर चंद्र के नाम से राजा बनता है!
नीलू गोसाई की मृत्यु के बाद यह तीनों राजा विजयचंद को भी मार देते हैं! भय के कारण लक्ष्मी चंद के बेटे त्रिमल चंद गढ़वाल नरेश श्याम शाह की शरण लेता है और श्याम शाह एवं मेहरा दल की मदद से कुमाऊ की गद्दी प्राप्त करता है!
त्रिमलचंद शंकर कार्की को मार देता है और विनायक भट्ट की आंखें निकाल देता है पीरु गोसाई भय के कारण आत्महत्या कर लेता है!
यह नीलू कठआयत के खानदान के एक व्यक्ति कर्ण कठआयत को रसोईया दरोगा बनाता है!
त्रिमलचंद की 1630 में जागेश्वर में मूर्ति स्थापित की थी!
इसके समय छखाता में विद्रोह हुआ था इतने महिपतिशाह के साथ भी युद्ध किया था!
बाजबहादुर चंद- यह नीलू गुसाई का पुत्र था इसे धर्माकर तिवारी जी ने पाला! इसका मूल नाम बाजा था राजा बनने से पूर्व यहां ग्वाले का जीवन जीता था!
जब शाहजहां ने गढ़वाल पर आक्रमण किया इसने उसकी मदद की थी जिस कारण इसे उसने बहादुर की उपाधि दी!
इसके के निर्माण कार्य-
कटारमल सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार
भीमेश्वर मंदिर का निर्माण( भीमताल)
एक हथिया देवास( पिथौरागढ़)
पिननाथ मंदिर (बागेश्वर) का निर्माण
घोड़ाखाल का गोलज्यु मंदिर
नंदा देवी की मूर्ति देवलगढ़ से अल्मोड़ा लाया था
इसके समकालीन गढ़वाली राजा-पृथ्वीपति शाह फतेहपतिशाह
इसके अन्य कार्य-
बाजपुर नगर की स्थापना!
1639 इसके एक अधिकारी काशीनाथ ने काशीपुर के स्थापना!
किसने प्रति परिवार से ₹1 कर लगाया था जो जजिया कर या पौल कर के समान था!
बेकार पर रोक लगाने वाला पहला शासक था!
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए गूंठ भूमि दान(1673) की थी!
इतने मांगा नामक कर भी लगाया था!
यह पहला शासक था जिसका चित्र प्राप्त हुआ!
इसने भोटिया व शौका व्यापारियों ने सिरती नामक कर लगाया था!
इसके समकालीन तीलू रौतेली थी इसे गढ़वाल की झांसी की रानी व गढ़वाल की जॉन आफ आर्क भी कहते हैं इसे रामू रजवार ने पूर्वी नयाल नदी तट मारा था! इसकी घोड़े का नाम बिंदुली था!
Note- अनंतदेव ने बाज बहादुर चंद के संरक्षण में
स्मृति कौस्तुभ नामक ग्रंथ लिखा!
उधोतचंद- इसका शासनकाल 1678 से 1698 तक था! 1678 मैं इसने गढ़वाल पर आक्रमण कर बधानगढ को जीता परन्तु इस युद्ध में इसका सेनापति मेसी साहू मारा जाता है!
इसने डोडी के राजा देवपाल को हराया था उनके बीच खैरागढ़ की संधि हुई अब डोडी कुमाऊं को कर देगा इस समय इसका सेनापति हेरू देउबा था! इस संधि के बाद इसने अल्मोड़ा में त्रिपुरी सुंदरी मंदिर सोमेश्वर महादेव मंदिर पार्वतीईश्वर मंदिर शुक्रेश्वर मंदिर उधोतमंदिर बनाया!
खैरागढ़ की संधि को डोडी के राजा कुछ समय बाद नहीं मानते और कुमाऊं पर आक्रमण करते हैं इस आक्रमण में उधोतचंद का सेनापति शिरोमणि जोशी मारा जाता है!
इसके अन्य कार्य-
इसने 1689 में तल्ला महल बनाया था! इसी वर्ष इसने एक लाख दीपक जलाकर देवताओं की पूजा की थी इसको ही लक्ष्य दीपावली कहा जाता है!
किसके समय में शाहू महाराज के राज कवि मतिराम अल्मोड़ा दरबार में आए थे!
इतने काशीपुर में आम के बगीचे लगाए जिसे अब नागनसती बाग कहा जाता हैं!
पंडित रुद्र दत्त पंत ने इसे तपस्वी राजा कहा है क्योंकि इस के दरबार में काफी ज्योतिष व विद्वान थे और इसने अंतिम समय में शांति की खोज में लग गया!
ज्ञानचंद- यह 1698-1708 तक राजा बना इसका पहला अभियान पिंडर घाटी में हुआ इसी वर्ष इतने बधाणगढ़ को लूटा! और यहां से नंदा देवी की स्वर्ण मूर्ति लाया और इसे नंदा देवी मंदिर में स्थापित किया 1703 में दूधौली के युद्ध में ज्ञान चंद्र ने फ़तेह पति साह को हराया!
इसने कत्यूरी में बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण तथा बैजनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया!
जगत चंद- इसका समय काल 1708 से 1720 तक था 1709 में गढ़वाल नरेश फ़तेहपतीसाह को हराकर श्रीनगर जीता!
इसके संबंध मुगल सम्राट बहादुरशाह से बहुत अच्छे थे!
यह पहला शासक था जिसने जुआरियों पर कर लगाया था!
इसके काल को कुमाऊं में चंद्रवंश का स्वर्ण काल कहा जाता है!
इसकी मृत्यु चेचक के कारण हुई थी!
राजा देवी चंद-
इसके समय गैडा बिष्ट , मानिक बिष्ट, पूरनमल का हस्तक्षेप था जो इसके सलाहकार थे इन्होंने इसके मन में विक्रमादित्य बनाने की जिज्ञासा को जगाया जिसके कारण इसने हवालबाग में चीड़ के वृक्ष को वस्त्रों से ठगा श्रीनगर जीत ना आने के कारण हवालबाग की पहाड़ी में श्रीनगर बनायाl
नोट- 1773 का रचुलाघाट का युद्ध प्रदीप शाह से जीता था परंतु गणाई का युद्ध प्रदीप साह से हार गया
दिल्ली का बादशाह का सेनापति/शहजादा साबिरशाह दिल्ली से भागकर इस के दरबार में आया अपने सेनापति दाऊदखां के साथ इस ने दिल्ली पर आक्रमण किया और असफल रहा
इसके पागलपंथी कार्यों के लिए एटकिंसन व रुद्र पंत ने इसी मोहम्मद बिन तुगलक कहा l
पूरनमल, गैडा बिष्ट मानिक बिष्ट इसकी हत्या कर दी उसके बाद राजा अजीत चंद बना l
अजीत चंद- इस के समय में पूरनमल मानिकचंद गैडा बिष्ट का हस्तक्षेप काफी अधिक था जिस कारण इसके काल को गैडा गैर्द्दी के नाम से जाना जाता है l
पुरनमल का संबंध उसकी पत्नी से था जिससे यह गर्भवती हो जाती है l इसका पता अजीत चंद को पता लगता है और यह तीनों उसे मरवा देते हैं इसके बाद यह ज्ञानचंद के दमाद अजीत सिंह को गद्दी में बैठ आते हैं जो गद्दी में अजीत चंद के नाम से बैठता है परंतु इसका समय बहुत कम होता है उसके बाद अजीत चंद का नाजायज नवजात बेटा वाला कल्याण चंद गद्दी में बैठता है इसका जनता विद्रोह करती हैl
इसके बाद लक्ष्मीचंद के पुत्र नारायण चंद्र का वंशज कल्याण चंद पंचम् गद्दी में बैठता है!
कल्याण चंद पंचम- इसे डोटी से अनूप सिंह त्यागी हीरा चौधरी और लक्ष्मण चौधरी लाए और कुमाऊं का राजा बनाय
यह एक अनपढ़ शासक था जिसका शासन का 1729 से 1747 तक था! यह पूरणमल मानिकचंद गैडा बिष्ट को मार देता है!
1743-44 मैं रोहिल नेता अली मोहम्मद खान ने अपने तीन सेनापति हाफिज रहमतखां, पैंदाखां, सरदार खां, के नेतृत्व में कुमाऊं में आक्रमण किया इस युद्ध में कल्याण चंद की मदद गढ़वाल नरेद प्रदीप शाह ने की थी इस युद्ध को दूनागिरी का युद्ध में कहते हैं! इसमें रोहिल विजेता रहे!
रोहिलो दूसरा युद्ध 1745 में हुआ इसमें इनका नेतृत्व नजीब खां कर रहा था परंतु इस समय कुमाऊँ सेना का नेतृत्व शिवदत्त जोशी कर रहा था! इस युद्ध में कुमाऊं की विजय हुई!
Imp-
राजा कल्याणचंद के दरबार में कभी शिवदत्त थे जिन्होंने कल्याणचंद्रोदय की रचना की थी!
इसने चोमहला महल का निर्माण कराया!
शिवदत्त जोशी को कुमाऊ का बैरन खा कहा जाता है!
दीपचंद- इस के समय में प्लासी का युद्ध पानीपत का युद्ध बक्सर का युद्ध हुआ था! इसका संरक्षक शिवदत्त जोशी था!
हैमिल्टन ने इसे गूंगा शासक कहा!
इसी के समय मे काशीपुर में फर्त्याल दल ने शिवदत्त जोशी को घेर कर मार दिया!
इसकी पत्नी श्रृंगार मंजरी के संबंध परमानंद बिष्ट से थे यह अपने भाई मोहन सिंह रौतेला को दीवान बनाना चाहती थी मोहन सिंह रौतेला ने सबसे पहले देव जोशी और उसके दो पुत्रों को सिरा कोर्ट के किले में 1777 में मरा दीया उसके बाद परमानंद श्रृंगार मंजरी जय कृष्ण जोशी( शिवदत्त जोशी का पुत्र) को भी मरवा दिया और हर्ष देव जोशी (शिवदत्त जोशी का पुत्र) को बंदी बना लिया! और स्वयं राजा बन गया!
राजा मोहन चंद- मोहन सिंह रौतेला 1777 मैं राजा मोहन चंद के नाम से गद्दी में बैठता है और 1779 तक शासन करता है इसी बीच हर्ष देव जोशी इसकी कैद से भागकर गढ़वाल नरेश ललिताशाह की मदद से इसे हर आता है और इस युद्ध में ललित शाह का नेतृत्व इसका सेनापति प्रेम चंद्र खंडूरी कर रहा होता है जो हर्ष देव जोशी की मदद से मोहनचंद को हराता है! मोहन चंद कुमाऊ से भाग जाता है!
राजा प्रधुम्नशाह/प्रधुम्नचंद- ललित शाह का पुत्र प्रधुम्न साह कुमाऊ के गद्दे में दीपचंद्र के गोद लिए हुए बेटे प्रदुम्न चंद के नाम से गद्दी में बैठते हैं! और कुछ समय बाद गढ़वाल में इसका भाई जय कृति शाह आत्महत्या कर लेता है और यह गढ़वाल में राजा बन जाता है कुमाऊ की गद्दी हर्ष देव जोशी को छोड़ जाता हैं!
अतः एकमात्र शासक जो गढ़वाल व कुमाऊं में राजा बनता है!
इस का लाभ उठाकर मोहन चंद फिर से कुमाऊं में आक्रमण करता है इस युद्ध में प्रधुम्न शाह का भाई पराक्रम शाह मोहनचंद की मदद करता है! इस युद्ध को पाली गांव का युद्ध कहते हैं इस युद्ध में मोहन चंद लाल सिंह पराक्रम शाह एक साथ तथा हर्ष देव जोशी व प्रधुम्न शाह एक और होते हैं इस युद्ध में हर्ष देव जोशी की हार होती है!
मोहनचंद- मोहन चंद पहला शासक होता है जो कुमाऊ की गद्दी में दो बार शासन करता है! परंतु यह शासन 1786 से 1788 तक चलता है इस बीच हर्ष देव जोशी मोहन चंद और उसके पुत्र विशन सिंह को मार देता है!
शिवचंद- हर्षित देव जोशी की मदद से शिवचंद राजा बनता है इसे मिट्टी का महादेव भी कहा जाता है क्योंकि इसके समय में हर्ष देव जोशी का पूर्ण हस्तक्षेप होता है लाल सिंह अपने भतीजे महेंद्र चंद्र के साथ कुमाऊं में आक्रमण करता है और इन्हें हरा देता है!
महेन्द्र चंद- लाल सिंह स्वयं गद्दी में ना बैठ कर अपने भतीजे महेंद्र चंद्र को गद्दी में बैठा था जो इसके भाई मोहन चंद का पुत्र होता है!
हर्ष देव जोशी पुनः गढ़वाल जाता है परंतु इसे कोई मदद नहीं मिलती फिर यह नेपाल से मदद लेता है और महेंद्र चंद पर आक्रमण करता है!
1790 में गोरखाओं का कुमाऊं में आक्रमण होता है और इस युद्ध में महेंद्र चंद्र की हार होती है! और कुमाऊं में गोरखा वंश की नींव रखी जाती है!
अतः महेंद्र चंद अंतिम चंद राजा था!