एक मां ऐसी भी
रात के 3:00 बज रहे हैं नींद नहीं आ रही थी तो किताब खोली कुछ लोगों के बारे में पढ़ते पढ़ते यह सोचा कि कुछ कहानियां आप लोगों के साथ साझा की जाएl जैसा की कहानी का शीर्ष है एक मां ऐसी भी! दोस्तों यह कहानी है एक ऐसी महिला की जिसने अपने जीवन में कुछ नहीं पाया और लोगों के हित मे अपना जीवन समर्पित कर दिया।
अब बडते कहानी की और जानते हैं वह महिला कौन थीl यह कहानी है एक अनाथ लड़की की समाज के लिए मां बनने की कहानी जिस तरीके से मां अपने बच्चों को बुरी चीजों से दूर रखती है उसी तरीके से एक मामूली सी महिला जिसका नाम दीपा देवी था उसे लोगों ने जिसे लोगो ने टिंचरी माई बना दिया।
टिंचरी माई का मूल नाम दीपा नौटियाल था जिनका जन्म 1917 में मंज्यूर ग्राम पौड़ी गढ़वाल में हुआ था 2 वर्ष की आयु में उनकी मां का देहांत हो गया कुछ वर्षों बाद उनके पिता का भी देहांत हो गया उनके चाचा ने उनका पालन पोषण किया इस समय समाज में बाल विवाह की प्रथा थी जिस कारण 7 वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह अंग्रेजी सेना में कार्यरत एक सैनिक गणेशराम के साथ करा दिया गया जो उनसे उम्र में 17 वर्ष बड़ा था परंतु गणेश राम अच्छे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था वह उनका बहुत ख्याल रखता था दुर्भाग्यवश जब दीपा नौटियाल जब 19 वर्ष की थी तो उनके पति का देहांत हो गया पति के देहांत के बाद उन्हें कुछ पैसे मिले परंतु उसके बाद ससुराल वाले उनसे दुर्व्यवहार करने लगे जिस कारण वे लहौर जाकर एक आश्रम में साध्वी का जीवन व्यतीत करने लगेl उन्होंने अपना नाम परिवर्तित कर इच्छा गिरी माई रख दियाl समाज में फैली कुप्रथाओं के प्रति वह लोगों में चेतना फैलाने लगे और खुद अनपढ़ होने के बाद भी वह शिक्षा के लिए लोगों को जागृत करने लगे।
1947 वह हरिद्वार आई उनका वहां साधु से बोलना हो गया क्योंकि साधु नशे की अवस्था में थे इसके बाद भी भाबर सिंगडी गांव कोटद्वार आ गई और एक कुटिया बनाकर रहने लगी। इस वक्त यहां महिलाओं को पानी की समस्या बहुत अधिक थी जिस कारण वे दिल्ली प्रधानमंत्री नेहरू जी के आवास के बाहर बैठ गई जैसे ही नेहरू जी की कार आए तो वह कार के आगे कूद गई और बोली या तो जल दो या गाड़ी चला दो मेरे ऊपर जब नेहरू जी ने उन्हें देखा और उनकी समस्या को जाना तो बोला माई आपकी समस्या दूर हो जाएगी जब नेहरू जी ने उनका हाथ पकड़ा तो उन्हें काफी अधिक बुखार था और उनके इलाज की व्यवस्था की परंतु उन्होंने इलाज करने से मना कर दिया और वह लौट आई उनके लौटने तक नेहरू जी ने वहां जल की व्यवस्था करा दी परंतु दुर्भाग्यवश वहां के पटवारी ने उनकी कुटिया तोड़ दी और का यह गैर कानूनी भूमि पर है माय वहां से चली गई और मोटाढाक के मास्टर मोहन सिंह के वहां चली गई जिन्होंने माय के लिए एक कमरे की व्यवस्था की मायने उनके साथ मिलकर और चंदा करके एक विद्यालय की स्थापना की जिसका नाम उन्होंने अपने स्वर्गवासी पति के नाम पर रखा उसके बाद भी 1955 56 में पौड़ी आ गई इस वक्त यहां नसे का प्रकोप काफी अधिक था जिस कारण युवा वर्ग और महिलाओं को इसका बहुत अधिक सामना करना पड़ता था इस वक्त मित्तल नाम के एक व्यापारी की टिंचरी नाम कि शराब कि कम्पनी थी जिसकी शिकायत मायने वहां के कलेक्टर से की कलेक्टर माय के साथ दुकान में आया परंतु उसने कुछ नहीं किया गुस्से में आकर माई ने दुकान में आग लगा दी जिस कारण जिस कारण उनका नाम टिंचरी माई पडा। 19 जून 1992को इनकी मृत्यु हुईI
सार्थक प्रयास भाई जी 🙏🙏
ReplyDeleteधन्यवाद मेरे भाई
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