जय गुरु देव उत्तराखंड राज्य प्रतीक चिन्ह mission 2021-22
उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर 2000 को हुआ इस समय इसका नाम उत्तरांचल रखा 1 जनवरी 2007 को इसका नाम परिवर्तन कर उत्तराखंड किया गया उत्तराखंड शासन ने उत्तराखंड राज्य चिन्ह का निर्धारण 2001 में किया थाl।
उत्तराखंड राज्य चिन्ह- राज्य के शासकीय कार्यों में राज्य चिन्ह का प्रयोग किया जाता है उत्तराखंड के राज्य चिन्ह गोलाकार मुद्रा में है जिसमें गंगा की 4 लहरें 3 पर्वत श्रृंखलाएं अशोक की एक लाट जिसके नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया हैl
Note- सत्यमेव जयते मुंडकोपनिषद से लिया गया हैl
उत्तराखंड राज्य पशु- हिमालय का मस्क डिअर के नाम से प्रसिद्ध कस्तूरी मृग उत्तराखंड का राज्य पशु है जिसका वैज्ञानिक नाम मास्कस काइसोगास्टर है। यह 3600 से 4400 मीटर कि ऊँचाई में केदारनाथ फूलों की घाटी व उत्तरकाशी में बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है कस्तूरीमृग भुरे रंग तथा उसमें काले पीले रंग के धब्बे होते हैंl कस्तूरी मृग के पैरों में चार खुर दो बाहर निकले निकले दांत और लगभग 20 इंच लंबा होता है।
कस्तूरी मृग की औसतन आयु 20 वर्ष होती है तथा उत्तराखंड में इसकी 4 प्रजातियां पाई जाती है जो हर 6 माह में गर्भ धारण करती है कस्तूरी मृग हिमाचल प्रदेश सिकिकम और कश्मीर में भी काफी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं नर मृग से 3 वर्ष के अंतराल में 30 से 45 ग्राम कस्तूरी प्राप्त हो सकती है औषधि उद्योगों में कस्तूरी का प्रयोग दमा मिर्गी हृदय संबंधी रोगों की दवाई बनाने के लिए किया जाता है।
कस्तूरी मृग के संरक्षण के लिए 1972 में केदारनाथ वन्य जीव विहार की स्थापना की गई जो रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित हैl महरूडी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना 1977 में पिथौरागढ़ और बागेश्वर बॉर्डर में की गई 1988 अस्कोट वन्य जीव विहार की स्थापना पिथौरागढ़ जनपद में की गई है तथा 1982 में काचुंला खर्क जिसका उद्देश्य कस्तूरी मृग का प्रजनन बढ़ाना है इसकी स्थापना चमोली जनपद में की गईl 2005 के आंकड़े के अनुसार इनकी संख्या उत्तराखंड में 279 थीl
Note- कस्तूरी मृग का मुख्य भोजन केदार पाती हैl इसे संरक्षित पशु 1972 में घोषित किया गया थाl
उत्तराखंड राज्य पुष्प- स्थानीय भाषा में कौल पदम और महाभारत के वन पर्व में सौगंधित पुष्प के नाम से प्रसिद्ध ब्रह्मा कमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है जो और 4000 मीटर से 6000 मीटर की ऊंचाई में फूलों की घाटी केदारनाथ व पिंडारी ग्लेशियर में अत्यधिक मात्रा में पाया जाता हैl इसके पौधे की ऊंचाई 70 से 80 सेंटीमीटर होती है इसमें भूरे रंग के फूल जुलाई से सितंबर माह में लगते हैं इसकी उत्तराखंड में 24 प्रजातियां तथा विश्व में 210 प्रजातियां पाई जाती हैl
Note- ब्रह्म कमल के नाम का डाक टिकट 1982 में 2.85 पैसे का जारी किया गयाl ब्रह्मा का ऐसटेरसी कुल का पौधा है इसका वैज्ञानिक नाम सोसूरिया अबवेलेटा है। यह पुष्पा केदारनाथ में शिव के चरणों पर अर्पित किया जाता हैl
उत्तराखंड राज्य वृक्ष- बसंत के मौसम में उत्तराखंड के राज्य वृक्ष बुरांश रंग बिरंगे फूल लगते हैं जिसमें 1500 से 4000 मीटर की ऊंचाई में चटक लाल तथा इससे ऊपर बढ़ने पर इन फूलों का रंग गहरा लाल तथा हल्का लाल मिलता है तथा 11000 फीट की ऊंचाई में इन फूलों का रंग सफेद मिलता है इस का वनस्पतिक नाम रोडोडेन्डान अरबोरियम है। यह एक सदाबहार वृक्ष है इसमें औषधि गुण भी पाए जाते हैं बुरास वृक्षों की ऊंचाई 20 से 25 फिट होती है इसकी लकड़ी बहुत मुलायम होती है इसका ज्यादातर प्रयोग ईधन तथा इसके पत्तों का प्रयोग खाद बनाने में किया जाता है 1974 में इसे संरक्षित व्यक्ति घोषित किया गया है।
Note- बुरास वृक्ष का डाक टिकट 1977 में 50 पैसे का जारी हूआ।
उत्तराखंड राज्य पक्षी- 2500 से 5000 मीटर की ऊंचाई में उत्तराखंड कश्मीर असम तथा नेपाल पाया जाने वाला हिमालय मयूर के नाम से प्रसिद्ध पक्षी मोनाल उत्तराखंड राज्य का राज्य पक्षी हैl
स्थानीय भाषा में इसे मल्याल या मुनार कहते हैं यह मादा होता है नीले काले हरे आदि रंगों का मिश्रित इस पक्षी की पूंछ हरी होती है इसकी नर प्रजाति डफिया होती है जिसके सर पर मोर की तरह रंगीन कलगी होती हैl इसका आहार आलू तथा कीट है मासं तथा खाल के लिए इसका शिकार काफी अधिक होता हैl
Note- मोनाल के नाम का डाक टिकट 1975 में ₹2 का हुआ थाl
उत्तराखंड राज्य खेल- 2011 में फुटबॉल को उत्तराखंड का राज्य खेल घोषित किया गयाl राम बहादुर छेत्री को चाइना बाल कहा जाता है तथा तिलोक सिंह बसेड़ा को आयरन बाल ऑफ इंडिया कहा जाता है दोनों का संबंध फुटबॉल खेल से हैl
उत्तराखंड राज्य वाद्य यंत्र- उत्तराखंड राज्य का वाद्य यंत्र ढोल है जिसे 2015 में घोषित किया गयाl
Note-
मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य वाद्य के चयन के लिए छह सदस्यीय कमेटी गठित की। इसमें साहित्यकार एवं गीतकार जुगल किशोर पेटशाली, प्रसिद्ध लोकगायक चंद्रसिंह राही व प्रीतम भरतवाण, ढोल सागर विशेषज्ञ उत्तमदास, पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा, भातखंडे संगीत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य योगेंद्र भ्ाडारी और संस्कृति विभाग के समन्वयक एसएल ममगांई को शामिल किया गया। श्री भंडारी को कमेटी के सदस्य सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई,
उत्तराखंड राज्य गीत- हेमंत बिष्ट द्वारा लिखित उत्तराखंड देव भूमि मातृभूमि शत शत वंदन अभिनंदन को 2016 में उत्तराखंड का राज्य गीत घोषित किया गया जिसके स्वर नरेंद्र नेगी तथा अनुराधा निराला जी के हैंl
उत्तराखंड राज्य तितली-2016 को कॉमन पीकॉक को उत्तराखंड राज्य तितली घोषित किया गयाl
Note- उत्तराखंड में 500 से अधिक तितलियां पाई जाती है कामन पिकाक तितली उत्तराखंड के अलावा पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, अरुणाचल प्रदेश, पूर्वी मेघालय में पायी जाती है। प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी ये तितलियां पाई जाती हैं। मोर की गर्दन की तरह रंग होने के कारण इसका नाम कामन पीकाक पड़ा है। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक 1966 में इस लिम्का बुक आफ रिकार्ड की तरफ से सबसे सुन्दर तितली का खिताब दिया गया था। कामन पीकाॅनक का जीवन-काल 30 से 35 दिनों का होता है। आमतौर पर मार्च से लेकर अक्टूबर महीने के दौरान यह तितली दिखाई देती है कामन पीकाक तितली की खास बात ये है यह टिमरू नाम के पेड़ पर ही अपने अंडे देती है। इस पेड़ का औषधीय महत्त्व के साथ धार्मिक महत्त्व भी है। भीमताल स्थित बटर फ्लाई संग्रहालय का संचालक पीटर स्मैटाचक कहते हैं कि कामन पीकाक के पंखों में पाया जाने वाला हरा और नीला रंग वास्तविक नहीं होता है बल्कि पंख पर सूर्य की रोशनी पड़ने के कारण यह ऐसा दिखाई देता है।
उत्तराखंड राज्य की भाषा-उत्तराखण्ड की भाषाएँ पहाड़ी भाषाओं की श्रेणी में आती हैं। उत्तराखण्ड में बोली जाने वाली भाषाओं को दो प्रमुख समूहों में विभाजित किया जा सकता है: कुमाऊँनी और गढ़वाली जो क्रमशः राज्य कुमाऊँ और गढ़वाल मण्डलों में बोली जातीं हैं। इन दोनों भाषाओं में संस्कृत के अनेकों शब्दों की उपलब्धता से इन्हे संस्कृत से विकसित समझा जाता है। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं।
लेकिन राज्य की सबसे प्रमुख भाषा हिन्दी है। यह राज्य की आधिकारिक और कामकाज की भाषा होने के साथ-साथ अन्तरसमूहों के मध्य संवाद की भाषा भी है।
राज्य की दूसरी प्रमुख राजभाषा संस्कृत है। उत्तराखंड में संस्कृत को 2010 में द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।
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