गोरखा ने कुमाऊ पर 1790 में शासन स्थापित किया इस समय नेपाल का राजा रण बहादुर शाह था! की संरक्षिका राजेंद्र लक्ष्मी या इंद्र लक्ष्मी थी बाद में यह सन्यासी स्वामी निर्गुणानंद के नाम से जाना जाता है!
कुमाऊ का प्रथम सुब्बा- कुमाऊ का पहला सुब्बा जोग मल्ल शाह था! इसने कुमाऊं में 1791 आने पर मैं पहला भूमि बंदोबस्त कराया!
काजी नरशाही- यह एक अत्याचारी प्रशासक था जो मंगल की रात के लिए प्रसिद्ध था!
सुब्बा बमशाह- यह अंतिम नेपाली प्रशासक था इतने नेपाल के लिए डाक चौकिया भी बनाई थी!
गढ़वाल के गोरखा प्रशासक-
गोरखा शासन की स्थापना गढ़वाल में 1804 में हुई इस समय नेपाल का राजा विक्रमशाह था
अमर सिंह थापा- यह गढ़वाल का पहला प्रशासक था जिसे कुमाऊं और गढ़वाल दोनों की जिम्मेदारी थी इसे सर्वोच्च न्यायाधीश भी कहा जाता था नेपाल की सबसे बड़ी उपाधि काजी इसे मिली थी!
रणजोर सिंह थापा- यह अमर सिंह थापा का पुत्र था जिसे मौला राम ने दानवीर कर्ण की उपाधि दी इसने प्रशासन की मदद के लिए सभा मंडली तथा विचारी और आचारी पदों का सृजन किया!
हस्तीदल चौतरिया- यह शांत प्रगति का शासक था कितने किसानों को कम लगान दर पर ऋण दिया था!
भैरो थापा- यह अत्याचारी तथा विलाषी प्रगति का शासक था जिसके कारण 1812-15 तक अमर सिंह थापा के प्रतिनिधियों ने यहां शासन किया था!
अंग्रेजी तथा गोरखाओं के बीच युद्ध के होने के प्रमुख दो कारण थे-
बुटकल प्रांत और दूसरा अंग्रेजों की तिब्बत के साथ व्यापार करने की महत्वाकांक्षा...
👉 अंग्रेजों की तिब्बत के साथ व्यापार की महत्वाकांक्षा-
गोरखा चाहते थे कि अंग्रेज तिब्बत के साथ व्यापार करें परंतु वह उन्हें कर दे जिसके परिणाम स्वरूप इनके बीच मतभेद उत्पन्न होने लगे....
मल्ले राजाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों ने नेपाल के विरुद्ध कैप्टन कींगलाक के नेतृत्व में 2800 सेनिक भेजे जिसमे से 800 सैनिक वापस आए!
1774 अंग्रेजों ने व्यापारिक जानकारी के लिए जॉर्ज बोगले को भूटान भेजा नेपाल नरेश पृथ्वी नारायण शाह ने तिब्बत व्यापारियों को पत्र लिखा और इसके साथ व्यापार करने से मना कर दिया इस तरीके से अंग्रेजों का दूसरा कदम भी असफल रहा!
Note- बहुत से स्त्रोतों मे दिया है कि बोगले 1794 मे भुटान गया!
1795 में मौलवी अब्दुल कादिर को नेपाल की आंतरिक स्थिति का पता लगाने को भेजा गया!
1802-03 में कैप्टन नाक्स नेपाल भेजा परंतु यह कदम भी असफल रहा!
1812 मूरकाफ्ट व हेयरसी को तिब्बत भेजा गया परंतु नेपाल प्रशासकों ने इन्हें रास्ते में ही बंदी बना लिया!
बुटवल प्रान्त के कारण मतभेद-
यह प्रांत लखनऊ के अंतर्गत आता था यहां का राजा पृथ्वी नारायण था जिसे गोरखा शासक विक्रमशाह और उसके प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने काठमांडू बुलाकर बंदी बना लिया परंतु अंग्रेजों ने लखनऊ जीता जिस कारण यह प्रांत उनका हुआ परंतु गोरखाओ का कहना था राजा उन्होंने बंदी बनाया है क्षेत्र अभी उनका होगा!
इसके कारण अंग्रेजों और गोरखा में युद्ध हुआ और 24 अंग्रेज बुटवल थाने मे मारे गए!
इसके बाद लॉर्ड मेयो/ हेस्टिंग्स ने 4 टुकड़िया बनाकर इन पर आक्रमण किया!
1.मेरठ डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व रौलो गिलेस्पी (जिलेस्पी) कर रहा होता है इसकी मदद कर्नल माबी एंव कारपेंटर कर रहे होते हैं इन्हें दुन क्षेत्र मे आक्रमण के लिए भेजा गया था!
लुधियाना डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व डेविड ऑक्टरलोनी कर रहे थे इनने काली नदी से सतलज क्षेत्र पर आक्रमण किया यह क्षेत्र अमर सिंह थापा के अंतर्गत था!
दीनापुर डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व बैनेट मार्ले कर रहा था इसे काठमांडू में आक्रमण के लिए भेजा लेकिन नेपालियों ने इसे मार मार के भगाया इसलिए इसे एटकिंसन ने बुद्धू जनरल कहा है!
Note- बैनेट मार्ले हरिहर गढ़ का युद्ध फरवरी 1815 में हारा था!
बनारस डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व जॉन सिलवान वुट कर रहा था इसे गोरखपुर में आक्रमण के लिए भेजा गया था!
नालापानी या खलंगा का ऐतिहासिक युद्ध -
बलभद्र शाह अपने 300-400 सैनिकों के साथ नालापानी के किले में होता है वह रालो गिलेस्पी के साथ युद्ध करने से मना कर देता है और 31 अक्टूबर 1815 को इन दोनों के बीच युद्ध होता है जिसे नालापानी या खलंगा का युद्ध कहते हैं इसमें बलभद्र साहब अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए रालो गिलेस्पी को मार देता है!
1 नवंबर 1814 में कर्नल मावी और कारपेंटर युद्ध की घोषणा कर देते हैं और किले मैं पानी की पाइप लाइन बंद कर देते हैं जिस कारण बलभद्र साह को किले से बाहर आना पड़ता है 30 नवंबर 1814 को इनके बीच युद्ध होता है जिसमें अंग्रेजों की जीत होती है परंतु बलभद्र साह बचकर भाग जाता है!
नोट- बिलियन फ्रेजर नालापानी के युद्ध का आंखों देखा वर्णन किया!
अंग्रेजों का लालमंडी किले पर आक्रमण- अंग्रेजों ने गोरखाओं को पराजित करने के लिए अल्मोड़ा के लालमंडी किले में दो ओर से आक्रमण किया!
काशीपुर से गार्डनर,हर्षदेव जोशी तथा पीलीभीत और बरेली से कैप्टन हेयरसी ने किया!
ब्रह्मदेव मंडी का युद्ध- यह युद्ध 14 मार्च 1815 को हुआ इस युद्ध में हस्तीदल चौतरिया कैप्टन हियरसी से पराजित होता है!
इसके बाद 21 मार्च 1815 को दिगालीचौड का युद्ध होता है जिसमें हस्तीदल चौतरिया हियरसी को बंदी बना लेता है!
Note- दिगालीचौड के युद्ध को खिलपति युद्ध भी कहा जाता है!
गणनाथ डांडा का युद्ध- यह युद्ध 23 अप्रैल 1815 ताकुला (अल्मोड़ा) में होता है! कैप्टन निकाल्सन हस्तीदल चौतरिया को मार देता है!
अल्मोड़ा या लालमंडी किले का युद्ध- 25 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों की ओर से गार्डनर और कर्नल निकलसन के नेतृत्व में बमसाह और चामू भंडारी पर युद्ध किया गया!
बमसाह अंग्रेजों की ताकत भरी बातें समझ गया था उसने इनके साथ 27 अप्रैल 1815 को लाल मंडी की संधि (अल्मोड़ा संधि) कर ली यह संधि बमशाह व गार्डनर के बीच हुई!
Note- लाल मंडी किले को खाली कर इसका नाम फोर्ड मोयरा रखा गया!
बमशाह संधि के विषय में अमर सिंह थापा को पत्र लिखा इस समय अमर सिंह थापा ऑक्टरलोनी के साथ युद्ध लड़ रहा था! ऑक्टरलोनी और अमर सिंह थापा के बीच मालाउगढ की संधि 15 मई 1815 में हूंई! परंतु नेपाल नरेश ने इस संधि को नहीं माना!
याद रखे- बमसाह अंग्रेजों की शक्ति को भलीभांति समझ चुका था उसने इस समस्या का समाधान करने के लिए स्वर्गीय महाराज रण बहादुर शाह के गुरु गजराज मित्र से मिला!
Imp- 2 दिसंबर 1815 को संगोली( चंपारण बिहार) पर राजगुरु गजराज मिस्र, चंद्रशेखर उपाध्याय और ब्रेड शा के मध्य संगोली की संधि हुई परंतु इसे नेपाल नरेश विक्रम शाह नहीं मानता!
28 feb 1815 को विवश होकर ऑक्टरलोनी ने काठमांडू से कुछ दूर मकवानपुर के पास गोरखों पर आक्रमण किया और 800 गोरखा सैनिक मार दिए जिस कारण 4 मार्च 1816 को इन्होंने यह संधि मान ली!
Note- कुछ स्त्रोत मे 28 nov 1815 संगोली संधि अंग्रेजी व अमर संधि थापा के मध्य हुई!
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