Saturday, February 19, 2022

उत्तराखंड जिला दर्शन

                  उत्तराखंड जिला दर्शन
उत्तराखंड में 13 जिले और 2 मंडल है! कुमाऊं मंडल में 6 जिले और गढ़वाल मंडल में 7 जिले हैं! 
कुमाऊं मंडल- 1815 में कुमाऊं को नॉन रेगुलेटिंग जिला बनाया गया! 1829 में  कुमाऊं कमिश्नरी का सर्जन हुआ! 1854 मे  इसका मुख्यालय अल्मोड़ा से नैनीताल बनाया गया!  कुमाऊं मंडल  में 6 जिले आते है:- अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, उधमसिंह नगर, चंपावत
गढ़वाल मंडल- गढ़वाल मंडल की स्थापना दिसंबर  1968 में हुई परंतु उसने अपना कार्य जनवरी 1969 से प्रारंभ किया  आरंभ में इसमें चार जनपद थे! वर्तमान में इसमें सात जनपद है:-देहरादून,पौड़ी,हरिद्वार,चमोली,टिहरी,उत्तरकाशी,रुद्रप्रयाग
उत्तराखंड के जनपदों का गठन-
अल्मोड़ा- 1891 
नैनीताल- 1891
पौड़ी गढ़वाल- 1839
टिहरी- 1 अगस्त 1949
पिथौरागढ़- 24 फरवरी 1960 
चमोली- 24 फरवरी 1960
उत्तरकाशी- 24 फरवरी 1960 ई
देहरादून-  1817
Imp- देहरादून जनपद की स्थापना 1817 में हुई परंतु 1975 में देहरादून को उत्तराखंड स्थित गढ़वाल मंडल में स्थानांतरित कर दिया गया तथा 1975 से यह गढ़वाल मंडल में स्थित है 1817 में यह जिला बनकर मेरठ मंडल में शामिल था! 
हरिद्वार- 28 दिसंबर 1988
उधम सिंह नगर- 29 सितंबर 1995
Note- बहुत स्त्रोतों में 26 दिसंबर 1995 दिया! 
चंपावत- 15 सितंबर 1997
बागेश्वर- 15 सितंबर 1997
नोट- बहुत से स्त्रोतों में बागेश्वर की स्थापना 18 सितंबर 1997 दि है! 
रुद्रप्रयाग- 16 सितंबर 1997
नोट- बहुत से स्त्रोतों में रुद्रप्रयाग की स्थापना 18 सितंबर 1997 दिया है! 

               ✴️ कुमाऊ के जनपद✴️
कुमाऊं में उत्तराखंड के 6 जनपद आते है! जिनका का विवरण निम्नलखित है! 
                ✴️ अल्मोड़ा जनपद✴️

अल्मोड़ा जनपद 1891 पर में अस्तित्व में आया इसका मुख्यालय 1892 में  अल्मोड़ा को बनाया गया! 
अल्मोड़ा नगर खसिया खोलें डांडे के ऊपर बताया गया है! 
 Note- मानस खंड के अल्मोड़ा जनपद की स्थापना 13 अक्टूबर 1892 को भी हुईl
किल्मोड़ा घास  अधिकता के कारण इसका नाम अल्मोड़ा पड़ा! 
अल्मोड़ा जनपद नैनीताल बागेश्वर चंपावत पौड़ी गढ़वाल पिथौरागढ़ चमोली से सीमा बनाता है! 
अल्मोड़ा शहर की स्थापना 1530 एचडी में राजा भी पसंद की थी जो चंद्रवंशी का 43 वा राजा था इसे राजधानी 1563  में कल्याण चंद ने बनाई थी! 
अल्मोड़ा का क्षेत्रफल 3139 वर्ग किलोमीटर हैl
अल्मोड़ा का लिंगानुपात 1139 है यह राज्य का सर्वाधिक लिंगानुपात वाला जिला है! 
अल्मोड़ा का जनसंख्या घनत्व 198 हैl
अल्मोड़ा का शिक्षा लिंगानुपात 922 है यह राज्य का सबसे अधिक लिंगानुपात वाला जिला है! 
अल्मोड़ा की दशकीय वृद्धि दर -1.28% है! 
अल्मोड़ा के उपनाम बाल मिठाई का घर, संस्कृतिक नगरी, ताम्र नगरी, पटाल नगरी है! 
अल्मोड़ा के प्राचीन नाम रामक्षेत्र,आलमनगर खगमरकोट,राजापुर है! 
अल्मोड़ा की साक्षरता 80.47% है! 
अल्मोड़ा में 11 विकासखंड 12 तहसील 6 विधानसभा क्षेत्र है! 
अल्मोड़ा में 1817 में रैमजे कॉलेज छावनी कचहरी नॉर्मल स्कूल की स्थापना हुई! 
अल्मोड़ा नगर पालिका परिषद की स्थापना 1864 में हुई! 
उत्तराखंड की प्रथम जेल 1816 अल्मोड़ा में बनाई गई! 
उत्तराखंड की पहली मस्जिद की स्थापना अल्मोड़ा में ही हुई! 
अल्मोड़ा का वर्णन महात्मा गांधी की पुस्तक मेरी कुमाऊं यात्रा तथा विवेकानंद जी की पुस्तक कोलंबो से अल्मोड़ा में भी मिलता है! 
अल्मोड़ा मिशन स्कूल की स्थापना 1844 में तथा अल्मोड़ा टाउन स्कूल की स्थापना 1907 में हुई! 
सोबान सिंह जीना केंपस अर्थात अल्मोड़ा कॉलेज पहले आगरा विश्वविद्यालय से संबंधित डिग्री कॉलेज था 1973 में कुमाऊं विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ  यह कुमाऊ का महाविद्यालय बन गया 1994 में इसे कैंपस का दर्जा प्राप्त हुआ! 
6 सितंबर 2016 को उत्तराखंड आवासीय विश्वविद्यालय अल्मोड़ा में खोला गया! 
1871 में यहां से अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन हुआ जो साप्ताहिक अखबार था जिसके संपादक बुद्धि बल्लभ पंत जी थे! 
✴️अल्मोड़ा जनपद के प्रमुख दार्शनिक स्थल✴️
 वीरणेश्वर मंदिर-
भगवान शिव के इस मंदिर का निर्माण राजा कल्याण चंद ने कराया था जो चंद वंश  44 नंबर का राजा था! 
यह मंदिर बिनसर पहाड़ी पर झंडीधार नामक स्थान पर स्थित है! 
विभाण्डेश्वर मंदिर-
इसे द्वाराहाट मंदिर भी कहते हैं! 
इस मंदिर को उत्तर के काशी के नाम से भी जाना जाता है! 
यह मंदिर सुरभि तथा नंदिनी नदी के तट पर है! 
यहां विषुवत संक्रांति के समय स्याल्दे विखौती मेला लगता है
1943 में महात्मा लक्ष्मी नारायण दास ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था! 
यहां मंदिर नागार्जुन या नागार्धर पर्वत पर है! 

गणनाथ मंदिर-
इस मंदिर का निर्माण श्री वल्लभ जी महामहोपाध्याय किसी के पास इन्होंने उदय नौला भी बनाया! 
यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है जहां प्रकृति रूप से जल  टपकता रहता है
गणनाथ की चोटी पर मलिका देवी मंदिर भी स्थित है! 

चितई मंदिर-
कुमाऊं में न्याय के देवता या  कुमाऊ का परमोच्च न्यायालय के रूप से पूजा जाता है!
इन को पशु का रक्षक देवता  के रूप में भी पूजा जाता है! 
गोलू देवता के मंदिर चंपावत घोड़ाखाल पौड़ी और ताड़ीखेत में स्थित है! 

नंदादेवी मंदिर-
इसे कोटभ्रामरी  देवी का मंदिर भी कहते हैं! 
नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा ज्ञान चंद्र तथा साधरण प्रतिमा बाज बहादुर चंद्र लाया था! 
कमिश्नर ट्रेल ने नंदा देवी की मूर्ति को पर्वतेश्वर मंदिर में रखा तब से इसे नंदा देवी के रूप में पूजा जाता है! 
भाद्रपद की अष्टमी को यहां विशाल मेला लगता है! 

जागेश्वर मंदिर समूह-
अल्मोड़ा का सबसे बड़ा मंदिर समूह है! 
यह जाटगंगा नदी के संगम में है! 
यहां वर्तमान में 25 मंदिर हैं परंतु पहले यहां 124 छोटे बड़े मंदिर थे! 
उत्तराखंड का पांचवा धाम भी माना जाता है! 
जन शक्तियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण विश्वकर्मा ने कराया था और इसका जीर्णोद्धार कत्यूरी राजा शालिवाहन देव ने कराया! 
जागेश्वर मंदिर समूह का सबसे प्राचीन मंदिर महामृत्युंजय मंदिर है तथा सबसे बड़ा मंदिर दिनदिनेश्वर मंदिर है! 
यह मंदिर केदारनाथ शैली का है! 
पुराणों में इस मंदिर को हाटकेश्वर तथा भू राजस्व लेख में पट्टी पारुणेक ने कहा गया! 
जागेश्वर मंदिर में नव दुर्गा मंदिर महिषमर्दिनी मंदिर लवलीश मंदिर नटराज मंदिर का निर्माण इष्टगण ने की थी! 
जागेश्वर के मुख्य मंदिर के भीतर दीपचंद तथा त्रिमल्लचंद  की अष्ट धातु से निर्मित मूर्ति मिली है! 
शंकराचार्य ने जागेश्वर के प्रबंध हेतु दक्षिण भारत के जंगमकुमारों की नियुक्ति की! 
हाथ में दीपक युक्त थाल थामे हुए राजा दीपचंद और उसकी पत्नी की काष्ट मूर्ति मिली है
यहां प्रसिद्ध पूश्ती माता मंदिर भी है! 

वृद्ध जागेश्वर मंदिर-
यह जागेश्वर से कुछ दूरी में स्थित है यहां क्षेत्रपाल मंदिर भी स्थित है! 

झांकर सैम मंदिर-
यह स्थानीय लोक देवता है! 

द्वाराहाट-
उत्तराखंड में मंदिरों की नगरी के नाम से जाना जाता है! 
हिमालय की द्वारिका मंदिरों की नगरी मीठी मूलियो का क्षेत्र कुमाऊ का खुजराहो  के नाम से भी द्वाराहाट को जाना जाता है!
कत्यूरी राजाओं ने यहां 30 मंदिरों तथा 365 बोरियों का निर्माण कराया था इसलिए यह क्षेत्र कत्यूरी राजाओं के कलाप्रेमी तथा धर्मनिष्ट होने का प्रतीत है! 
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 11 वीं से 12 वीं शताब्दी के मध्य हुआ! 
द्वाराहाट मंदिर समूह का सबसे बड़ा मंदिर गुजर देव मंदिर है जिसे ध्वज मंदिर के नाम से भी जाना जाता है! ! 
द्वाराहाट के अन्य मंदिर समूह-
महामृत्युंजय मंदिर समूह
मनियान मंदिर समूह
रतन देवल मंदिर समूह
कचहरी देवी मंदिर  समूह
केदारनाथ बद्रीनाथ मंदिर समूह
द्वाराहाट में  बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण सुधा देव ने किया! 

रानीखेत-
कत्यूरी रानी जिया रानी इस स्थान पर कुछ समय के लिए रही थी इसलिए इसे रानीखेत कहते हैं! 
इस का प्राचीन नाम ऑकलैंड होल्स कहते है! 
इसे पर्यटकों की नगरी भी कहा जाता है! 
यह झूला देव पर्वत पर गगास नदी के तट पर स्थित है! 
गगास नदी पर भालू डैम है जिसे स्वर्ण ताल भी कहते हैं! 
नाग देवता ताल पर स्थित है! 
चिलियानौला भी रानीखेत में स्थित है! 
कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय एवं संग्रहालय भी यही स्थित है! 
अमेरिका के न्यायाधीश विलियम दोगाल्स  ने इसे विश्व का सर्वोत्तम हिल स्टेशन माना है
रानीखेत की सुंदरता से प्रभावित होकर नीदरलैंड के राजदूत (रोटरियन- एफ.ए वैरनमान) ने कहा है-"who has not visited ranikhet has not seen india"
ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो रानीखेत अत्यधिक प्रिय था! 
रानीखेत के पर्यटक स्थल-
उपट कालिका मंदिर, हैडा खान मंदिर, पण्डु्खोली गुफा, गोल्फ कोर्स, झूला देवी मंदिर, केआरसी म्यूजियम, मनकामेश्वर विनसर महादेव मंदिर, मजखाली, चौबटिया गार्डन  शीतला खेत इत्यादि! 
 Note-झूला देवी मंदिर दुर्गा देवी तथा भगवान राम के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है! 
पाण्डूखोली गुफा  में पांडवों ने निवास किया था इसी के पास भी  महावतार बाबा गुफा(द्वाराहाट) बलवंत गिरी आश्रम तथा भीम की खातड़ी नामक मैदान भी है! 


चौबटिया-
फलोधान का देश(आरचर्ड कंट्री) के नाम से किसे जाना जाता है! 
1932 में यहां फल संरक्षण एवं शोध केंद्र की स्थापना की गई! 
यहां सरकारी सेब का बगान भी स्थित है! 

दूनागिरी मंदिर-
इस मंदिर की स्थापना 1183 में द्रोणांचल पर्वत में की गई! 
दूनागिरी मंदिर वैष्णवी शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है! 
प्राचीन समय में 365 सीढ़ियां होने का अनुमान था वर्तमान में यहां 510 सीढ़ियां स्थित है
द्रोण ऋषि के आश्रम स्थित होने के कारण इसे दूनागिरी नाम से जाना जाता है! 
यहां दूनागिरी झूला भी स्थित है जो नवविवाहित जोड़ों के लिए प्रसिद्ध है! 

चौखुटिया-
या राम गंगा नदी के तट पर है यह काली और वैष्णवी मंदिर हेतु प्रसिद्ध है! 
यहां से कत्यूरी राजवंश की राजधानी के अवशेष मिले हैं 
कत्यूरी राजवंश के इतिहास में इसे बैराट क्षेत्र के नाम से जाना जाता था! 
लखनपुर रामगंगा नदी के तट पर चौखुटिया से 10 किलोमीटर दूर वैराटनगर के सम्मुख है!  अंतिम कत्यूरी राजा ब्रह्मादेव यही का राजा था! 

चौखुटिया ब्लॉक में राम पादुका तीर्थ, अग्नेरी देवी(अन्यारी देवी मंदिर),बैरागढ़, लखनपुर स्थित है! 

राम पादुका तीर्थ-
असुरफाट पहाड़ी की दीवार घाटी में पश्चिमी रामगंगा नदी के तट स्थित इस तीर्थ की मान्यता हरिद्वार के समान है! 
इसी के पास इंद्रेश्वर महादेव मंदिर भी है! 


ताडीखेत-
गांधी कुटिया और गोलू देवता के मंदिर के लिए यह प्रसिद्ध है! 

शीतलाखेत-
यहां स्याही देवी का मंदिर है  किसी के पास खुटगांव है जहां गोविंद बल्लभ पंत जी का जन्म हुआ था! 

जालना- 
यह क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के फलों के लिए प्रसिद्ध है! 

कलबिष्ट मंदिर-
अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है! 

सल्ट क्षेत्र-
5 सितंबर 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहां गोलाबारी हुई और कई लोगों की मौत हुई जिस कारण गांधी जी ने इसे कुमाऊ का बारदोली कहां है! 

सोमेश्वर-
कोसी नदी के तट पर इस शिव मंदिर को 700 ईसवी में राजा सोमचंद्र ने बचाया था 
इसकी मान्यता काशी के विश्वनाथ मंदिर के समान है
यह खेती के लिए प्रसिद्ध है इसका नाम सेरा भी है! 
यहां दुग्ध कुंड दुग्ध नौला जुठा नौला स्थित है! 

कटारमल सूर्य मंदिर- 
उत्तराखंड शैली का यह मंदिर लंगड़ा ब्लाक के अंतर्गत आता है! 
उड़ीसा के सूर्य मंदिर के बाद यह एक प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है! 
इसका निर्माण नवी से 10 वीं शताब्दी के मध्य कत्यूरी राजा कटारमल ने  कोसी नदी के तट पर किया था! 
इस मंदिर को बूटाधारी सूर्य मंदिर या बडदित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है! 
इस मंदिर के कपाट वर्तमान में दिल्ली संग्रहालय में रखे गए! 
इस मंदिर के समीप गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान भी है! 
इसके पास रणचंडी मंदिर अंधेरी सुनार गांव पूर्वाभिमुखी मंदिर है! 
यह मंदिर छोटे बड़े 45 मंदिरों का समूह है यहां शिव पार्वती नरसिंह कुबेर महिषासुरमर्दिनी की भी मूर्तियां है! 

बिनसर महादेव मंदिर-




Monday, February 14, 2022

उत्तराखंड में गोरखा शासन

कुमाऊं के गोरखा प्रशासक-
गोरखा ने कुमाऊ पर 1790 में शासन स्थापित किया इस समय नेपाल का राजा रण बहादुर शाह था! की संरक्षिका राजेंद्र लक्ष्मी या इंद्र लक्ष्मी थी बाद में यह सन्यासी स्वामी निर्गुणानंद के नाम से जाना जाता है! 
कुमाऊ का प्रथम सुब्बा- कुमाऊ का पहला सुब्बा जोग मल्ल शाह था! इसने कुमाऊं में 1791 आने पर मैं पहला भूमि बंदोबस्त कराया! 
काजी नरशाही- यह एक अत्याचारी प्रशासक था जो मंगल की रात के लिए प्रसिद्ध था! 
सुब्बा बमशाह- यह अंतिम नेपाली प्रशासक था इतने नेपाल के लिए डाक चौकिया भी बनाई थी! 

गढ़वाल के गोरखा प्रशासक-
गोरखा शासन की स्थापना गढ़वाल में 1804 में हुई इस समय नेपाल का राजा विक्रमशाह था
अमर सिंह थापा- यह गढ़वाल का पहला प्रशासक था जिसे कुमाऊं और गढ़वाल दोनों की जिम्मेदारी थी इसे सर्वोच्च न्यायाधीश भी कहा जाता था नेपाल की सबसे बड़ी उपाधि काजी इसे मिली थी! 
रणजोर सिंह थापा- यह अमर सिंह थापा का पुत्र था जिसे मौला राम ने दानवीर कर्ण की उपाधि दी इसने प्रशासन की मदद के लिए सभा मंडली तथा विचारी और आचारी पदों का सृजन किया! 
हस्तीदल चौतरिया- यह शांत प्रगति का शासक था कितने किसानों को कम लगान दर पर ऋण दिया था! 
भैरो थापा- यह अत्याचारी तथा विलाषी प्रगति का शासक था जिसके कारण 1812-15 तक अमर सिंह थापा के प्रतिनिधियों ने यहां शासन किया था! 

अंग्रेजी तथा गोरखाओं के बीच युद्ध के होने के प्रमुख दो कारण थे-
बुटकल प्रांत और दूसरा अंग्रेजों की तिब्बत के साथ व्यापार करने की महत्वाकांक्षा... 
👉 अंग्रेजों की तिब्बत के साथ व्यापार की महत्वाकांक्षा-
गोरखा चाहते थे कि अंग्रेज तिब्बत के साथ व्यापार करें परंतु वह उन्हें कर दे जिसके परिणाम स्वरूप इनके बीच मतभेद उत्पन्न होने लगे.... 
मल्ले राजाओं के साथ मिलकर अंग्रेजों ने नेपाल के विरुद्ध कैप्टन कींगलाक के नेतृत्व में 2800 सेनिक  भेजे जिसमे से 800 सैनिक वापस आए! 

1774 अंग्रेजों ने व्यापारिक जानकारी के लिए जॉर्ज बोगले को भूटान भेजा  नेपाल नरेश पृथ्वी नारायण शाह ने तिब्बत व्यापारियों को पत्र लिखा और इसके साथ व्यापार करने से मना कर दिया इस तरीके से अंग्रेजों का दूसरा कदम भी असफल रहा! 
Note-  बहुत से स्त्रोतों मे दिया है कि बोगले 1794 मे भुटान गया! 
1795 में मौलवी अब्दुल कादिर को नेपाल की आंतरिक स्थिति का पता लगाने को भेजा गया! 
1802-03 में कैप्टन नाक्स नेपाल भेजा परंतु यह कदम भी असफल रहा! 
1812 मूरकाफ्ट व हेयरसी  को तिब्बत भेजा गया परंतु नेपाल प्रशासकों ने इन्हें रास्ते में ही बंदी बना लिया! 

बुटवल प्रान्त के कारण मतभेद- 
यह प्रांत लखनऊ के अंतर्गत आता था यहां का राजा पृथ्वी नारायण था जिसे गोरखा शासक विक्रमशाह और उसके प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने काठमांडू बुलाकर बंदी बना लिया परंतु अंग्रेजों ने लखनऊ जीता जिस कारण यह प्रांत उनका हुआ परंतु गोरखाओ का कहना था राजा उन्होंने बंदी बनाया है क्षेत्र अभी उनका होगा! 
इसके कारण अंग्रेजों और गोरखा में युद्ध हुआ और 24 अंग्रेज बुटवल थाने मे मारे गए! 

इसके बाद लॉर्ड मेयो/ हेस्टिंग्स ने 4 टुकड़िया बनाकर इन पर आक्रमण किया! 

1.मेरठ डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व रौलो गिलेस्पी (जिलेस्पी) कर रहा होता है इसकी मदद कर्नल माबी एंव  कारपेंटर कर रहे होते हैं इन्हें दुन क्षेत्र मे  आक्रमण के लिए भेजा गया था! 

लुधियाना डिवीजन-  इस डिवीजन का नेतृत्व डेविड ऑक्टरलोनी कर रहे थे इनने काली नदी से सतलज क्षेत्र पर आक्रमण किया  यह क्षेत्र अमर सिंह थापा के अंतर्गत था! 

दीनापुर डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व बैनेट मार्ले कर रहा था इसे काठमांडू में आक्रमण के लिए भेजा लेकिन नेपालियों ने इसे मार मार के भगाया इसलिए इसे एटकिंसन ने बुद्धू जनरल कहा है! 
Note- बैनेट मार्ले हरिहर गढ़ का युद्ध फरवरी 1815 में हारा था! 

बनारस डिवीजन- इस डिवीजन का नेतृत्व जॉन सिलवान वुट कर रहा था  इसे गोरखपुर में आक्रमण के लिए भेजा गया था! 

नालापानी या खलंगा का ऐतिहासिक युद्ध -
बलभद्र शाह अपने 300-400 सैनिकों के साथ नालापानी के किले में होता है वह रालो गिलेस्पी  के साथ युद्ध करने से मना कर देता है और 31 अक्टूबर 1815 को इन दोनों के बीच युद्ध होता है जिसे नालापानी या खलंगा का युद्ध कहते हैं इसमें बलभद्र साहब अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए रालो गिलेस्पी को मार देता है! 
1 नवंबर 1814 में कर्नल मावी और कारपेंटर युद्ध की घोषणा कर देते हैं और किले मैं पानी की पाइप लाइन बंद कर देते हैं जिस कारण बलभद्र साह को किले से बाहर आना पड़ता है 30 नवंबर 1814 को इनके बीच युद्ध होता है जिसमें अंग्रेजों की जीत होती है परंतु बलभद्र साह बचकर भाग जाता है! 
नोट- बिलियन फ्रेजर नालापानी के युद्ध का आंखों देखा वर्णन किया! 
अंग्रेजों का लालमंडी किले पर आक्रमण- अंग्रेजों ने गोरखाओं को पराजित करने के लिए अल्मोड़ा के लालमंडी किले में दो ओर से आक्रमण किया! 
काशीपुर से गार्डनर,हर्षदेव जोशी तथा पीलीभीत और बरेली से कैप्टन हेयरसी ने किया! 

ब्रह्मदेव मंडी का युद्ध- यह युद्ध 14 मार्च 1815 को हुआ इस युद्ध में हस्तीदल चौतरिया कैप्टन हियरसी से पराजित होता है! 
इसके बाद 21 मार्च 1815 को  दिगालीचौड का युद्ध होता है जिसमें हस्तीदल चौतरिया हियरसी  को बंदी बना लेता है! 
Note- दिगालीचौड के युद्ध को खिलपति युद्ध भी कहा जाता है! 

गणनाथ डांडा का युद्ध- यह युद्ध 23 अप्रैल 1815 ताकुला (अल्मोड़ा) में होता है! कैप्टन निकाल्सन हस्तीदल चौतरिया को मार देता है! 

अल्मोड़ा या लालमंडी किले का युद्ध-  25 अप्रैल 1815 को  अंग्रेजों की ओर से गार्डनर और कर्नल निकलसन के नेतृत्व में बमसाह और चामू भंडारी पर युद्ध किया गया! 
बमसाह अंग्रेजों की ताकत भरी बातें समझ गया था उसने इनके साथ 27 अप्रैल 1815 को लाल मंडी की संधि (अल्मोड़ा संधि) कर ली यह संधि बमशाह व गार्डनर  के बीच हुई! 
  Note- लाल मंडी किले को खाली कर इसका नाम फोर्ड मोयरा रखा गया! 
बमशाह  संधि के विषय में अमर सिंह थापा को पत्र लिखा इस समय अमर सिंह थापा ऑक्टरलोनी के साथ युद्ध लड़ रहा था!  ऑक्टरलोनी और अमर सिंह थापा के बीच मालाउगढ की संधि 15 मई 1815 में हूंई! परंतु नेपाल नरेश ने इस संधि को नहीं माना! 

याद रखे-  बमसाह  अंग्रेजों की शक्ति को भलीभांति समझ चुका था उसने इस समस्या का समाधान करने के लिए  स्वर्गीय महाराज रण बहादुर शाह के गुरु गजराज मित्र से मिला! 

Imp- 2 दिसंबर 1815 को संगोली( चंपारण बिहार) पर  राजगुरु गजराज मिस्र, चंद्रशेखर उपाध्याय  और ब्रेड शा के मध्य संगोली की संधि हुई परंतु इसे नेपाल नरेश विक्रम शाह नहीं मानता! 

28 feb 1815 को विवश होकर ऑक्टरलोनी ने काठमांडू से कुछ दूर मकवानपुर के पास गोरखों पर आक्रमण किया और 800 गोरखा सैनिक मार दिए जिस कारण 4 मार्च 1816 को इन्होंने यह संधि मान ली! 
Note- कुछ स्त्रोत मे 28 nov 1815 संगोली संधि अंग्रेजी व अमर संधि थापा के मध्य  हुई!